अफगानिस्तान की महिला कवियों की कवितायें

पिछले 2-3 वर्षों से अफगानिस्तान की महिलायें अपनी समस्याएं और अपनी बेड़ियों के बारे में लगातार पुरजोर तरीके से बताती रही हैं, पर पूरी दुनिया ने इस विषय पर एक अजीब सी चुप्पी साध रखी है.....

Update: 2021-08-29 13:51 GMT

जनज्वार। अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसमें नया और चकित करने वाला कुछ नहीं है। भारत समेत दुनिया के बहुत सारे कथित लोकतांत्रिक देशों में कुछ ऐसा ही आतंकवाद, तथाकथित राष्ट्रवाद, कट्टरता, मानवाधिकार हनन और महिलाओं का दमन किया जा रहा है। दरअसल लोकतंत्र, मानवाधिकार और लैंगिक समानता का दुनिया में केवल वही हिस्सा बचा है, जो दुनिया के नेताओं के प्रवचन जैसे भाषणों में समाता है।

अफगानिस्तान, म्यांमार, हांगकांग और बेलारूस जैसे देशों के हालात दुनिया के तथाकथित स्वघोषित लोकतंत्र के पुजारियों को अपने देश के हालात पर पर्दा डालने में मदद करते हैं, इसीलिए ऐसे देशों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देता, पूरी दुनिया बस इन देशों की चर्चा करती है और मीडिया को कुछ समय के लिए एक स्थाई अड्डा मिल जाता है।

पिछले 2-3 वर्षों से अफगानिस्तान की महिलायें अपनी समस्याएं और अपनी बेड़ियों के बारे में लगातार पुरजोर तरीके से बताती रही हैं, पर पूरी दुनिया ने इस विषय पर एक अजीब सी चुप्पी साध रखी है। जाहिर है, इस चुप्पी ने तालिबान को एक नई हिम्मत दी और उनके लड़ाकों ने कभी बच्चियों के स्कूल में आग लगाई, कभी महिला पत्रकारों की हत्या की तो कभी किसी गाँव की हरेक महिला के साथ बलात्कार किया और लैंगिक समानता का नारा देने वाले सभी नेता बस इस तमाशे को देखते रहे।

इन सारी समस्याओं के बाद भी अफगानिस्तान की महिलायें रुकी नहीं, बल्कि हरेक क्षेत्र में आगे बढ़ती रहीं। अफगानिस्तान में महिला कवियित्रियों की एक लम्बी परंपरा रही है और उन्होंने केवल अपनी आजादी पर ही नहीं बल्कि प्रेम, प्रकृति और दूसरे विषयों पर भी ढेरों कवितायें लिखी हैं।

फिल्म निर्देशक सहरा करीमी ने 15-16 अगस्त 2021 को एक भावुक पत्र के माध्यम से दुनिया से मदद की गुहार लगाई थी। उन्होंने लिखा था, "कुछ हफ्तों में तालिबान ने कई स्कूलों को तबाह कर दिया है और 20 लाख लड़कियों को फिर से स्कूल से निकाल दिया है। मैं इस दुनिया को नहीं समझती। मैं इस चुप्पी को नहीं समझती। मैं खड़ी हो जाऊँगी और अपने देश के लिए लड़ूँगी लेकिन मैं यह का अकेले नहीं कर सकती।" इस पत्र के साथ ही उन्होंने एक कविता लिखी थी- "जब बोलने का वक्त होता है, हम चूक जाते हैं"। इस कविता का अनुवाद सुभाष राय ने किया है।

जब बोलने का वक्त होता है, हम चूक जाते हैं

जब उन्होंने

ऐलान किया कि लड़ाई खत्म हो गई है

लोग घबराकर हवाई अड्डों और पड़ोसी देशों

की सरहदों की ओर भागने लगे

वे समझ गए कि अब

युद्ध शुरू हो गया है।

जब उन्होंने

यकीन दिलाने की कोशिश की कि

औरतों को काम पर जाने की आजादी होगी

बच्चियों को स्कूल जाने से नहीं रोका जाएगा

तब सबसे ज्यादा डर लगा

औरतों को।

सहरा करीमी

की आवाज दुनिया के कानों तक

पहुँचने के पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे हत्यारे

सेना ने बिना लड़े हथियार डाल दिए

राष्ट्रपति जान बचाकर निकल भागे

जो नहीं भाग पाए, उन्होंने तलवारों

की मरज़ी के आगे सर झुका दिए

कोड़ों के सामने पीठें

बिछा दी।

करीमी की आवाज़

में दर्द था, बिलकुल वैसा ही

जैसा उस कलाकार की आवाज़ में था

जिसकी गर्दन कुछ ही पलों पहले उतार ली गई

जैसा उस कवि के मुक्त गान में था

जिसे अभी-अभी फाँसी पर

लटका दिया गया।

वे लड़ना चाहती थीं

अपने बीस सालों की खातिर

उन्हें उम्मीद थी, लोग बर्बरों के विरुद्ध निकलेंगे

कट-कटकर जूझेंगे तलवारों से

वे हैरान हैं कि दुनिया इस तरह

खामोश क्यों है?

