Power Crisis in India : देश में बिजली और कोयला संकट की जड़ में सरकार का अडाणी के प्रति उदार रवैया

Power Crisis in India : लगातार साल भर से इस अनप्लान्ड कैपेसिटी को सरकार की ओर से देश का कोयला उपलब्ध कराया गया, इसी का नतीजा है कि जितना आज पावर प्लांट्स में कोयले की भंडारण और सप्लाई होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है....

Update: 2022-05-02 12:59 GMT

Power Crisis in India : देश में बिजली और कोयला संकट की जड़ में कहीं सरकार का अडाणी के प्रति उदार रवैया तो नहीं?

सुदीप श्रीवास्तव का विश्लेषण

Power Crisis in India : अभी देश में जिस कोयला संकट  या बिजली संकट (Coal Crisis Or Power Crisis) की चर्चा चल रही है वह पिछले साल अक्टूबर में हुए कोयला संकट से थोड़ा अलग है। पिछली बार देश में कोयले का बिल्कुल भी संकट नहीं था। बरसात के कारण चूंकि पावर प्लांट में कोयला नहीं पहुंच पाया था इसलिए पिछले साल ​थोड़े समय के लिए संकट संकट का माहौल पैदा हो गया था। पर इस बार के हालात बहुत अलग हैं। सामान्य तौर पर पावर प्लांट्स के पास 15 दिनो के कोयले का स्टॉक होना आदर्श स्थिति है। पर यदि किसी प्लांट में 8 दिन का कोयला भी शेष है तो यह भी घबराने की स्थिति नहीं है। हालांकि इस बार सीएए (CAA) के रिपोर्ट्स में जिन पावर प्लांट्स में 8 दिन का भी कोयला शेष है उसे भी खतरे के निशान से पार बताया जा रहा है।

देश में अभी जिस कोयला संकट या बिजली संकट की बात हो रही है उसका कारण है सरकार का का एडहॉक नीतियो पर चलना। बुनियादी रूप से किसी भी सेक्टर को प्रॉपर चलाने की बजाय पिछले पांच साल से यह सरकार एडहॉक के मापदंडों पर चल रही है, इसी के अनुसार समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी बिजली संकट से निपटने के लिए फिलहाल पैंसेंजर ट्रेन बंद करने का फैसला लिया गया है यह भी एडहॉक व्यवस्था के तहत उठाया गया कदम है। पर ऐसा कदम उठाने से पहले यह नहीं सोचा गया कि इतने बड़े पैमाने पर पैसेंजर ट्रेनों को बंदर करने से इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। अभी त्योहारों और शादी-ब्याह का सीजन है, ऐसे में पैसेंजर ट्रेन बंद करने से लोग एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा पाएंगे। पैसे खर्च नहीं खर्च कर पाएंगे ऐसे में अर्थव्यस्था में पैसे नहीं आएंगे और उसकी स्थिति खराब होगी।

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अभी बुनियादी समस्या ये है कि हमारे पास कुल पावर जेनरेशन कैपिसिटी है 4 लाख मेगावाट की है। पर अभी भी देश में बिजली खपत का पीक 2 लाख 7 हजार तक ही गया है। हमारे पास अभी भी कुल ​जरूरत का दोगुना पावर प्लांट लगा हुआ है। इस चार लाख में कोयला आधारित क्षमता लगभग 2 लाख 2 हजार मेगावाट का है। जबकि 91 हजार मेगवाट उत्पादन विंड और सोलर से है। टोटल स्थापित क्षमता में कोयला का प्रतिशत है 52 है। पर जब हम बिजली उपयोग की बात करते हैं तो कोयला आधारित प्लांट 76 प्रतिशत बिजली दे रहे हैं। इसका मतलब ये है कि हमारी सरकारें अन्य स्त्रोत होने के बावजूद कोयले पर अधिक निर्भर हैं। जबकि यह प्रतिशत 60 तक होनी चाहिए पर 76 से 80 प्रतिशत हम कोयले की बिजली का ही उपयोग कर रहे है। इसका मतलब है कि बाकी स्त्रोतों का हम पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।

