मोदी राज में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को बनाया जा रहा रवांडा, पेगासस प्रोजेक्ट से खुली जासूसी की पोल
इज़रायल के एनएसओ ग्रुप ने जो पेगासस स्पाईवेयर बनाया है, वो आईफ़ोन और एंड्रॉयड फोन में घुसपैठ करने में सक्षम होता है। हैकिंग में इस सॉफ्टवेयर ने व्हाट्सएप में एक खामी का इस्तेमाल किया है....
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
जनज्वार। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में पिछले सात सालों से मोदी सरकार मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सौहार्द्र और असहमति की आवाज को रौंदने में जुटी हुई है। मुस्लिम विद्वेष को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे वह चुनाव जीतती रही है। मीडिया को उसने पालतू बना लिया है। इसके बावजूद भी जो लोग निर्भीकता से उसके गलत कार्यों की आलोचना करते हैं और आम जनता को जागरूक बनाना चाहते हैं, उनके खिलाफ वह देशद्रोह के मामले दर्ज करवाती रही है और जो ताजा पेगासस प्रोजेक्ट का सच दुनिया के सामने आया है उससे पता चलता है कि वह ऐसे तमाम लोगों की जासूसी भी करवाती रही है।
द वॉशिंगटन पोस्ट ने दुनियाभर के 16 अन्य मीडिया सहयोगियों के साथ मिलकर 'द पेगासस प्रोजेक्ट' नाम से जांच रिपोर्ट जारी की है। इस जांच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्राइवेट इज़राइली सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल फोन टैप करने में किया गया। इसमें दुनियाभर के 37 स्मार्टफोन को हैक करने में कामयाबी भी मिली। ये स्मार्टफोन बड़े पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, व्यापारी अधिकारी और दो ऐसी महिलाओं जो कि सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खसोगी की हत्या से जुड़ी थीं, उनके थे।
दरअसल इस मिलिट्री ग्रेड स्पाइवेयर को आतंकियों और अपराधियों को ट्रैक करने के लिए इस्तेमाल का लाइसेंस मिला हुआ है, लेकिन इसके ज़रिए 37 स्मार्टफोन को कामयाबी के साथ हैक किया गया। लिस्ट में 50 हज़ार से ज्यादा फोन नंबर मौजूद थे। जांच में दावा किया गया है कि जो देश अपने नागरिकों की जासूसी के लिए जाने जाते हैं वो इज़राइली फर्म एनएसओ ग्रुप के क्लाइंट भी हैं। एनएसओ ग्रुप दुनिया की स्पाइवेयर इंडस्ट्री की वर्ल्डवाइड लीडर है।
न्यूज़ वेबसाइट द वायर के मुताबिक भारत में करीब 300 लोगों की जासूसी पेगासस के स्पाइवेयर के ज़रिए की गई, जिसमें 40 पत्रकार भी शामिल हैं। जिनके फोन हैक करने का दावा किया गया है उनमें मंत्री से लेकर विपक्ष के नेता, पत्रकार, लीगल कम्युनिटी, कारोबारी, सरकारी अफसर, वैज्ञानिक और एक्टिविस्ट्स तक शामिल हैं। दावा है कि इन लोगों पर फोन के ज़रिए निगरानी रखी जा रही थी।
पेगासस को इज़राइल स्थित साइबर इंटेलीजेंस और सुरक्षा फर्म एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित किया गया था। माना जाता है कि यह स्पाइवेयर 2016 से ही मौजूद है और इसे क्यू सूट और ट्राइडेंट जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी उत्पादों में ये सबसे परिष्कृत माना जाता है। यह एपल के मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड डिवाइसों में घुस सकता है। पेगासस का इस्तेमाल सरकारों द्वारा लाइसेंस के आधार पर किया जाना था। मई 2019 में, इसके डेवलपर ने सरकारी खुफिया एजेंसियों और अन्य के लिए पेगासस की बिक्री सीमित कर दी थी।
एनएसओ ग्रुप की वेबसाइट के होम पेज के अनुसार कंपनी ऐसी तकनीक बनाती है जो दुनिया भर में हजारों लोगों की जान बचाने के लिए आतंकवाद और अपराध को रोकने और जांच करने में मदद के लिए सरकारी एजेंसियों की मदद करती है।
इज़रायल के एनएसओ ग्रुप ने जो पेगासस स्पाईवेयर बनाया है, वो आईफ़ोन और एंड्रॉयड फोन में घुसपैठ करने में सक्षम होता है। हैकिंग में इस सॉफ्टवेयर ने व्हाट्सएप में एक खामी का इस्तेमाल किया है। यह स्पाइवेयर किसी हानिकारक लिंक या मिस्ड व्हाट्सएप वीडियो कॉल से एंट्री करता है। फिर यह फ़ोन के बैकग्राउंड में चुपचाप सक्रिय हो जाता है।
