जिन राष्ट्रों की मुखिया महिलायें वह कोरोना से निपटने में सबसे आगे
ताइवान, बेल्जियम और न्यूज़ीलैण्ड में भी शासन में महिलायें हैं और इन देशों ने महामारी से सामना करने के मामले में दुनिया के अन्य देशों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है....
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
न्यूज़ीलैण्ड के महामारी विशेषज्ञों के अनुसार राजनैतिक दृढ इच्छाशक्ति और विज्ञान के बेहतर समन्वय से महामारी भी हारती हैं, और लोगों का जीवन भी सुरक्षित रहता है। न्यूज़ीलैण्ड में कोविड 19 के कुल लगभग 1500 मामले सामने आये थे और 22 व्यक्तियों की इससे मृत्यु हुई थी। वहां 25 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया था और अब वहां का जीवन सामान्य हो चला है, बाजार खुले हैं, पर्यटन स्थल खुले हैं, औद्योगिक गतिविधियाँ सामान्य हैं, पर एतिहाद के लिए अभी तक देश के बॉर्डर बंद हैं।
न्यूज़ीलैण्ड के विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने यहाँ पर कोविड 19 से निपटने के तरीकों की समीक्षा की है और बताया है कि इसका सारा श्रेय जनता को जाता है जिसने सरकार पर पूरा भरोसा किया और सरकार ने भी जनता की अपेक्षाओं को पूरा किया।
कोविड 19 से निपटने के लिए प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्देर्न की दुनियाभर में तारीफ़ की जा रही है और न्यूज़ीलैण्ड की जनता ने तो उन्हें पिछले 100 वर्षों के दौर का सबसे बेहतर नेता बताया है।
कुछ दिनों पहले यूरोपियन सेंट्रल बैंक की पहली महिला प्रेसिडेंट क्रिस्टीन लागार्दे ने वाशिंगटन पोस्ट को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि दुनियाभर की महिला नेता महामारी से निपटने में पुरुष नेताओं से बहुत आगे हैं। महिला नेताओं की सफलता का सबसे बड़ा कारण है, जनता को इमानदारी से दी गई सूचनायें और नेताओं द्वारा जनता को यह विश्वास दिलाना कि सरकार हर समय उनके साथ है।
महिला नेताओं की कोविड 19 के सन्दर्भ में नीतियाँ और जनता से संवाद शानदार और सीधा रहा। क्रिस्टीन लागार्दे ने कहा कि वह एक महिला होने के नाते नहीं कह रही हैं, बल्कि कोविड 19 के दौर में महिला नेताओं के प्रबंधन से उन्हें भी यह सीखने को मिला है कि महिलायें पुरुषों से बेहतर काम कर सकतीं हैं।
क्रिस्टीन लागार्दे जर्मनी की चांसलर एंजेला मॉर्केल के विज्ञान आधारित नीतियों के साथ आंकड़ों और संक्रमण दर का इमानदारी और पारदर्शी तरीके से की गई समीक्षा से बहुत प्रभावित हैं। इन सबसे जनता में मास्क, दूरी बनाए रखने और आइसोलेशन की समझ बढ़ती है, और फिर जनता इसका इमानदारी से पालन करती है।
क्रिस्टीन लागार्दे ने बताया कि ताइवान, बेल्जियम और न्यूज़ीलैण्ड में भी शासन में महिलायें हैं और इन देशों ने महामारी से सामना करने के मामले में दुनिया के अन्य देशों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। महिला नेताओं की सबसे बड़ी पूंजी उनका मानवतावादी दृष्टिकोण होता है, इसीलिए उनके निर्देश स्पष्ट होते हैं और चुनौती भरे निर्णय भी जनता स्वीकार करती है। इन महिलाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार उत्तरदायी हो, जवाबदेह हो और जनता की परवाह करने वाली हो, तब कठिन से कठिन समस्या से पार पाया जा सकता है।
न्यूज़ीलैण्ड की मेस्सी यूनिवर्सिटी और ओटागो यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने न्यूज़ीलैण्ड में कोविड 19 से निपटने के तरीकों की समीक्षा की है। इस अध्ययन के अनुसार जनता की साफ़-सफाई से रहने की आदत और सरकार में भरोसे को शत-प्रतिशत अंक दिए जा सकते हैं।
मेस्सी यूनिवर्सिटी के कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म विभाग के डॉ जगदीश ठक्कर के अनुसार महामारी के दौर में जनता को अपनी सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों पर पूरा भरोसा था, इसीलिए पूरा देश एक साथ इसका डट कर सामना कर पाया। सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों में जनता के भरोसे का कारण था, जनता से सम्बंधित सभी सन्देश और निर्देश सरल, स्पष्ट, करुणा और सहानुभूति के साथ, और मानवतावादी दृष्टिकोण से दिए गए थे, जबकि अधिकतर दूसरे देशों ये सभी सन्देश एक आज्ञा के तौर पर जनता पर थोपे गए थे।
न्यूज़ीलैण्ड की अधिकतर जनता को कोविड 19 के बारे में सामान्य जानकारी थी, इससे उन्हें सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में चल रहे इससे सम्बंधित फेक और भ्रम वाले मैसेज को पहचानने में आसानी थी। सरकार केवल विज्ञान और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सहारा ले रही थी, इसलिए भारत, अमेरिका या ब्राज़ील के विपरीत एक भी भ्रम वाले सन्देश जनता तक नहीं पहुंचे।
दूसरे देशों की एक बड़ी आबादी समझती है कि कोविड 19 से केवल बुजुर्ग प्रभावित होते हैं और उन्हीं की मृत्यु हो सकती है, पर न्यूज़ीलैण्ड की 94 प्रतिशत से अधिक जनता इसे तथ्यहीन समझती है। न्यूज़ीलैण्ड के महामारी विशेषज्ञ प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्देर्न को उत्कृष्ट, स्पष्ट, निर्णयात्मक और मानवतावादी दृष्टिकोण वाला नेता मानते हैं।
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि सरकार यदि जनता से इमानदार है तब जनता भी सरकार पर पूरा भरोसा करती है, ऐसी स्थिति में यदि महामारी से बड़ा संकट हो, उसका हल निकल ही जाता है। क्या, इस निष्कर्ष से भारत समेत दुनिया के अन्य देश कुछ सबक लेंगे?