वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील का इस्तीफा: काबिल लोग मोदी का साथ क्यों छोड़ देते हैं?
जमील, एक व्यापक रूप से सम्मानित वैज्ञानिक, महामारी पर अक्सर बोलते और लिखते रहे हैं। वैज्ञानिक मामलों पर अपने मन की बात कहने के लिए जाने जाने वाले जमील वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकार के प्रयासों की आलोचना करते रहे थे, खासकर दूसरी लहर के दौरान...
जनज्वार डेस्क। देश के मशहूर वायरोलॉजिस्ट और हेपेटाइटिस ई वायरस पर रिसर्च के लिए ख्यात डॉ. शाहिद जमील ने भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (इनसाकोग) के वैज्ञानिक सलाहकार ग्रुप के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। शाहिद जमील केंद्र सरकार की ओर से बनाए उस खास सलाहकार ग्रुप के सदस्य थे, जिनके ऊपर वायरस के जीनोम स्ट्रक्चर की पहचान करने की जिम्मेदारी थी।
ऐसी खबरें हैं कि इनसाकोग ने सरकार को मार्च में आगाह किया था कि कोरोना के नए और ज्यादा संक्रामक वैरिएंट आने वाले समय पर बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकते हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। और तो और उनका आरोप है कि वैज्ञानिकों की डाटा आधारित बातें नहीं सुनी जाती।
शाहिद जमील ने ऐसे वक्त पर त्यागपत्र दिया है, जब भारत कोरोना की दूसरी लहर के कहर से जूझ रहा है। रोजाना 4 हजार से ज्यादा मौतें देश में हो रही हैं। जबकि कोरोना के मामले रिकॉर्ड चार लाख का आंकड़ा पार करने के बाद अभी भी 3 लाख के आसपास दर्ज हो रहे हैं। सरकार कोरोना की दूसरी लहर को काबू में करने के तौरतरीकों को लेकर विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों की ओर से आलोचना का सामना कर रही है।
पहली बार है कि सरकार के भीतर कोरोना के खिलाफ जंग में शामिल किसी पेशेवर व्यक्ति ने इस मुद्दे पर अपनी अलग राय रखी है। फोरम द्वारा दी गई चेतावनी पर सरकार के ध्यान न दिए जाने के मुद्दे पर जमील ने कहा था कि सरकारी एजेंसियों ने इन साक्ष्यों पर ध्यान नहीं दिया।
महामारी की सबसे प्रमुख वैज्ञानिक आवाजों में से एक वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने देश के जीनोम अनुक्रमण कार्य का समन्वय करने वाले सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (इनसाकाग) के वैज्ञानिक सलाहकार ग्रुप के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है।
इनसाकाग इस साल जनवरी में सार्स-कोव 2 वायरस और इसके कई रूपों के जीनोम अनुक्रमण को बढ़ावा देने और तेज करने के लिए एक वैज्ञानिक निकाय के रूप में अस्तित्व में आया था। इसने देश भर से वायरस के नमूनों की जीन अनुक्रमण करने के लिए दस प्रमुख प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित किया था। कंसोर्टियम को शुरू में छह महीने का कार्यकाल दिया गया था, लेकिन बाद में विस्तार मिला। जीनोम अनुक्रमण कार्य, जो बहुत धीमी गति से प्रगति कर रहा था, ने इंसाकोग के गठन के बाद ही गति पकड़ी।
जमील, एक व्यापक रूप से सम्मानित वैज्ञानिक, महामारी पर अक्सर बोलते और लिखते रहे हैं। वैज्ञानिक मामलों पर अपने मन की बात कहने के लिए जाने जाने वाले जमील वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सरकार के प्रयासों की आलोचना करते रहे थे, खासकर दूसरी लहर के दौरान।
उन्होंने कहा था कि सरकारी अधिकारियों ने समय से पहले यह मानने में गलती की थी कि जनवरी में महामारी खत्म हो गई थी, और कई अस्थायी सुविधाओं को बंद कर दिया गया था जो पिछले महीनों में स्थापित की गई थीं।
