दुनिया को गरीब बना रहा है पूंजीवाद, कोरोना काल में अरबपतियों की संपत्ति में हो रही रिकॉर्ड वृद्धि

एक तरफ अरबपति बढ़ रहे हैं, उनकी संपत्ति में रिकॉर्ड बृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ दुनिया में अत्यधिक गरीबों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है। गरीबों की संपत्ति कहाँ जा रही है, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है.....

Update: 2020-10-08 10:49 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

पूंजीवाद के शुरुआती दौर में कहा जाता था कि इससे उद्योगपतियों को फायदा होगा, फिर यह फायदा श्रमिकों तक पहुंचेगा और फिर समाज तक – यानि पूंजीवाद का फायदा समाज के हर वर्ग तक पहुंचेगा, और फिर धीरे-धीरे पूरा समाज समृद्ध होता जाएगा। पर, अब यह भ्रम लगातार टूटता जा रहा है और स्पष्ट हो रहा है कि पूंजीवाद से केवल चन्द लोगों को फायदा होता है और शेष आबादी लगातार गरीब होती जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण किसी भी वैश्विक आपदा के दौरान दुनिया के चुनिन्दा अरबपतियों की संपत्ति में अप्रत्याशित बृद्धि और शेष आबादी में भयानक गरीबी का पनपना है।

इसी सप्ताह विश्व बैंक ने बताया है कि कोविड 19 के दौरान विश्वव्यापी लॉकडाउन के प्रभाव के कारण सामान्य अवस्था की तुलना में अगले वर्ष के अंत तक दुनिया में गरीबों की संख्या में 15 करोड़ से अधिक की बृद्धि होगी। दूसरी तरफ, यूबीएस नामक एक स्विस बैंक के अनुसार दुनिया में कोविड 19 के दौर में, यानि इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के दौरान अरबपतियों की सम्मिलित पूंजी में 27.5 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गई है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है।

पूंजीवाद के समर्थक लगातार बताते हैं कि दुनियाभर के अरबपतियों ने कोविड 19 के दौर में जनता की खूब मदद की है, पर आंकड़े बिलकुल विपरीत तथ्य बताते हैं। अप्रैल से जुलाई के बीच दुनियाभर के अरबपतियों में से कार-निर्माता कंपनी टेस्ला के संस्थापक एलोन मस्क की पूंजी में सबसे अधिक, यानि 76 अरब का इजाफा हुआ, जबकि मार्च से जून के बीच दुनिया के कुल अरबपतियों में से 209 ने सम्मिलित तौर पर महज 7.2 अरब डॉलर का खर्च जनता को मदद पहुंचाने के उद्देश्य से किया।

विश्व बैंक की वैश्विक गरीबी से सम्बंधित एक नयी रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष युद्ध, गृहयुद्ध, जलवायु परिवर्तन और कोविड 19 के सम्मिलित प्रभाव के कारण गरीबी उन्मूलन के लिए पिछले दो दशकों के कार्यों का प्रभाव समाप्त हो चुका है, यानि गरीबी उन्मूलन के सन्दर्भ में दुनिया दो दशक पीछे पहुँच गई है। इस वर्ष के आरम्भ में दुनिया की 9.1 प्रतिशत आबादी बेहद गरीब थी, यह संख्या वर्ष के अंत तक बढ़कर 9.4 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी। विश्व बैंक के अनुसार बेहद गरीब आबादी वह है, जहां प्रतिव्यक्ति दैनिक आय 1.9 डॉलर से भी कम है। पिछले पांच वर्षों से वैसे भी दुनिया में बेहद गरीबी उन्मूलन की दर पहले से कम हो चुकी थी। वर्ष 1990 से 2015 तक हरेक वर्ष दुनिया में बेहद गरीब आबादी 1 प्रतिशत घटती रही, पर इसके बाद के वर्षों में यह दर प्रतिवर्ष 0.7 प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ पाई।

विश्व बैंक का आकलन है कि इस वर्ष यदि कोविड 19 की मार नहीं पड़ती तो संभव था कि बेहद गरीब आबादी कुल आबादी का महज 8 प्रतिशत ही रह जाती। वास्तविक संख्या के सन्दर्भ में विश्व बैंक का आकलन है कि इस वर्ष के अंत तक बहद गरीब आबादी में 9 करोड़ से 11 करोड़ की बृद्धि हो जायेगी, और अगर दुनिया के देशों ने इन गरीबों के जीवन स्तर सुधारने के लिए शीघ्र प्रभावी कदम नहीं उठाया तो अगले वर्ष भी यह बृद्धि कायम रहेगी और अगले वर्ष के अंत तक बेहद गरीबी का सामना करते लोगों में 15 करोड़ लोग और जुड़ जायेंगे।

दूसरी तरफ स्विस बैंक, यूबीएस, के अनुसार दुनिया में इस समय कुल 2189 अरबपति हैं, और इनकी सम्मिलित पूंजी में कोविड 19 के दौर में अप्रैल से जुलाई के बीच 10.2 खरब डॉलर का इजाफा हुआ है। पूंजी में यह बृद्धि इस वर्ष के आरम्भ में अरबपतियों की सम्मिलित पूंजी का 27.5 प्रतिशत है। अरबपतियों की संपत्ति में यह अप्रत्याशित बृद्धि किसी दौर में नहीं देखी गई, इसके पहले सबसे अधिक बृद्धि वर्ष 2017 में 8.9 खरब डॉलर की थी। वर्ष 2017 में अरबपतियों की संख्या 2158 थी, यानि इनकी संख्या भी बढ़ चुकी है।

