Bangladesh : पीएम शेख हसीना बोलीं - ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं रोहिंग्या मुसलमान, कब तक सह पाएंगे बोझ

Bangladesh : पीएम शेख हसीना ने सवालिया अंदाज में कहा कि बांग्लादेश कितने समय तक 11 लाख रोहिंग्याओं का बोझ सह पाएगा?

Update: 2022-06-23 07:52 GMT

Bangladesh : पीएम शेख हसीना बोलीं - ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं रोहिंग्या मुसलमान, कब तक सह पाएंगे बोझ

Bangladesh : बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ( Sheikh Hasina ) ने रोहिंग्या मुसलमानों ( Rohingya Muslims ) को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में सामाजिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं। हमारे यहां शरणार्थी बनकर रह रहे अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान ड्रग ( Drugs ) और महिला तस्करी ( Womn trafficking ) जैसे अपराधों में शामिल हैं, जो कानून व्यवस्था के लिहाज से हमाने लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

11 लाख रोहिंग्या मुसलमानों का भार हम कब तक झेलेंगे

पीएम शेख हसीना ( Sheikh Hasina ) ने बांग्लादेश ( Bangladesh ) के लिए नियुक्त हुईं कनाडाई उच्चायुक्त लिली निकोल्स से संसद भवन कार्यालय में मुलाकात के दौरान इस बात का जिक्र किया था। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार के मुताबिक पीएम शेख हसीना ने कनाडाई अधिकारी से कहा कि बांग्लादेश में रह रहे करीब 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान ( Rohingla Musalman ) लंबे समय के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं।

पीएम ने रोहिंग्याओं को बताया बोझ

द डेली स्टार की खबर के मुताबिक पीएम शेख हसीना ने सवालिया अंदाज़ में कहा कि बांग्लादेश कितने समय तक इतना बड़ा बोझ सह पाएगा? बांग्लादेश सरकार ने करीब एक लाख रोहिंग्याओं को भसानचर में अस्थायी शरण दी है, जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। शेख़ हसीना की इस चिंता पर कनाडाई राजदूत ने उन्हें सहयोग का भरोसा दिया। लिली निकोल्स ने कहा कि कनाडा रोहिंग्याओं के लिए चैरिटी के जरिए अतिरिक्त फंड का इंतजाम कर रहा है।

रोहिंग्याओं ने रखी वतन वापसी की मांग

दूसरी तरफ रविवार को हजारों रोहिंग्याओं ने कॉक्स बाजार में ही शांतिपूर्ण रैली निकालकर अपने देश म्यांमार वापस जाने की मांग की। हाथों में पोस्टर और तख्तियां लिए खड़े इन रोहिंग्या प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी मांग यही थी कि उन्हें वापस अपने घर जाना है। दशकों से ये लोग दूसरे देश में रहने को मजबूर हैं लेकिन अब कितना और? कॉक्स बाजार के एक रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले मोहम्मद फारूख ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि हमारी सबसे बड़ी मांग ये है कि हम अपने देश लौट जाएं। हम म्यांमार के नागरिक के तौर पर पहचान चाहते हैं।

बता दें कि 2017 से अब तक पांच साल बीत चुके हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र ने हमें भुला दिया है। हमें वापस देश भेजने के लिए जो वादे उन्होंने किए थे, शायद भुला दिए गए हैं। अलग-अलग एजेंसियों से रोहिंग्याओं को मिलने वाली फंडिंग भी बंद हो गई है। बांग्लादेश ही अकेला ऐसा देश है जिसने रोहिंग्याओं को शरण दी है और करीब 11 लाख रोहिंग्या अब उसके लिए बोझ बनते जा रहे हैं।

Tags:    

Similar News