हाल ही में उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख भी लिखा जिसमें उन्होंने परीक्षण और अलगाव बढ़ाने, अस्पताल के बिस्तरों को बढ़ाने, सेवानिवृत्त डॉक्टरों और नर्सों की मदद लेने और महत्वपूर्ण दवाओं और ऑक्सीजन के लिए आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
"इन सभी उपायों को भारत में मेरे साथी वैज्ञानिकों के बीच व्यापक समर्थन प्राप्त है। लेकिन वे साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के कड़े प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं,"उन्होंने लिखा।
"डेटा के आधार पर निर्णय लेना अभी तक एक और दुर्घटना है, क्योंकि भारत में महामारी नियंत्रण से बाहर हो गई है। हम जिस मानवीय कीमत को झेल रहे हैं, वह एक स्थायी निशान छोड़ जाएगी, "उन्होंने लिखा।
लेकिन जमील ने ऑक्सीजन की आपूर्ति के प्रबंधन के लिए एक टास्क फोर्स नियुक्त करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले की भी आलोचना की थी।
"यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे पास डॉक्टरों की कमी है और हमने अपने कुछ बेहतरीन डॉक्टरों से कहा है कि आप ऑक्सीजन-ऑक्सीजन खेलते रहिए। आप तय करें कि ऑक्सीजन किसे मिलेगी। वास्तव में हमारे लिए यह एक दुखद दिन है। ये अच्छे डॉक्टर दवा के बारे में जानते हैं, लेकिन वे ऑक्सीजन आपूर्ति श्रृंखला और रसद के बारे में क्या जानते हैं, "उन्होंने कहा था।
उन्होंने 30 अप्रैल को पीएम मोदी से वैज्ञानिकों को डाटा उपलब्ध कराने की भी गुहार लगाई। लेकिन पीएमओ टस से मस नहीं हुआ। शाहिद जमील ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में वैज्ञानिक "साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए जिद्दी प्रतिक्रिया" का सामना कर रहे हैं।उन्होंने लेख में मोदी सरकार को यह भी सलाह दी थी कि वो वैज्ञानिकों की बात सुने। पॉलिसी बनाने में जिद्दी रवैया छोड़ें।
जमील ने कोरोना के नए वैरिएंट की तरफ ध्यान दिलाया और लिखा कि एक वायरोलॉजिस्ट के तौर पर मैं पिछले साल से ही कोरोना और वैक्सीनेशन पर नजर बनाए हुए हूं। मेरा मानना है कि कोरोना के कई वैरिएंट्स फैल रहे हैं और ये वैरिएंट्स ही कोरोना की अगली लहर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। उन्होंने लेख में कहा कि भारत में वायरस नए साल के आसपास म्यूटेंट हुआ, तेजी से फैला।इस वायरस ने पहले से मिली इम्यूनिटी को भी छका दिया।
सीक्वेंसिंग का डेटा बताता है कि जिस वैरिएंट ने कोरोना की दूसरी लहर को ताकत दी है, वो बी.1.617 है। यह भारत में पहली बार दिसंबर 2020 में पाया गया था। भीड़ भरे कार्यक्रमों की वजह से ये फैल गया। भारत में सबसे ज्यादा संक्रमण इसी वैरियंट का है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बी.1.617 वैरिएंट को लेकर चिंता जता चुका है। जब इस वैरिएंट को बीमारी के एक भरोसेमंद हैमस्टर मॉडल पर टेस्ट किया गया तो दिखा कि ये मूल वायरस के बी.1 वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा वायरस पैदा करता है। फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
दुनियाभर का डेटा दिखाता है कि वैरिएंट बी.1.617 तीन अलग तरह के वायरस में बंट गया है। ये वैरिएंट भारत में ऐसी बड़ी आबादी में पनप रहे हैं, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है। उन्होंने कोरोना पीक और वैक्सीन ड्राइव पर भी मोदी सरकार को सलाह दी थी। लेकिन इतनी महत्वपूर्ण सलाह के बावजूद मोदी सरकार ने इसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया और देश के ही नहीं विश्व के मशहूर वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील की बातों को अनसुना कर दिया। जिसका नतीजा आज देश भुगत रहा है।