आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस से होने वाले विकास नहीं भयानक संभावित परिणामों की खबरें बहुत खतरनाक, निर्बाध विकास से सरकारें भी परेशान

चैटबौट आसानी से गलत सूचनाएं व्यापक तौर पर फैलाने में सक्षम हैं, अब तो तमाम गायकों की गायक की अनुमति के बिना ही नए गाने सामने आने लगे हैं, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा पत्रकार की जानकारी के बिना ही वरिष्ठ पत्रकारों की आवाज में हस्तियों के इंटरव्यू लिए जाने लगे हैं....

Update: 2023-05-06 02:57 GMT

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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Indian Government has no plans to regulate Artificial Intelligence. पिछले कुछ सप्ताहों से आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के विकास की खबरें गायब हैं पर इसके भयानक संभावित परिणामों की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार आ रही हैं। इसे कोई हथियारों की प्रतिद्वंदिता से जोड़ रहा है तो कोई परमाणु हथियारों से। इसे गलत सूचनाओं का प्रबल स्त्रोत, धोखाधड़ी का नया स्त्रोत और निजता के हनन से जोड़ा जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे बड़े पैमाने पर रोजगार छीनने वाली टेक्नोलॉजी करार दी है। अब तो इसके परम्परागत व्यापार में बुरे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। लन्दन और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज अनेक शिक्षा से सम्बंधित कंपनियों ने दावा किया है कि चैटजीपीटी के आने के बाद से उन्हें लगातार घाटा हो रहा है और उनसे जुड़े छात्रों की संख्या तेजी से कम हो रही है। दरअसल चैटजीपीटी जैसे चैटबोट के बाजार में आने के बाद से भाषा और गणित के बहुत से छात्रों ने इसका व्यापक इस्तेमाल शुरू कर दिया है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने इसे रोजगार को निगलने वाली टेक्नोलॉजी करार दिया है। हाल में ही वैश्विक स्तर पर कार्यरत 800 कंपनियों के 1 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के बीच सर्वेक्षण के बाद इकोनॉमिक फोरम ने बताया है कि 25 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों ने इससे बेरोजगारी बढ़ने की आशंका व्यक्त की है। गोल्डमैन सैश की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेशन के कारण अमेरिका और यूरोप में जल्दी ही 30 करोड़ नौकरियाँ कम हो जायेंगी। आईबीएम ने हाल में ही कहा है कि भविष्य में यहाँ नई नियुक्तियों की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि 30 प्रतिशत से अधिक काम अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा किया जाएगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक माने जाने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक ज्यॉफ्री हिन्टन ने हाल में ही गूगल छोड़ने के बाद इस टेक्नोलॉजी के खतरों पर व्यापक चर्चा की है। उन्होंने कहा कि इस टेक्नोलॉजी के व्यापक उपयोग के बाद परम्परागत सत्य की परिभाषा बदल जायेगी और हम आसानी से झूठ को स्वीकार करने लगेंगे। चैटबौट आसानी से गलत सूचनाएं व्यापक तौर पर फैलाने में सक्षम हैं, अब तो तमाम गायकों की गायक की अनुमति के बिना ही नए गाने सामने आने लगे हैं, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा पत्रकार की जानकारी के बिना ही वरिष्ठ पत्रकारों की आवाज में हस्तियों के इंटरव्यू लिए जाने लगे हैं।

पिछले सप्ताह यूनाइटेड किंगडम में अंतरराष्ट्रीय कारोबार की निगाराने करने वाली संस्था, कम्पटीशन एंड मार्किट अथॉरिटी की चीफ एग्जीक्यूटिव सारा कार्देल्ल्स ने ऐलान किया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने वाली टेक्निकल कंपनियों, अनुसंधानों और उनके उत्पादों का गहराई से अध्ययन कर एक नियमावली तैयार की जायेगी, जिससे इसके खतरों को कम किया जा सके और जनता के लिए सुरक्षित किया जा सके। अनेक विशेषज्ञ कम्पटीशन एंड मार्किट अथॉरिटी के इस ऐलान को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के लिए चेतावनी के तौर पर देख रहे हैं। यूरोपीय संघ के अनेक देश भी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रहे हैं।

हाल में ही अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाईडन और उपराष्ट्रपति कमला हैर्रिस ने भी माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और ओपनएआई जैसी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर इसे सुरक्षित और जनहित में रखने का निर्देश दिया। इन कंपनियों को याद दिलाया गया कि यह उनकी मौलिक प्रतिबब्धता है कि उनके उत्पाद जनता, समाज और देश के लिए सुरक्षा की पूरी गारंटी दें। इन कंपनियों को निर्देश दिए गए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सम्बंधित उत्पादों के स्वतंत्र और निष्पक्ष परिक्षण के लिए उन्हें साइबर सिक्यूरिटी कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया जाए, जिससे इनके खतरों का सही आकलन हो सके।

इन सबके बीच अप्रैल के शुरू में संसद में आईटी और टेलिकॉम मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कुछ खतरे तो हैं पर सरकार इसके व्यापक उपयोग के लिए प्रतिबद्ध है और इसे नियंत्रित करने का या इससे सम्बंधित क़ानून बनाने का कोई इरादा नहीं है। इसके खतरों को वर्ष 2018 में तैयार किये गए एआई से सम्बंधित राष्ट्रीय कार्ययोजना में बताया गया है और नीति आयोग ने भी इससे सम्बंधित रिपोर्ट तैयार की है।

जाहिर है पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जितनी तेजी से विकास हो रहा है उससे अधिक तेजी से अब इससे उत्पन्न खतरों की चर्चा हरेक स्तर पर की जा रही है। अब तो इसके विकास से जुडी कपनियों में भी यह चर्चा की जाने लगी है, पर जाहिर है पूंजीवादी समाज में लाभ के आगे समाज के खतरे गौण हो जाते हैं और कम्पनियां अपना मुनाफ़ा कम नहीं होने देंगी। इसे नियंत्रित करना इसलिए भी कठिन है क्योंकि यह पूरी टेक्नोलॉजी निजी कंपनियों के हाथों में है। पिछले वर्ष आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सम्बंधित 35 बड़े उत्पाद बाजार में उतारे गए, जिसमें से 32 का विकास निजी कंपनियों ने किया है और महज 3 उत्पादों को सरकारी कंपनियों ने बनाया है।

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