Shaheed Diwas: महात्मा गाँधी मरते नहीं, उन्हें मारने की कोशिश वाले मरते हैं

Shaheed Diwas: गांधी जी को अपने देश में मारने के कोशिश पिछले कुछ वर्षों से लगातार की जा रही है, कभी उनके पुतले को गोली मारी जाती है, कभी उनकी मूर्ति गिराई जाती है, कभी उनके सादे आश्रम को पांच सितारा पर्यटन स्थल बानाने का प्रयास किया जाता है,

Update: 2022-01-30 05:23 GMT

Shaheed Diwas: महात्मा गाँधी मरते नहीं, उन्हें मारने की कोशिश वाले मरते हैं

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Shaheed Diwas: गांधी जी को अपने देश में मारने के कोशिश पिछले कुछ वर्षों से लगातार की जा रही है, कभी उनके पुतले को गोली मारी जाती है, कभी उनकी मूर्ति गिराई जाती है, कभी उनके सादे आश्रम को पांच सितारा पर्यटन स्थल बानाने का प्रयास किया जाता है, कभी उन्हें चतुर बनिया कहा जाता है, कभी उनके पसंदीदा भजन की धुन को विजय चौक पर खामोश कर दिया जाता है और कभी नाठुरान गोडसे के मंदिर बनाने लगते हैं| दरअसल, उन्हें मिटाने का प्रयास करने वाले निहायत ही बेवकूफ किस्म के लोग हैं क्योंकि उनकी हरेक ऐसी कोशिश गांधी जी को हमारे समाज में पहले से अधिक मजबूत कर जाती है. अब तो हमारे प्रधानमंत्री जी को विदेशी दौरों पर विदेशी नेता ही गांधी जी की याद दिला जाते हैं. सही मायने में, हमारे देश ही एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हस्ती गांधी जी ही हैं. पिछले कुछ वर्षों से यूनाइटेड किंगडम में पर्यावरण बचाने के आन्दोलनकारी सविनय अवज्ञा और असहयोग जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं. यूरोप और मध्य पूर्व की जेलों में बंद अनेक राजनैतिक बंदी जेलों में लगातार भूख हड़ताल करते हैं. जाहिर है, गांधी जी को मिटाने का प्रयास करने वालों की ही हस्ती मिटने का खतरा रहता है.

गांधी जी ने हिंदी साहित्य जगत को बहुत प्रभावित किया है| हरिशंकर पारसाई ने जनसंघ के जमाने में जब मोरारजी देसाए प्रधानमंत्री थे तब गांधी जी के नाम अपने ही अंदाज में एक पत्र लिखा था – जिसे पड़कर आप पारसाई जी के व्यंग से अधिक उनके दूरदर्शी राजनैतिक विश्लेषण से प्रभावित होंगें| उन्होंने लिखा है ""आपके नाम पर सड़कें हैं- महात्मा गाँधी मार्ग, गाँधी पथ| इनपर हमारे नेता चलते हैं| कौन कह सकता है कि इन्होंने आपका मार्ग छोड़ दिया है| वे तो रोज़ महात्मा गाँधी रोड पर चलते हैं| इधर आपको और तरह से अमर बनाने की कोशिश हो रही है| पिछली दिवाली पर दिल्ली के जनसंघी शासन ने सस्ती मोमबत्ती सप्लाई करायी थी| मोमबत्ती के पैकेट पर आपका फोटो था| फोटो में आप आरएसएस के ध्वज को प्रणाम कर रहे हैं| पिछे हेडगेवार खड़े हैं| एक ही कमी रह गयी| आगे पूरी हो जायेगी| अगली बार आपको हाफ पेंट पहना दिया जायेगा और भगवा टोपी पहना दी जायेगी| आप मजे में आरएसएस के स्वयंसेवक के रुप में अमर हो सकते हैं| आगे वही अमर होगा जिसे जनसंघ करेगा|"

