Russia-Ukraine War : कैसे रोके जा सकते हैं युद्ध और इनसे होने वाली तबाही-बर्बादी? पूर्व सोवियत संघ के पास ही है इसका जवाब
Russia-Ukraine War : समाजवाद के उच्च आदर्शों के साथ 15 राज्यों को मिलाकर बने सोवियत संघ में उत्पादन मुनाफे के लिए नहीं बल्कि समाज जरुरतों को ध्यान में रखकर किया जाता था। उत्पादन के साधन जनता की सामूहिक सम्पत्ति थे....
मुनीष कुमार का विश्लेषण
Russia-Ukraine War : पूर्व सोवियत संघ के सबसे बड़े देश रुस ने अपने ही देश का हिस्सा रहे यूक्रेन (Ukraine) को 3 तरफ से घेरकर मिसाइलों, बमों, टैंक व लड़ाकू विमानों से विगत 24 फरवरी को उस पर हमला कर दिया है। इस हमले में अभी तक सैकड़ों यूक्रेनी नागरिकों की जानें जा चुकी हैं। दुनिया के अमन पसंद लोग इस हमले से बेहद विचलित हैंऔर इस हमले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और इस युद्ध को रोके जाने के लिए आवाज उठा रहे हैं। रुस में भी इस हमले खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं जिनका रुस (Russia) की पुतिन (Vladimir Putin) सरकार द्वारा दमन किया जा रहा है।
रुस के मंसूबे बेहद खतरनाक हैं
वर्तमान में रुस द्वारा यूक्रेन के साथ किया जा रहा युद्ध (Russia Ukraine War) एक अन्यायपूर्ण युद्ध है। इस युद्ध के माध्यम से रुस न केवल अपनी सीमाओं का विस्तार करना चाहता है बल्कि उसका कहना है कि यूक्रेन का कभी भी अलग देश के रुप में अस्तित्व नहीं रहा है और वह रुस का ही एक हिस्सा है। इस युद्ध के माध्यम से रुस दुनिया में स्वयं को एक महाशक्ति के रुप में स्थापित करना चाहता है। उसके इस मंसूबे को पूरा करने में अमेरिका व नाटो की विस्तारवादी हरकतों ने रुस के लिए अवसर पैदा कर दिया है।
अमेरिका और उसके नाटो के सहयोगी देशों ने सोवियत संघ के पूर्व देश एस्टोनिया, लाटविया और लिथुनिया को नाटो में शामिल करके वहां भी अपने सैनिकअड्डे कायम कर लिए हैं। यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है। रुस इसका विरोध कर रहा था तथा वह यूक्रेन व अमेरिका से आश्वासन चाहता था कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बनाया जाएगा।
रुस ये भी चाहता है कि 1997 के बाद नाटो में शामिल हुए पोलेन्ड, बुल्गारिया, स्लोवाकिया स्लोवेनिया समेत 14 यूरोप के देशों से नाटो सभी सैनिक अड्डे हटाए।
रुस ने यूक्रेन के दो क्षेत्र लुहान्स वदोनेस्क को अलग देश के रुप में मान्यता दे दी है। रुस इन क्षेत्रों में पहले से हीअलगावादियों को समर्थन देता रहा है। रुस का कहना है कि यूक्रेन का वर्तमान राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की अमेरिका का कठपुतली है और वह रुस के लिए खतरा है।
रुस की दादागिरी व सीमा विस्तार की महत्वाकांक्षा का ये पहला मामला नहीं है। 8 वर्ष पूर्व रुस यूक्रेन से क्रीमिया को हथिया चुका है। 2008 में सोवियत संघ के एक दूसरे पूर्व के देश जार्जिया पर हमला कर चुका है। इस हमले के बाद रुस ने जार्जिया के 3 टुकड़े कर दिये थे। जार्जिया के दो क्षेत्र जो कि क्षेत्रफल में बहुत ही छोटे हैं, वहां पर अपनी सेना भेजकर दो अलग देश अबखाजिया और ओसेसिया बनाकर, उन पर अपनाआधिपत्य स्थापित कर लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अबखाजिया और ओसेसिया अभी तक मान्यता नहीं दी है। रुस समेत दुनिया के मात्र 5 देशों ने ही इन्हें मान्यता प्रदान की है।
अब यही काम रुस यूक्रेन में करना चाहता है। उसने लुहान्स व दोनेस्क को अलग देश घोषित कर दिया है। लुहान्स व दोनेस्क के आजाद होने का मामला यूक्रेन का अंदरुनी मामला है। इन क्षेत्रों की जनता को ये अधिकार है कि वह यूक्रेन के शासकों के खिलाफ अपनी आवाज उठाए और यदि वहां की जनता अलग देश के रुप में अपना अस्तित्व बनाना चाहती है तो इसके लिए जनमत संग्रह कराया जाए। रुस को ये अधिकार नहीं है कि वह यूक्रेन के इस अंदरुनी मसले में सैन्य हस्तक्षेप करे।