अक्सर जब बोलने

का वक्त होता है, हम चूक जाते हैं

और जब भी ऐसा होता है, हम तालिबान को

न्योता दे रहे होते हैं।

अफगानिस्तान की कवियित्री नादिया अंजुमन की कवितायें बहुत कम शब्दों वाली और बहुत गूढ़ अर्थों वाली होती हैं। इनकी एक कविता है- 'कोई हसरत तक नहीं।' इसका अनुवाद राजेश चन्द्र ने किया है।

कोई हसरत तक नहीं

कोई हसरत तक नहीं

मुँह खोलने की

फिर क्या गाना चाहिए मुझे...?

मैं, जिससे नफरत की

जिन्दगी ने

फर्क न रहा

जिसके गाने और न गाने में।

क्यों करनी चाहिए बात मुझे

मिठास के बारे में,

जब अहसास होता है मुझे कड़वाहट का?

आह,

आततायी की दावत ने

दस्तक दी मेरे मुँह को।

सँगी कोई नहीं

जिन्दगी में मेरा

तो फिर किसके लिये

मीठी हो सकती हूँ मैं?

नादिया अंजुमन की ही दूसरी कविता है- 'मैं नहीं हूँ चिनार।' इसका अनुवाद भी राजेश चन्द्र ने किया है।

मैं नहीं हूँ चिनार

मैं नहीं हूँ

चिनार का

कोई नाज़ुक पेड़

कि हिल जाऊँगी

कैसी भी हवा से।

मैं एक

अफ़गान औरत हूं,

जिसके मायने सिर्फ

चीत्कार से

समझ में आते हैं।


परवीन फैज जादा मलाल खूबसूरत कविता है- 'किसी रेगिस्तानी फूल की तरह।' इसका अनुवाद अनिल जनविजय ने किया है।

किसी रेगिस्तानी फूल की तरह

रेगिस्तान में खिले

किसी फूल की तरह

हम बारिश की प्रतीक्षा में हैं

किसी प्यासे नदी तट की तरह

घड़े के स्पर्श के लिए

प्यासे हैं हम

झुटपुटे में डूबी

किसी भोर की तरह

प्रकाश की लालसा है हमें

घर की तरह

स्त्री के अभाव में उजड़े

एक घर की तरह

किसी स्त्री की तलाश है हमें

अपने जीवन के तूफानी दौर से

थक चुके हैं हम बुरी तरह

सांस लेने के लिए हमें एक पल चाहिए

शान्ति की बाहों में

शान्ति से सोने के लिए

एक पल चाहिए।


अफगानिस्तान की कवियित्री मीना किश्वर कमाल की कविता है- 'मैं कभी पीछे नहीं लौटूंगी'। इसमें महिलाओं के दृढ-निश्चय की झलक है।

मैं कभी पीछे नहीं लौटूंगी

मैं कभी पीछे नहीं लौटूंगी,

मैं वह औरत हूँ जो जाग उठी है

अपने भस्‍म कर दिए गए बच्‍चों की राख से

मैं उठ खड़ी हुई हूँ और

बन गयी हूँ एक झँझावात

मैं उठ खड़ी हुई हूँ

अपने भाइयों की रक्‍तधाराओं से

मेरे देश के आक्रोश ने मुझे अधिकार-समर्थ बनाया है

मेरे तबाह और भस्‍म कर दिए गए गाँवों ने

दुश्‍मन के खिलाफ नफरत से भर दिया है।

मैं वह औरत हूँ

जो जाग उठी है

मुझे अपनी राह मिल गई है

और कभी पीछे नहीं लौटूंगी

मैने अज्ञानता के

बन्‍द दरवाजों को खोल दिया है

मैने सोने की हथकड़ि‍यों को

अलविदा कह दिया है

ऐ मेरे देश के लोगों,

मैं अब वह नहीं, जो हुआ करती थी

मुझे अपनी राह मिल गई है

और कभी पीछे नहीं लौटूँगी|

मैने देखा है नंगे पाँव,

मारे-मारे फिरते बेघर बच्‍चों को

मैने मेंहदी रचे हाथों वाली दुल्‍हनों को देखा है

मातमी लिबास में

मैंने जेल की ऊँची दीवारों को देखा है

निगलते हुए आजादी को अपने मरभुक्‍खे पेट में

मेरा पुनर्जन्‍म हुआ है

आजादी और साहस के महाकाव्‍यों के बीच

मैंने सीखे हैं आजादी के तराने

आख़िरी साँसों के बीच,

लहू की लहरों और विजय के बीच

ऐ मेरे देश के लोगो, मेरे भाई

अब मुझे कमजोर और नाकारा न समझना

अपनी पूरी ताक़त के साथ मैं तुम्‍हारे साथ हूँ

अपनी धरती की आजादी की राह पर

मेरी आवाज घुल-मिल गई है

हजारों जाग उठी औरतों के साथ

मेरी मुट्ठियाँ तनी हुई हैं

हजारों अपने देश के लोगों के साथ

तुम्‍हारे साथ मैंने अपने देश की ओर

कूच कर दिया है

तमाम मुसीबतों की, गुलामी की

तमाम बेड़ियों को

तोड़ डालने के लिए

ऐ मेरे देश के लोगो, ऐ भाई

मैं अब वह नहीं, जो हुआ करती थी

मैं वह औरत हूँ जो जाग उठी है

मुझे अपनी राह मिल गई है

और मैं अब कभी पीछे नहीं लौटूँगी।

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