पारसाई जी ने आगे लिखा है, "कांग्रेसियों से आप उम्मीद मत कीजिये| यह नस्ल खत्म हो रही है| आगे गड़ाये जाने वाले में कालपत्र में एक नमूना कांग्रेस का भी रखा जयेगा, जिससे आगे आनेवाले यह जान सकें कि पृथ्वी पर एक प्राणी ऐसा भी था| गैण्डा तो अपना अस्तितव कायम रखे है लेकिन कांग्रेसी नहीं रख सका| मोरारजी भाई भी आपके लिए कुछ नहीं कर सकेंगे| वे सत्यवादी हैं| इसलिए अब वे यह नहीं कहते कि आपको मारने वाला गोडसे आरएसएस का था| यह सभी जानते हैं कि गोडसे फांसी पर चढ़ा, तब उसके हाथ में भगवा ध्वज था और होठों पर संघ की प्रार्थना- नमस्ते सादा वत्सले मातृभूमि| पर यही बात बताने वाला गाँधीवादी गाइड दामोदरन नौकरी से निकाल दिया गया| उसे आपके मोरारजी भाई ने नहीं बचाया| मोरारजी सत्य पर अटल रहते हैं| इस समय उनके लिए सत्य है प्रधानमंत्री बने रहना| इस सत्य की उन्हें रक्षा करनी है| इस सत्य की रक्षा के लिए जनसंघ का सहयोग जरूरी है| इसलिए वे यह झूठ नहीं कहेंगे कि गोडसे आरएसएस का था| वे सत्यवादी है| तो महात्माजी, जो कुछ उम्मीद है, बाला साहब देवरास से है| वे जो करेंगे वही आपके लिए होगा| वैसे काम चालू हो गया है| गोडसे को भगत सिंह का दर्जा देने की कोशिश चल रह रही है| गोडसे ने हिंदू राष्ट्र के विरोधी गाँधी को मारा था| गोडसे जब भगत सिंह की तरह राष्ट्रीय हीरो हो जायेगा, तब तीस जनवरी का क्या होगा? अभी तक यह 'गाँधी निर्वाण दिवस है', आगे 'गोडसे गौरव दिवस' हो जायेगा| इस दिन कोई राजघाट नहीं जायेगा, फिर भी आपको याद जरूर किया जायेगा| जब तीस जनवरी को गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था| बताया जायेगा कि इस दिन उस वीर ने गाँधी को मार डाला था| तो आप गोडसे के बहाने याद किए जायेंगे| अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था| एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फयदा मिलेगा आपको? लोग पूछेंगे- यह गाँधी कौन था? जवाब मिलेगा- वही, जिसे गोडसे ने मारा था|"

हूबनाथ पाण्डेय की एक कविता है, वसीयत. इसमें उन्होंने बताया है कि गांधी के मरने के बाद किस तरह समाज ने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बाँट दिया है|

वसीयत/हूबनाथ पाण्डेय

गांधी के मरने के बाद

चश्मा मिला

अंधी जनता को

घड़ी ले गए अंग्रेज़

धोती और सिद्धांत

जल गए चिता के साथ

गांधीजनों ने पाया

राजघाट

संस्थाओं ने आत्मकथा

और डंडा

नेताओं ने हथियाया

और हांक रहे हैं

देश को

गांधी से पूछे बिना

गांधी को बांट लिया हमने

अपनी अपनी तरह से

भारत यायावर की एक कविता है, अमर बन| इसमें उन्होंने लिखा है, जो मरा हुआ है वह क्या मारेगा?

अमर बन/भारत यायावर

सब ज़िन्दा हैं और रहेंगे।

लोग चिल्लाते रहते हैं

कि मार दिया

सुकरात को मार दिया

ईसा को मार दिया

गांधी को मार दिया!

भला कौन मार सकता है

अमर है वह चेतना

अमर है वह वाणी

तो अमर है अस्तित्व!

जो मरा हुआ है

वह क्या मारेगा

लेकिन डर-डर कर जीने वाला

मर-मर कर जीता है

स-मर में अ-मर कर

अजर-अमर बन!

हरिवंशराय बच्चन की एक मार्मिक कविता है, था उचित कि गाँधी जी की निर्मम ह्त्या पर तारे छिप जाते|

था उचित कि गाँधी जी की निर्मम ह्त्या पर तारे छिप जाते/हरिवंशराय बच्चन

था उचित कि गांधी जी की निर्मम हत्या पर

तारे छिप जाते, काला हो जाता अंबर,

केवल कलंक अवशिष्ट चंद्रमा रह जाता,

कुछ और नज़ारा था

जब ऊपर गई नज़र।

अंबर में एक प्रतीक्षा को कौतूहल था,

तारों का आनन पहले से भी उज्ज्वल था,

वे पंथ किसी का जैसे ज्योतित करते हों,

नभ वात किसी के स्वागत में

फिर चंचल था।

उस महाशोक में भी मन में अभिमान हुआ,

धरती के ऊपर कुछ ऐसा बलिदान हुआ,

प्रतिफलित हुआ धरणी के तप से कुछ ऐसा,

जिसका अमरों के आंगन में

सम्मान हुआ।

अवनी गौरव से अंकित हों नभ के लिखे,

क्या लिए देवताओं ने ही यश के ठेके,

अवतार स्वर्ग का ही पृथ्वी ने जाना है,

पृथ्वी का अभ्युत्थान

स्वर्ग भी तो देखे!

हरिवंशराय बच्चन की ही एक दूसरी कविता है, नत्थू खैरे ने गाँधी का कर अंत दिया|

नत्थू खैरे ने गाँधी का कर अंत दिया/हरिवंशराय बच्चन

नत्‍थू ख़ैरे ने गांधी का कर अंत दिया

क्‍या कहा, सिंह को शिशु मेढक ने लिल लिया!

धिक्‍कार काल, भगवान विष्‍णु के वाहन को

सहसा लपेटने

में समर्थ हो

गया लबा!

