फिर से इन्टरनेट पर पहुँची 50 करोड़ से अधिक फेसबुक यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी

फेसबुक पर युसर्स की व्यक्तिगत जानकारी बेचने के लगातार आरोप लगते रहे हैं, वर्ष 2018 में इसने लगभग 9 करोड़ यूजर्स की जानकारी राजनैतिक विश्लेषण करने वाली कंपनी कैंब्रिज ऐनेलेटीका को बेच दिया था....

Update: 2021-04-05 06:16 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

फेसबुक को आज तक कोई नियंत्रित नहीं कर सका है। इसकी शिकायतें हरेक देश में की जातीं हैं, जांच भी अनेक देशों में किये जा चुके हैं – पर फेसबुक पर कोई असर नहीं पड़ता और न ही इसपर कहीं प्रतिबन्ध लगता है। बिज़नेस इनसाइडर्स नामक पत्रिका के अनुसार कुल 106 देशों के लगभग 50 करोड़ यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी इन्टरनेट हैकर्स से जुडी एक वेबसाइट, मेंलो पार्क, पर सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है। मेंलो पार्क नामक कंपनी के मुख्यालय अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में स्थित है। हालांकि इसे पुरानी घटना बताया जा रहा है, पर इस वेबसाइट पर फेसबुक के 50 करोड़ से अधिक यूजर्स के नाम, फ़ोन नंबर, लोकेशन, जन्मदिन, ई-मेल और फेसबुक की यूजर आईडी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है।

फेसबुक पर युसर्स की व्यक्तिगत जानकारी बेचने के लगातार आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2018 में इसने लगभग 9 करोड़ यूजर्स की जानकारी राजनैतिक विश्लेषण करने वाली कंपनी कैंब्रिज ऐनेलेटीका को बेच दिया था। इसके बाद दुनियाभर में हंगामा होने पर फेसबुक ने गोपनीयता बढाने के नाम पर यूजर्स के फ़ोन नंबर देखने की सुविधा समाप्त कर अपना पल्ला झाड लिया। इसके बाद वर्ष 2019 के अंत में उक्रेन के एक साइबर सिक्यूरिटी अनुसंधानकर्ता ने बताया था कि फेसबुक और दूसरे सोसिला मीडिया के लगभग 27 करोड़ अमेरिकी यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारियाँ इन्टरनेट पर आसानी से उपलब्ध हैं।

कुछ महीने पहले भारत सरकार ने भी फेसबुक पर अनेक आरोप लगाए थे। केन्द्रीय बडबोले मंत्री रविशंकर प्रसाद ने फेसबुक को पत्र लिखकर निष्पक्ष और संतुलित रहने के लिए कहा था। इससे पहले कांग्रेस और अन्य विरोधी पार्टियां भी फेसबुक को धिक्कार चुकी हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी भी फेसबुक से खफा है। फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर ऐसे आरोप वर्षों से लगते रहे हैं और इनके उपयोग करने वालों की व्यक्तिगत सूचनाएं भी लगातार बेची जाती रहीं हैं, फिर भी इनपर प्रतिबन्ध की बात कोई नहीं करता।

जाहिर है, ये सभी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म अमेरिकी हैं इसलिए इनकी स्वीकार्यता दुनिया के देशों के लिए ठीक वैसी ही हैं, जैसे तमाम झूठ, फरेब और बेवकूफी के बाद भी ट्रम्प के सामने झुकने की मजबूरी थी। ट्रम्प की मजबूरी यह थी कि 2016 के अमेरिकी चुनाव में रूस के फरेब से और सोशल मीडिया की मदद से ही ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर काबिज हो पाए थे। ट्रम्प के हारने के बाद भी फेसबुक में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है और ना ही बाईडेन प्रशासन इसके विरुद्ध मुखरता से कोई कदम उठाता दीख रहा है। इस दौर में लोकतांत्रिक तानाशाही पसंद सभी सरकारों के लिए आवश्यक हो गया है कि वे अमेरिका और रूस को खुश रखें और इस दौर में व्यापार से ही खुशी खरीदी जा सकती है।

कैरोल कैडवलाद्र ने 5 जुलाई 2020 को द गार्डियन में फेसबुक के बारे में लिखा था, दुनिया की कोई ताकत फेसबुक को किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार बनाने में असमर्थ है। अमेरिकी कांग्रेस कुछ नहीं कर सकी और ना ही यूरोपियन यूनियन इसपर लगाम लगा पाई। हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि कैंब्रिज ऐनेलेटीका मामले में जब अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया तब फेसबुक के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे।

फेसबुक के माध्यम से अमेरिका के 2016 के चुनावों में सारी विदेशी शक्तियां संलिप्त हो गयीं और इस कारण चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए। फेसबुक ने तो अनेक बार नरसंहार के मामलों का भी सीधा प्रसारण किया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के माध्यम से म्यांमार में रोहिंग्या के लिए घृणा इस पैमाने पर फैलाई गई कि इसने हिंसा का स्वरुप ले लिया, सामूहिक नरसंहार किये गए और आज भी किये जा रहे हैं। इसके चलते हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों को अपने घरबार छोड़ना पड़ा।

ब्रिटेन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री फेस्बुल को समाज का आइना बताते हैं, पर अनेक बुद्धिजीवी फेसबुक को आइना नहीं बल्कि हथियार बताते हैं, वह भी बिना लाइसेंस वाला हथियार, जिससे आप किसी की हत्या कर दें तब भी पकडे नहीं जायेंगे। कुल 2.6 अरब लोग फेसबुक से जुड़े हैं, इस मामले में यह संख्या चीन की आबादी से भी अधिक है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसकी तुलना चीन से नहीं की जा सकती, बल्कि इसे उत्तर कोरिया कहना ज्यादा उपयुक्त है, पर मार्क जुकरबर्ग तानाशाह किम जोंग से भी अधिक शक्तिशाली हैं।

कुछ लोगों के अनुसार फेसबुक की यदि किसी हथियार से तुलना करनी हो तो वह हथियार बन्दूक, राइफल, तोप या टैंक नहीं होगा बल्कि सीधा परमाणु बम ही होगा। यह एक तानाशाह, मार्क जुकरबर्ग के अधिकार वाला वैश्विक साम्राज्य है। जुकरबर्ग का एक ही सिद्धांत है, भले ही पूरी दुनिया में हिंसा फ़ैल जाए, नफरत फ़ैल जाए, कितने भी आरोप लगें – पर किसी आरोप का खंडन नहीं करना, किसी पर ध्यान नहीं देना – बस अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाना, और अधिक से अधिक धन कमाना। फेसबुक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर मुख्य मीडिया को भी संचालित करता है।

फेसबुक के फेक न्यूज़ या हिंसा को भड़काने वाले पोस्ट केवल एक रंग, नस्ल या देश को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि इसका असर सार्वभौमिक है, और दुनिया भर के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। इसे केवल एक संयोग कहकर नहीं टाला जा सकता कि कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और इंग्लैंड सम्मिलित हैं। जनवरी 2020 से अगर गौर करें तो फेसबुक और इन्स्टाग्राम के पोस्ट इन देशों में इस महामारी के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रचार में संलग्न थे। इन चारों ही देशों की सरकारें ऐसी हैं, जो ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर प्रचार के बलबूते ही सत्ता पर काबिज हैं। फेसबुक का हाल तो ऐसा है, जो केवल चीन से ही बड़ा नहीं है बल्कि पूरे पूंजीवाद से बड़ा है। आज के पूंजीवाद को टिके रहने के लिए फेसबुक सबसे बड़ा सहारा है।

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