अभी जो समस्या उत्पन्न हुई है वह इसलिए हुई है उसका मुख्य कारण यह है कि हमारे देश में बिजली उत्पादन का एक हिस्सा विदेश से आयातित कोयले पर निर्भर हैं। जैसे अदाणी मुंद्रा और टाटा मुंद्रा जैसी कंपनियां विदेश से आयातित कोयले से बिजली का उत्पादन करती थी। विदेशों में जब कोयला सस्ता था तब ये कंपनियां विदेश से कोयला मांगाकर बिजली बनाकर भरपूर मुनाफा बना रही थी। अब जब पिछले साल से विदेश में कोयले के दाम बढ़ गए, तो ये सारी कंपनियां सरकार के पास पहुंच गयी और कहने लगी कि आप हमें देश के कोयला का उपयोग करने की इजाजत दें। इसी इजाजत सरकार की ओर से दे भी दी गयी।

उपर से देखने पर यह बहुत अच्छा लगता है कि इस कदम से हम विदेशी मुद्रा बचाएंगे। पर इस अचानक पैदा हुई मांग को पूरा करने के लिए कोई तैयारी नहीं की गयी। पिछले छह-आठ महीने से लगातार आयातित कोयले पर आधारित प्लांटों को चूंकि विदेशों में कोयला महंगा हो गया उन्हें देश के कोयले की सप्लाई की गयी। ऐसा कहा जाता है कि फ्री मार्केट इकोनॉमी में जब मार्केट आपके पक्ष में होगा तो आप कमाएंगे जब मार्केट नीचे होगा तो आपको घाटा सहना पड़ेगा। तो इस नियम के हिसाब से जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत बढ़ गयी है तो कंपनियों को घाटा सहना चाहिए। पर ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने अपने घाटे से बचने के लिए देश के कोयले का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पर इसकी इजाजत देने से पहले सरकार ने यह नहीं सोचा कि जब ये कंपनियां कमाई कर रही थी तो क्या उन कंपनियों ने अपने फायदे को जनता को पासआउट किया था। जब ऐसा नहीं किया गया था तो फिर उनको भारत सरकार हर समय मुनाफे की गारंटी क्यों दे रही है।

लगातार साल भर से इस अनप्लान्ड कैपेसिटी को सरकार की ओर से देश का कोयला उपलब्ध कराया गया। इसी का नतीजा है कि जितना आज पावर प्लांट्स में कोयले की भंडारण और सप्लाई होनी चाहिए वह नहीं हो पा रही है। अभी एक हफ्ते पहले सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जो आयातित कोयले पर निर्भर पावर प्लांट हैं वे आयातित कोयला ही इस्तेमाल करें। पर यहां भी उन्हें यह यह छूट दी गयी है कि महंगा कोयला खरीदने से जो भार उनपर पड़ता है उतनी राशि वे अपनी दर बढ़कर उपभोक्ताओं से वसूल लें। यह एक नीतिगत घोटाले की तरह है। यूपीए सरकार के समय में वेग तरीके से घोटाले किए जाते थे इसलिए पकड़ में आ जाते थे। वर्तमान सरकार पॉलिसी में बदलाव करके घोटाले करती है इसलिए पकड़ में नहीं आ पाते हैं।

इस साल भारत में सर्वाधिक कोयला उत्पादन किया है। पर इसी साल सबसे बड़ी समस्या आ रही है। इसका कारण यही है कि किसी चीज को प्लान नहीं किया जा रहा है। अभी सरकार पैसेंजर ट्रेनें रोककर प्लांटों में कोयला पहुंचा रही है, यह अभी के लिए तो ठीक है पर जब बरसात का समय आएगा, बरसात में जब कोयला खदानों में उत्पादन घटेगा। उस समय अगर पावर की डिमांड बढ़ी तो उस समय आप कोयला कहां से लाएंगे? इस सरकार की जो व्यवस्था है उसमें बड़े पूंजीपति पॉलिसी निर्णय को प्रभावित कर रहे हैं। उसमें कोई कंटीन्यूटी नहीं है ​इसलिए इस तरह की स्थिति का लगातार सामना करना पड़ेगा। अगर आप आयातिक कोयला का प्रयोग बंद करना चा​हते हैं तो इसकी तैयारी के लिए तीन से पांच साल की प्लानिंग चाहिए। उस दौरान जब जब उतना कोल इंडिया का प्रोडक्शन आ जाएगा तब आप इस तरह की प्लानिंग कर सकते हैं। 15 साल से कोयला इंपोर्ट हो रहा था उस व्यवस्था को आप अचानक बदल देंगे तो ऐसी स्थिति का ही सामना करना पड़ेगा।