नाटो और अमेरिका का रक्त रंजित इतिहास
सोवियत संघ में मजदूर-किसानों के समाजवादी गणतंत्र के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में 1949 में 12 देशों ने मिलकर सैन्य संगठन नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन) का गठन किया था। नार्थ अमेरिका के दो तथा यूरोप के 28 देश इसके सदस्य हैं। नाटो को नार्थ अटलांटिक टेररिस्ट आर्गनाइजेशन कहना ज्यादा सही होगा। इसके कुल फंड का तीन चौथाई भाग अमेरिका से आता है। नाटो की सेनाएं बोसनिया, कोसोवो,अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया आदि देशो में सैन्य हस्तक्षेप करके लाखों लोगों की युद्ध हत्याएं कर चुकी हैं। नाटो में शामिल 30 देश दुनिया के कुल सैन्य खर्च का 57 प्रतिशत खर्च करते हैं।
नाटो के सरगना संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया के 80 मुल्कों में 800 सैन्य अड्डे हैं। अमेरिका द्वितीय विश्व यु़द्ध के बाद से दो दर्जन से भी अधिक देशों पर हमले करने व उनकी सम्प्रभुता में हस्तक्षेप करने का गुनाहगार है। दुनिया के विभिन्न देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना व चुनी हुयी सरकारों का तख्तापलट करना अमेरिका की नीति है। ईजराइल ने अपने पड़ौसी मुल्क फिलीस्तीन पर बार-बार हमले कर उसके बड़े भाग पर कब्जा कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जब भी ईजराइल के खिलाफ प्रस्ताव आता है,अमेरिका वीटो का इस्तेमाल कर इसे गिरा देता है।
सोवियत समाजवादी रिपब्लिक संघ का दौर
1917 में बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में हुयी समाजवादी क्रांति के बाद रुस और यूक्रेन समाजवादी सोवियत संघ के ही हिस्से थे। 1991 में रुस के विघटन के बाद आज वही रुस बलपूर्वक यूक्रेन को कब्जाने की कोशिश कर रहा है।
1917 में लेनिन के नेतृत्व में मजदूर-किसानों ने जारशाही का खात्मा कर सोवियत संघ का गठन किया था। इस सोवियत गणराज्य की खास बात ये थी कि ये दुनिया का पहला मजदूर-किसानों का वास्तविक लोकतंत्र था। इस समाजवादी सोवियत गणराज्य का गठन 15 गणराज्यों को मिलाकर किया गया था जिसके प्रत्येक नामित राज्य को बराबरी का अधिकार था। इतना ही नहीं सोवियत समाजवादी गणराज्य में शामिल सभी इन 15 गणराज्यों का अपने गणतंत्र की विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए अपना संविधान भी था।
समाजवादी सोवियत संघ के संविधान में शामिल सभी 15 राज्यों को सोवियत संघ से सम्बन्ध विच्छेद करने का अधिकार सुरक्षित किया था तथा इसमें शामिल गणराज्यों की सीमा क्षेत्र को उसकी सहमति के बगैर परिवर्तितन हीं करने का अधिकार भी दर्ज किया गया था।
ये सोवियत समाजवादी गणराज्य इंग्लैड, अमेरिका जैसे देशों के छद्म लोकतांत्रिक देश होने के मुकाबले मजदूर-किसानों का वास्तविक जनवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र था। सोवियत समाजवादी गणतंत्र के संविधान में दर्ज किया गया था कि प्रत्येक सक्षम नागरिक के लिए काम करना कर्तव्य और सम्मान की बात है। सिद्धान्तः जो काम नहीं करेगा वह भोजन का हकदार नहीं होगा।
सोवियत समाजवादी गणतंत्र में काम का अधिकार, इलाज का अधिकार, प्रारम्भिक व उच्च शिक्षा निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार, चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार, 7 घंटे का कार्य दिवस व छुट्टीआदि केअधिकार जैसे अधिकार प्रत्येक देशवासी को मिले हुए थे। सोवियत संघ में धर्म को राज्य और स्कूलों से अलग रखा गया था।