इस तरह इस स्पाईवेयर की फोन के कॉन्टैक्ट, मैसेज और बाकी डेटा तक पूरी पहुंच हो जाती है। यह सॉफ्टवेयर यूजर के फोन का माइक्रोफ़ोन और कैमरा भी खुद से ऑन कर सकता है। व्हाट्सए ने अब अपनी यह खामी सुधार ली है।
यूजर के फोन पर व्हाट्सएप वीडियो कॉल आती है। एक बार फ़ोन की घंटी बजते ही हमलावर हानिकारक कोड भेज देता है और इस तरह ये स्पाईवेयर फ़ोन में इंस्टॉल हो जाता है और ऑपरेटिंग सिस्टम पर कब्ज़ा कर लेता है। मैसेज, कॉल, पासवर्ड तक स्पाईवेयर की पहुंच हो जाती है। माइक्रोफ़ोन और कैमरा तक भी इसकी पहुंच होती है और यूजर के फोन में चुपचाप घुसने के बाद यह स्पाईवेयर पूरा डेटा और खुफिया जानकारियां उड़ा लेता है।
'द गार्डियन' के मुताबिक एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने वाले देशों में अजरबैजान, बहरीन, कजाखस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, हंगरी, भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) शामिल हैं।
साल 2017 के मध्य में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी अपने परिवार के साथ केरल के कोल्लम में एक ट्रिप पर गए थे। उनकी पत्नी जेनी रोवेना, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के ही मिरांडा हाउस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने अपना बचपन यहीं बिताया था। रोवेना याद करते हुए कहती हैं, 'वो एक लंबी, फुरसत वाली यात्रा थी।'
यहां हेनी बाबू और रोवेना दिल्ली के अपने पुराने दोस्त रोना विल्सन से भी मिले, जो कोल्लम के रहने वाले हैं। रोवेना ने कहा, 'हम सब एक रिसॉर्ट में गए थे। एक दूसरे से मिलकर अच्छा लगा था। हमने राजनीति से लेकर केरल में हमारे जीवन तक कई चीजों के बारे में बात की।'
लेकिन वे उस समय ये नहीं जानते थे कि उनकी छुट्टियों के दौरान हेनी बाबू और रोना विल्सन के फोन नंबरों को एक अज्ञात भारत-आधारित एजेंसी द्वारा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुना गया था, जो इजराइल के एनएसओ ग्रुप से जुड़ी हुई थी। एक साल बाद कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रोना विल्सन को एल्गार परिषद मामले में 'मुख्य आरोपी' बताते हुए छह जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था। तब से वे हिरासत में हैं।
बाद में केरल की यह यात्रा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा हेनी बाबू के साथ पूछताछ का केंद्र बन गई, जो 28 जुलाई, 2020 को उनकी गिरफ्तारी से पहले एक सप्ताह से अधिक समय तक चली थी। यह जानना संभव नहीं है कि क्या उनके फोन को वास्तव में पेगासस स्पाइवेयर से हैक किया गया था।
हेनी बाबू और विल्सन दोनों फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। उनके फोन जांच एजेंसी ने जब्त कर लिए हैं। हालांकि,द वायरऔर सहयोगी समाचार संगठनों द्वारा हजारों नंबरों, जिनकी निगरानी करने की योजना बनाई गई थी, के रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद पता चलता है कि कम से कम 9 नंबर उन 8 कार्यकर्ताओं, वकीलों और अकादमिक जगत से जुड़े लोगों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था।
विल्सन और हेनी बाबू के अलावा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुने गए अन्य लोगों में अधिकार कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, अकादमिक और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर शोमा सेन, पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वकील अरुण फरेरा और अकादमिक एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज शामिल हैं।
2018 के बाद से देश के 16 कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है। उनमें से 83 वर्षीय झारखंड स्थित आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी भी शामिल थे, जिनका बीते पांच जुलाई को मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया। तमाम गंभीर बीमारियों के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी गई थी। एनआईए ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया था, तब से वे जेल में थे।