Suicides Due To Unemployment : बेरोजगारी और कर्ज के बोझ से छटपटा रहा भारत, 25 हजार लोगों ने की आत्महत्या, क्या अब कृषि ही समाधान ?
Suicides due to unemployment : संसद के बजट सत्र में बेरोजगारी पर चर्चा करते हुए सरकार ने राज्यसभा को बताया कि 2018- 2020 के बीच देशभर में लगभग 25 हजार लोगों ने बेरोजगारी और कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या की है....
हिमांशु जोशी का विश्लेषण
Suicides due to unemployment : बेरोजगारी पर चर्चा करते हुए सरकार ने राज्यसभा (Rajyasabha) को बताया कि 2018- 2020 के बीच देशभर में लगभग 25 हजार लोगों ने बेरोजगारी और कर्ज (Unemployement And Loan) के बोझ के चलते आत्महत्या (Suicides) की हैं। व्यापार में नुकसान और नौकरी न मिलने की वज़ह से देश में परिवार की जिम्मेदारी का बोझ लादी हुई जनता मानसिक रूप से परेशान है।
इस मंगलवार बागपत (Baghpat) के बड़ौत शहर में जूते के थोक व्यापारी ने फेसबुक लाइव पर कैमरे के सामने ज़हर खाकर सुसाइड करने की कोशिश करी। व्यापारी को ज़हर खाता देख उनकी पत्नी ने ज़हर की पुड़िया छीनने को कोशिश की, लेकिन तब तक व्यापारी ने लोगों से वीडियो का वायरल करने की अपील करते हुए पानी के साथ ज़हर निगल लिया। इसके बाद उनकी पत्नी ने भी बचा हुआ ज़हर खा लिया। व्यापारी ने वीडियो में कहा कि सरकार छोटे दुकानदारों और किसानों की हितैषी नही है।
उत्तराखंड (Uttarakhand) में रहने वाला 24 साल का सोनू बिष्ट एक साल से बेरोजगार था। उसके पिता नहीं थे और मां भी गंभीर रूप से बीमार थी। कुछ समय उसने सीटीआर निदेशक के कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य किया, बाद में उसे हटा दिया गया। वह तीन-चार बार सेना में भर्ती के लिए भी गया पर भर्ती न हो पाया। पिछले साल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज जंगल में उसका पेड़ से लटका शव मिला था, दुनिया छोड़ने से पहले उसने अपने शैक्षिक प्रमाण-पत्रों को भी जला दिया था।
आज संसद के बजट सत्र (Budget Session) में बेरोजगारी पर चर्चा करते हुए सरकार ने राज्यसभा को बताया कि 2018- 2020 के बीच देशभर में लगभग 25 हजार लोगों ने बेरोजगारी और कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या की हैं। जिसमें से 9,140 लोगों ने बेरोजगारी और 16,091 लोगों ने कर्ज के बोझ के चलते अपनी जान गवाई। एक लिखित उत्तर के जवाब में जानकारी देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए राज्यसभा को यह जानकारी दी।
कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने दो हिंदुस्तान की बात क्या कही थी, बवाल मच गया। बवाल इसलिए क्योंकि गरीबी और बेरोज़गारी हमारे देश में कभी मुद्दा ही नही रही। हाल ही में निकली रेलवे भर्ती में कुल पदों की संख्या 1 लाख 40 हजार थी, लेकिन उसके लिये ढ़ाई करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। देश में बढ़ती बेरोज़गारी का यह एक और ताज़ा उदाहरण है।
बेरोज़गारी की परिभाषा समझना चाहें तो जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने पर राजी भी होती है परंतु उन्हें प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं मिल पाता है तो इसी अवस्था को बेरोजगारी कहते हैं।
आंकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाए तो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) भारत की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था है, उसके अनुसार दिसंबर 2021 में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.9 फीसदी हो गई। नवंबर में यह 7 फीसदी थी। एक साल पहले दिसंबर 2020 में बेरोजगारी दर 9.1 फीसदी से ज्यादा थी। हाल के दिनों में अनुभव किए गए स्तरों की तुलना में भारत में बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है। 2018-19 में बेरोजगारी दर 6.3 फीसदी और 2017-18 में 4.7 फीसदी थी।
आंकड़ों से साफ है कि कोरोना काल में बेरोज़गारी बढ़ी है, यह हाल तब हुए जब केंद्र सरकार ने कोविड-19 के कारण बने आर्थिक हालात को संभालने और आम लोगों की मदद के लिए मई 2020 में 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी।
बेरोजगारी का मुख्य कारण है कृषि क्षेत्र में सिकुड़ता भारत
स्टेटिस्ता द्वारा दिए इन आंकड़ों के अनुसार भारत में साल 2009 से 2019 तक आर्थिक क्षेत्रों में कार्यबल का वितरण देखने से साफ पता चलता है कि कोरोना काल में पलायन कर गांवों में लौटे प्रवासियों के बेरोज़गार रहने का मूल कारण उनके द्वारा ही छोड़ी गई कृषि है। साल 2009 में कृषि क्षेत्र में कार्यबल 52.5 प्रतिशत था जो साल 2019 आते-आते 42.6 प्रतिशत रह गया था।