समाजवाद के उच्च आदर्शों के साथ 15 राज्यों को मिलाकर बने सोवियत संघ में उत्पादन मुनाफे के लिए नहीं बल्कि समाज जरुरतों को ध्यान में रखकर किया जाता था। उत्पादन के साधन जनता की सामूहिक सम्पत्ति थे। दुनिया के दूसरे मुल्क जो लूटऔर शोषण का राज कायम करना चाहते थे वे सोवियत संघ से बेहद भयभीत थे। इसलिए वे सोवियत संघ के नेता स्टालिन को तानाशाह बताकर उन्हें बदनाम करना चाहते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर की सेनाओं ने जब यूरोप पर कब्जा करते हुए सोवियत संघ प्रवेश किया तो दुनिया के साम्राज्यवादी शासकों कहा कि स्टालिन तानाशाह है और वहां की जनता स्टालिन के खिलाफ बगावत कर देगी, हिटलर की सेनाए इस तरह रुस में घुस जाएंगी जैसे मक्खन में चाकू घुस जाता है। परन्तु ऐसा हुआ नहीं। ये 15 गणतंत्रों को मिलाकर बने सोवियत संघ की ही सामूहिक ताकत ही थी जिसने हिटलर को परास्त कर उसे आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया। ये सेवियत संघ की जनता व उसके सर्वमान्य नेता स्टालिन के नेतृत्व वाला समाजवादी राज्य था जिसके 1 करोड़ से अधिक नागरिकों ने अपने जीवन की आहूति देकर, हिटलर के दुनिया जीतने के मंसूबे नाकाम कर दिये थें।
स्टालिन की मृत्यु के बाद 1956 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने निकिता ख्रुश्चेव की पूंजीवादी नीतियों ने सोवियत संघ के विघटन के बीज बो दिये थे।
खु्रश्चेव ने सोवियत संघ की समाजवादी नीतियों को धीरे-धीरे बदलकर उसे पूंजीवाद की तरफ धकेलने का काम शुरु कर दिया। सेवियत संघ जो मजदूर-किसानों का समाजवादी राज्य था उसे आमजनता का राज्य घोषित कर दिया। इसके बाद पूंजीवादी पथगामियों का वह वर्ग जिसमें अभी भी अमीर बनने व शासन करने की चाह थी उसके सोवियत सत्ता तक पहुंचने का रास्ता खुल गया। जिन पूंजीवादी तत्वों को अभी तक सोवियत संघ में चुनाव जीतकर सत्ता तक पहंचने का अधिकार नहीं था, सोवियत राज्य समस्त जनता का राज्य घोषित किए जाने के बाद अब वे उसके राज्य व देश की सोवियतों में चुनकर पहुंच सकते थे।
ख्रुश्चेव व उसके बाद के शासकों द्वारा अपनाई गयी पूंजीवादी नीतियों ने सोवियत संघ में शामिल राष्ट्रीयताओं के बीच में कलह-विग्रहों को जन्म दियाऔर उन्हें बढ़ाया, इस सबकी परिणीति 1991 में सेवियत संघ के विघटन के रुप में सामने आयी।
समाजवाद ही युद्धों को खत्म किया जा सकता है
दुनिया के किसी भी संवेदनशील नागरिक का युद्धों से आहत हो जाना स्वभाविक है। परंतु बड़ा सवाल ये है कि दुनिया में युद्धों को कैसे रोका जाए।
लूट और शोषण परआधारित इस दुनिया में युद्ध एक नियति हैं। दुनिया के ताकतवर मुल्कों द्वारा किए जा रहे ये युद्ध अपनी सीमाओं के विस्तार, अपने प्रभुत्व क्षेत्र में इजाफा करने, मुनाफे के लिए नये बाजारों की तलाश करने व प्राकृतिक संसाधानों पर कब्जे के लिए किए जा रहे हैं।
दुनिया में जब तक आदमी द्वारा आदमी का शोषण जारी रहेगा, साम्राज्यवाद व पूंजीवाद कायम रहेगा, इन युद्धों और इनसे होने वाली तबाही-बर्बादी को रोका नहीं जा सकता।
युद्धों को खत्म करना है तो इसकी जड़ को खत्म करना पड़ेगा, पूंजीवाद-साम्राज्यवाद को खत्म करना पड़ेगा। दुनिया के मजदूर-किसान व न्यायप्रिय जनता को इसके लिए आगेआकर लूट-अन्याय-शोषण पर टिकी वर्तमान दुनिया व समाज के खिलाफ एक नये समाज को बनाने की पहलकदमी लेनी होगी। ऐसा समाजवादी समाज बनाना होगा जिसको बनाने का बीड़ा दुनिया के महान नेता लेनिन व स्टालिन ने उठाया था।
दुनिया में समाजवाद को कायम किए बगैर युद्धों को किसी भी कीमत पर नहीं रोका जा सकता। पूर्व का समाजवादी सोवियत संघ इसका उदाहरण है। वहां पर जब तक समाजवाद कायम था सभी 15 गणतंत्रों की जनता मिलजुलकर रह रही थी। पूंजीवाद की पुर्नस्थापना होते ही माहौल बदल गया। लूट-खसोट और आपसी युद्ध शुरु हो गये।
(राजनीतिक मसलों के विश्लेषक मुनीष कुमार समाजवादी लोकमंच के संयोजक हैं।)