अगर आप समय पर उन स्थानों को बिजली नहीं देंगे जहां व्यापार है तो इसका अर्थवयस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। ये तो एक विसियस सायकल इस सरकार ने बनाकर रखा है। आॅक्सीजन के मामले में भी हमने पिछले साल यही देखा था। आॅक्सीजन के मामले में यही मारामारी देखने को मिली थी। समस्या ये है कि कुछ अधिकारी दिल्ली में बैठकर यह सरकार चला रहे हैं। मैं तो यह मानता हूं कि बड़े-बड़े मंत्रियों की भी नहीं सुनी जा रही है।

सरकार की जो सबसे बड़ी मजबूरी है वह उसकी आत्ममुग्धता है। यह सरकार आप अपने खिलाफ कुछ नहीं सुनना चाहती है। अगर आप अपने बात की एनालिसिस नहीं करते हैं, अगर अपने खिलाफ बात करने वालों को रोकना चाहते हैं तो ये आत्ममुग्धता आपको एक ट्रैप में लेकर जाती है। अभी जो गड़बड़ी हो रही है वो उसी ट्रैप का नतीजा है। आपको बहुत अच्छे से पता था कि अप्रैल-मई में डिमांड पीक पर जाएगी। पिछले साल हम 2 लाख 1 हजार मेगावाट का उपभोग टच कर चुके थे। 2 लाख 1 हजार अगर हम पिछले साल जुलाई मे टच कर चुके थे तो इस साल 2 लाख 10 हजार टच कर सकते हैं। अगर उतने की भी प्लानिंग आप पहले से नहीं कर रहे हैं तो यह साफ बताता है कि यह पूरी तरह से सरकार की असफलता है।

अभी इस स्थिति से निपटने के लिए जो कदम उठाने चाहिए वो है लांग टर्म प्लानिंग। आप जो कोयले के अलावे अन्य रिसोर्सेज हैं जिसके प्लांट लगे हुए हैं पर उपयोग कम है उस पर ध्यान देना चाहिए। 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरनेशनल सोलर एलायंस में कमिटमेंट किया था कहा था कि साल 2022 तक विंड और सोलर पावर प्लांट से बिजली उत्पादन 175 गीगावाट होगी। आज जब 2022 बीतने में केवल 8 महीने बचे हैं हम उस लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 55000 मेगावाट बिजली उत्पादन कर रहे हैं।

साथ ही जो प्लांट हमने लगा लिए हैं उनका भी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा इसलिए हो रहा है क्यांकि जो 37 कोल ब्लाक जो सरकारी कंपनियों को दिए गए नए खदान खोलने के लिए उनका एमडीओ एक ही कंपनी है वह है अडाणी। भारत की पावर आवश्यकता को पूरा करने के लिए निश्चित रूप से कोयला सबसे बड़ा साधन है पर इसकी पूर्ति को अडाणी का बंधक बना दिया है। वे कोयला में भी सबसे बड़े खननकर्ता के रूप में सामने आने वाले हैं। ढेरों कोल ब्लॉक उनके पास एमडीओ के अंतर्गत है। इन खदानों को शुरू करने के लिए भूमि अधिग्रहण होने हैं, उन सबके क्लीयरेंस चाहिए। भूमि अधिग्रहण में पुलिस को लाठी-गोली चलानी पड़ सकती है। इसलिए यह माहौल बनाया जा रहा है कि देश में कोयला संकट है। इसलिए किसी भी तरह से उन्हें खुलावाया जाए। इसलिए यह हाहाकार का माहौल तैयार किया जा रहा है।

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