ऑपरेशन थिएटर में महिला डॉक्टर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सफल, पुरुष डॉक्टर के मरीजों की मौतें महिलाओं के मुकाबले 25% ज्यादा
Female Doctor : ऑपरेशन के 90 दिनों बाद पुरुष डॉक्टरों द्वारा किये गए ऑपरेशन में से 13.9 प्रतिशत में जटिलताएं यानि कोम्प्लेक्सिटी उत्पन्न हुई, जबकि महिला डॉक्टरों द्वारा किये गए ऑपरेशन में यह दर 12.5 प्रतिशत ही रही। जटिलताओं से तात्पर्य मृत्यु, दुबारा सर्जरी, इन्फेक्शन, हार्ट अटैक या स्ट्रोक है....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Female doctors give better long-term results in operation theatres despite being slow. दो नए विस्तृत अध्ययन का एक ही निष्कर्ष आया है कि– ऑपरेशन थिएटर में महिला डॉक्टर पुरुषों की अपेक्षा बेहतर ऑपरेशन करती हैं, हालांकि वे ऑपरेशन में कुछ अधिक समय लेती हैं, पर बेहतर परिणाम देती हैं। महिला डॉक्टर जब ऑपरेशन करती हैं तब ऑपरेशन के बाद जटिलता और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव कम होते हैं और दुबारा ऑपरेशन की जरूरत भी कम पड़ती है। महिला डॉक्टर पूरे मनोयोग से ऑपरेशन करती हैं, अपना समय लेती हैं और जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन थिएटर में जाने के बाद भी ऑपरेशन की विधि में परिवर्तन कर लेती हैं।
महिलाओं के प्रति केवल पुरुषों का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का अजीब उपेक्षित रवैय्या है। पूरी दुनिया में बौद्धिक कार्यों या व्यवसाय पर पुरुषों का वर्चस्व है, जबकि महिलायें हरेक ऐसे कार्य में मौका मिलते ही पुरुषों की बराबरी ही नहीं बल्कि उनसे आगे भी निकल जाती हैं। पूरे भारत में इस समय इसरो के चंद्रयान-3 और आदित्य मिशन की धूम मची है, सामान्य लोग भी इस पर चर्चा कर रहे हैं – इन दोनों परियोजनाओं में महिला वैज्ञानिकों ने बड़ी भूमिकाएं सफलतापूर्वक निभाई हैं। फिर भी चंद्रयान और आदित्य पर इतराते लोग भी यही मानते हैं कि वैज्ञानिक कार्य केवल पुरुषों का है और महिलायें पुरुषों से बेहतर वैज्ञानिक नहीं हो सकतीं। यही स्थिति महिला डॉक्टरों की भी है – उन्हें पुरुषों से कमतर माना जाता है और कम से कम सामान्य स्थितियों में महिला डॉक्टरों से कोई ऑपरेशन नहीं कराना चाहता है। दूसरी तरफ दुनियाभर में अलग-अलग अध्ययनों का एक ही निष्कर्ष है कि महिला डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में पुरुष डॉक्टरों की अपेक्षा बेहतर काम करती हैं।
हाल में ही जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के सर्जरी से सम्बंधित जर्नल में इसी विषय पर दो विस्तृत अध्ययन प्रकाशित किये गए हैं, और इस बार जर्नल का सम्पादकीय भी इसी विषय पर है। पहला अध्ययन कनाडा के टोरंटो में स्थित माउंट सिनाई हॉस्पिटल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर क्रिस्टोफर फेरवालिस ने लगभग 12 लाख मरीजों के ऑपरेशन के रिकॉर्ड का विश्लेषण करने के बाद किया है।
इन मरीजों ने वर्ष 2007 से 2019 के बीच अस्पताल में अपना इलाज करवाया था। इस विश्लेषण में ऑपरेशन करने वाले प्रमुख डॉक्टर का लिंग के साथ ही मेडिकल कौम्प्लिकेशंस, हॉस्पिटल में दुबारा भर्ती और मृत्यु दर को भी शामिल किया गया था। इस ऑपरेशनों में प्रमुख थे – ह्रदय, मस्तिष्क, हड्डियों, शारीरिक अंगों और रक्त नलिकाओं के ऑपरेशन – और ऑपरेशन की कुल 25 पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया था।
ऑपरेशन के 90 दिनों बाद पुरुष डॉक्टरों द्वारा किये गए ऑपरेशन में से 13.9 प्रतिशत में जटिलताएं यानि कोम्प्लेक्सिटी उत्पन्न हुई, जबकि महिला डॉक्टरों द्वारा किये गए ऑपरेशन में यह दर 12.5 प्रतिशत ही रही। जटिलताओं से तात्पर्य मृत्यु, दुबारा सर्जरी, इन्फेक्शन, हार्ट अटैक या स्ट्रोक है। ऑपरेशन के एक वर्ष के बाद यह दर पुरुष डॉक्टरों के लिए 25 प्रतिशत रही, जबकि महिला डॉक्टरों के मामले में कोम्प्लिकेशंस की दर महज 20.7 प्रतिशत ही रही। ऑपरेशन के बाद मरीजों के मृत्यु दर में यह अंतर और भी गहरा है। पुरुष डॉक्टरों द्वारा जिन मरीजों का ऑपरेशन किया गया, उनकी मृत्यु दर महिला डॉक्टरों के मरीजों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक देखी गयी।
दूसरा अध्ययन स्वीडन की कर्लिंसका इंस्टिट्यूट की डॉक्टर माय ब्लोह्म ने गाल ब्लैडर को हटाने के लिए किये गए ऑपरेशन के 150000 मामलों का विश्लेषण करने के बाद किया है। इस विश्लेषण से स्पष्ट है कि महिला डॉक्टरों ने जब ऑपरेशन किया तब मरीजों को अस्पताल से अपेक्षाकृत जल्दी छुट्टी मिल गयी और बाद में कॉम्प्लीकेशन्स भी कम उत्पन्न हुए। पर महिला डॉक्टरों ने ऑपरेशन के लिए पुरुष डॉक्टरों से कुछ अधिक समय लिया और ऑपरेशन थिएटर के अन्दर जाने के बाद भी जरूरत पड़ने पर पहले से तय सर्जरी की पद्धति को बदल दिया। बहुत ऐसे मामले थे जिसमें पहले से कीहोल सर्जरी तय की गयी थी, पर बाद में जटिलताओं को देखते हुए ओपन सर्जरी की गयी।
इस जर्नल के सम्पादकीय के अनुसार इन अध्ययनों के निष्कर्ष पूरी दुनिया के पुरुष डॉक्टरों के लिए एक सबक हैं और महिला डॉक्टरों को वरिष्ठ पदों पर पहुँचने से रोकने वाली स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक गंभीर सबक भी है।