जाहिर है एक तरफ अरबपति बढ़ रहे हैं, उनकी संपत्ति में रिकॉर्ड बृद्धि हो रही है और दूसरी तरफ दुनिया में अत्यधिक गरीबों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो रही है। गरीबों की संपत्ति कहाँ जा रही है, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति, अमेज़न के संस्थापक जेफ़ बेन्जोस हैं, और अप्रैल से जुलाई के बीच इनकी संपत्ति में 74 अरब डॉलर की बृद्धि दर्ज की गई। अरबपतियों के सन्दर्भ में संपत्ति में यह बृद्धि सर्वाधिक नहीं है – टेस्ला मोटर्स के मालिक एलोन मस्क की संपत्ति में इसी दौर में 76 अरब डॉलर की बृद्धि दर्ज की गई।

हाई पे सेंटर नामक संस्था के निदेशक ल्युक हिल्यार्ड के अनुसार दुनिया की पूरी पूंजी का चन्द लोगों में सिमट जाना नैतिक तौर पर तो सही नहीं ही है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था और समाज के लिए भी घातक है। यह पूंजीवाद की असफलता भी दर्शाता है। ल्युक हिल्यार्ड पिछले कुछ वर्षों से लगातार बताते रहे हैं कि पूंजीवाद ने समाज में इस कदर आर्थिक और सामाजिक असमानता पैदा कर दी है कि अब कभी भी पूंजीपतियों के विरुद्ध आन्दोलन हो सकते हैं, हिंसा हो सकती है या फिर समाज से उनका बहिष्कार भी किया जा सकता है।

अरबपतियों की पूंजी हरेक देश में बढ़ रही है। हाल में ही राहुल गांधी ने कहा था कि मोदी सरकार अडानी-अम्बानी के हाथों की कठपुतली है। भले ही, इस वक्तव्य पर मीडिया और सोशल मीडिया ने ध्यान नहीं दिया हो, पर राहुल गांधी का यह बयान देश और दुनिया की स्थिति का सटीक आकलन है और हरेक समय आंकड़े और सरकारों की गतिविधियाँ इसकी पुष्टि करते रहते हैं। संसद के पिछले सत्र में ताबड़तोड़ तरीके से कृषि और श्रमिकों से सम्बंधित क़ानून बिना बहस के ही पास करा लिए गए।

मोदी सरकार जिन कानूनों को जनता के हित में बता रही है, उन्ही कानूनों के खिलाफ पूरे देश में आन्दोलन किये जा रहे हैं। इन आन्दोलनों का मुख्य कारण यह है कि नए कृषि या फिर श्रमिकों से सम्बंधित कानूनों से किसानों या श्रमिकों का भला नहीं हो रहा है बल्कि केवल पूंजीपतियों का ही भला हो रहा है। श्रमिकों के क़ानून के अनुसार कोई भी उद्योग अपनी मर्जी से बिना किसी मंजूरी के ही 300 श्रमिकों की छटनी कर सकता है। अब देश को श्रमिकों की छटनी वाला क़ानून नहीं चाहिए, बल्कि ऐसा क़ानून चाहिए जिससे 300 तक सांसदों या विधायकों की छटनी जनता किसी भी समय कर सके।

विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2015 के बाद से दुनिया में गरीबी उन्मूलन की रफ़्तार कम हो गई है। दुनिया की राजनीति पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि वर्ष 2014 के बाद से भारत समेत दुनिया के अधिकतर देशों में चरमपंथी दक्षिणपंथियों की सरकारें सत्ता में पहुँच गईं। यह सब अनायास नहीं हुआ है, बल्कि मीडिया, सोशल मीडिया, चरमपंथी और दक्षिणपंथी विचारों वाले लोगों की सोची-समझी रणनीति है। ये सभी एक दूसरे से जुड़े हैं क्योंकि जनता की लूट इनका पहला और आख़िरी एजेंडा होता है।

मोदी जी नमस्ते ट्रम्प का आयोजन या फिर अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा दरअसल ट्रम्प के लिए नहीं लगाते बल्कि दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थन में लगाते हैं। ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोल्सेनारो हमारे गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि इसलिए नहीं बनते कि वे महान है, बल्कि इसलिए बनते हैं कि वे जनता के शोषण में माहिर हैं। चीन के नेताओं से बात करने भारतीय नेता बार-बार रूस में पुतिन की शरण में इसलिए नहीं पहुंचते कि वे अच्छे मध्यस्थ है, बल्कि पुतिन जनता को कुचलते हैं और विरोधियों को जहर देकर मारते हैं।

पूंजीवादी व्यवस्था भी जनता को कुचलकर आगे बढ़ती है, जनता के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करती है – जाहिर है ऐसी व्यवस्था चरमपंथी और दक्षिणपंथियों की विचारधारा से मेल खाती है। इसीलिए अरबपतियों को कठपुतली सरकार की जरूरत पड़ती है। विडम्बना यह है कि लोकतंत्र अभी तक भ्रम में है – जहां जनता समझती है कि सरकार उसने चुनी है, और सरकार समझती है कि वह स्वतंत्र है।राहुल गांघी ने बिलकुल सही कहा था – मोदी सरकार अडानी-अम्बानी की कठपुतली से अधिक कुछ भी नहीं है।

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