पड़ गया सूर्य क्‍या ठंडा हिम के पाले से,

क्‍या बैठ गया गिरि मेरु तूल के गाले से!

प्रभु पाहि देश, प्रभु त्राहि जाति, सुर के तन को

अपने मुँह में

लघु नरक कीट ने

लिया दबा!

यह जितना ही मर्मांतक उतना ही सच्‍चा,

शांतं पापं, जो बिना दाँत का बच्‍चा,

करुणा ममता-सी मूर्तिमान मा को कच्‍चा

देखते देखते

सब दुनिया के

गया चबा!

दुष्यंत कुमार की एक कम चर्चित पर सशक्त कविता है, गांधी जी के जन्मदिन पर| इसका शीर्षक तो गांधी जी के जन्मदिन की याद दिलाता है, पर पूरी कविता केवल जन्मदिन पर आधारित नहीं है, बल्कि गांधी जी के दर्शन को बताती है|

गांधी जी के जन्मदिन पर/दुष्यंत कुमार

मैं फिर जनम लूंगा

फिर मैं इसी जगह आउंगा

उचटती निगाहों की भीड़ में

अभावों के बीच

लोगों की क्षत-विक्षत पीठ सहलाऊँगा

लँगड़ाकर चलते हुए पावों को कंधा दूँगा

गिरी हुई पद-मर्दित पराजित विवशता को

बाँहों में उठाऊँगा।

इस समूह में

इन अनगिनत अचीन्ही आवाज़ों में कैसा दर्द है

कोई नहीं सुनता 

पर इन आवाजों को और इन कराहों को

दुनिया सुने मैं ये चाहूँगा

मेरी तो आदत है

रोशनी जहाँ भी हो उसे खोज लाऊँगा

कातरता, चु्प्पी या चीखें,

या हारे हुओं की खीज जहाँ भी मिलेगी

उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा

जीवन ने कई बार उकसाकर

मुझे अनुलंघ्य सागरों में फेंका है

अगन-भट्ठियों में झोंका है,

मैने वहाँ भी ज्योति की मशाल प्राप्त करने के यत्न किये

बचने के नहीं,

तो क्या इन टटकी बंदूकों से डर जाऊँगा?

तुम मुझकों दोषी ठहराओ

मैने तुम्हारे सुनसान का गला घोंटा है

पर मैं गाऊँगा

चाहे इस प्रार्थना सभा में

तुम सब मुझपर गोलियाँ चलाओ

मैं मर जाऊँगा

लेकिन मैं कल फिर जनम लूँगा

कल फिर आऊँगा

हिंदी के मूर्धन्य कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक प्रसिद्ध कविता है, गांधी|

गांधी/रामधारी सिंह दिनकर

देश में जिधर भी जाता हूँ,

उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ

"जड़ता को तोड़ने के लिए

भूकम्प लाओ,

घुप्प अँधेरे में फिर

अपनी मशाल जलाओ,

पूरे पहाड़ हथेली पर उठाकर

पवनकुमार के समान तरजो,

कोई तूफ़ान उठाने को

कवि, गरजो, गरजो, गरजो"

सोचता हूँ, मैं कब गरजा था ?

जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,

वह असल में गाँधी का था,

उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था

तब भी हम ने गाँधी के

तूफ़ान को ही देखा,

गाँधी को नहीं

वे तूफ़ान और गर्जन के

पीछे बसते थे

सच तो यह है

कि अपनी लीला में

तूफ़ान और गर्जन को

शामिल होते देख

वे हँसते थे

तूफ़ान मोटी नहीं,

महीन आवाज़ से उठता है

वह आवाज़

जो मोम के दीप के समान

एकान्त में जलती है,

और बाज नहीं,

कबूतर के चाल से चलती है

गाँधी तूफ़ान के पिता

और बाजों के भी बाज थे

क्योंकि वे नीरवता की आवाज थे

इस लेख के लेखक की एक कविता है, गांधी को नकार नहीं सकते|

गांधी को नकार नहीं सकते/महेंद्र पाण्डेय

गांधी के पक्ष में खड़े हो सकते हो

गांधी के विपक्ष में बोल सकते हो

गाली भी दे सकते हो

गांधी की प्रतिमा तोड़ सकते हो

गांधी की प्रतिमा बना सकते हो

देश की आजादी का प्रतीक मान सकते हो

विभाजन का जिम्मेदार भी ठहरा सकते हो

गांधी को सत्य अहिंसा का पुजारी मान सकते हो

चतुर बनिया भी बता सकते हो

गांधी को केवल सफाई तक सीमित रख सकते हो

गांधी के लिए घृणा भी फैला सकते हो

गांधी से चरखा छीन सकते हो

खादी भी छीन सकते हो

पर, सुनो

तुम कुछ भी करो

गांधी क नकार नहीं सकते

मालूम है, कोशिश की थी तुमने

पर देखो

गांधी जी मुस्करा रहे हैं तुम्हारी नादानी पर

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