कृषि का महत्व हम धर्मवीर का उदाहरण देख समझ सकते हैं।
छह लोगों के परिवार वाले धर्मवीर उत्तराखंड के रुद्रपुर में दूधियानगर इलाके में रहते हैं और पिछले सोलह वर्षों से गोलगप्पे का ठेला लगाते हैं। जब मेरी उनसे मुलाकात हुई तो धर्मवीर ने बताया कि आज महीनों बाद फिर से ठेला लगाया है। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान उन्होंने रुद्रपुर की ही एक धान मिल में काम किया। ऐसे लाखों लोग थे जिन्हें संकट की इस घड़ी में सिर्फ कृषि आधारित उद्योगों का ही सहारा था।
देश की आर्थिक स्थिति मज़बूत करने के लिए कृषि क्षेत्र में भी चाहिए कोई वर्गीज कुरियन
भारत में कृषि क्षेत्र को अब किसी नए प्रयोग की उम्मीद है। वर्गीज कुरियन दूध उत्पादन में एक क्रांति ला आने वाली पीढ़ी को कुछ नया करने की सीख दे गए थे।
वर्गीज कुरियन को 'भारत का मिल्कमैन' भी कहा जाता है। एक समय जब भारत में दूध की कमी हो गई थी, कुरियन के नेतृत्व में भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम शुरू हुआ। कुरियन ने देश में बिलियन लीटर आइडिया, ऑपरेशन फ्लड और डेयरी फार्मिंग जैसे अभियान शुरू किए। आज इन्हीं की बदौलत भारत दूध उत्पाद में विश्व में नंबर एक पर है। इन्हीं की बदौलत एक तिहाई ग्रामीण आय का स्रोत दुग्ध उत्पादन है।
भारत में बढ़ती बेरोज़गारी पर अर्थशास्त्री अरुण कुमार की टिप्पणी
अरुण कुमार कहते हैं जिस तरह की नीतियां हम अपना रहे हैं, उससे अर्थव्यवस्था में रोजगार नहीं पैदा होता है। सन् 1991 के बाद हमने नई आर्थिक नीतियों को अपनाया और उसके चलते जो ये सारी नीतियां हैं, ये प्रो बिजनेस नीतियां हैं, जिसको सप्लाई साइड कहते हैं। ये मार्केट के आधार पर है यानी कि बाजारीकरण के आधार पर है, बाजार आगे है और समाज पीछे है।
बाजार की जो नीतियां होती हैं, उसमें डॉलर वोट चलता है। डॉलर वोट का मतलब है कि अगर मेरे पास एक डॉलर है तो एक वोट है और अगर एक लाख डॉलर है तो एक लाख वोट है।
बाजार में उसकी चलेगी जिसके पास एक लाख डॉलर है, जिसके पास एक डॉलर है, उसकी नहीं चलेगी। अभी पूंजी वहां जाती है, जहां बाजार है। जैसे अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो जो पूंजी है वो बांदा में नहीं जायेगी, वो आसपास के इलाकों में जाएगी जैसे कि दिल्ली और एनसीआर नोएडा और गाजियाबाद। मतलब यूपी का मतलब बांदा नहीं है, उसका मतलब है नोएडा और गाजियाबाद। यही कारण है की कानपुर जो कभी इंडस्ट्रीयल शहर होता था, अब वहां उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं।
हमारे देश में रोजगार नहीं बढ़ रहा है लेकिन बेरोजगारी का आंकड़ा भी बढ़ता नहीं दिखता है। वजह यह है कि हमारे यहां सोशल सिक्योरिटी नहीं है। अगर आपको रोजगार नहीं मिल रहा हो तो आप ये नहीं कह सकते कि जब तक मुझे मेरे मुताबिक काम न मिल जाए तब तक मैं घर बैठ जाऊंगा। अमेरिका, ब्रिटेन या यूरोप में आपको बेरोजगारी भत्ता मिलता है तो वहां आप वहां सही काम मिलने तक इंतजार कर सकते हैं।
इसलिए हमारे यहां पेट भरने के लिये इस बीच लोग ठेला चलायेंगे, रिक्शा चलायेंगे या सिर पर बोझा उठायेंगे तब यह मान लिया जाएगा कि उनको रोजगार मिल गया। यही कारण है कि बेरोजगारी का जो आंकड़ा पहले 3-4 प्रतिशत के आसपास रहता था, अब वो 7-8 प्रतिशत के आसपास रहता है। वो ज्यादा बढ़ता नहीं दिखता इसलिए हमारे यहां अंडर एम्प्लॉयमेंट बढ़ जाता है।
रिक्शा वाला अगर अपने स्टैंड पर 12 घंटे खड़ा रहता है तो उसको दो-तीन घंटे का काम मिलता है, ऐसा ही हाल ठेली वाले, चना-मूंगफली बेचने वाले, सब पर लागू होता है। लेकिन उन सभी को रोजगार वाला मान लिया जाता है। मतलब हमारे यहां डिसगाइज एम्प्लॉयमेंट (छुपी ही बेरोज़गारी) है , यह कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक है जहां खेत में जरूरत तो चार लोगों की होती है पर लगे दस लोग होते हैं।
सड़क चमका देने भर से ही नही मिल जाएगा रोजगार
बेरोज़गारी के सवाल पर फ़िल्म और पत्रकारिता जगत से जुड़े पौड़ी निवासी गौरव नौडियाल कहते हैं कि सरकार ने रोज़गार की जगह पुल बनाने और सड़कें चमकाने को प्राथमिकता में रखा। सारे बज़ट को कंस्ट्रक्शन में डाल दिया गया। इको-टूरिज्म से देश के कई हिस्सों में नौकरियां लाई जा सकती थी पर उसके लिए योजनाएं बनानी होंगी, मूलभूत ढांचे तैयार करने होंगे, वर्कशॉप के ज़रिए स्किल्ड लोग तैयार करने होंगे।