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जनज्वार विशेष

मोदी सरकार डिजिटल हेल्थ आईडी के जरिये छीनना चाहती है नागरिकों की आज़ादी

Janjwar Desk
29 Sep 2020 10:56 AM GMT
मोदी सरकार डिजिटल हेल्थ आईडी के जरिये छीनना चाहती है नागरिकों की आज़ादी
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इंटरनेट वह पहली चीज़ है जिसे मनुष्य ने बनाया तो है लेकिन जो मनुष्य को समझ में नहीं आता है। अराजकता का यह सबसे बड़ा प्रयोग है जो हमने कभी किया है...

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

जनज्वार।लोकतंत्र और संविधान ने आम लोगों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं, उनको कुचलने के लिए मोदी सरकार एक के बाद एक जन विरोधी फैसले लेती रही है। ऐसा ही एक फैसला है डिजिटल हेल्थ आईडी बनाने का,जिसका एकमात्र मकसद नागरिकों की आज़ादी छीनकर उनका गिनिपिग की तरह इस्तेमाल करना है।

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत जो डिजिटल हेल्थ आईडी के रूप में सभी नागरिकों का एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य डेटाबेस तैयार किया जाएगा उसमें न केवल रोगियों के संवेदनशील व्यक्तिगत स्वास्थ्य डेटा शामिल होंगे बल्कि इस तरह के डेटा में व्यक्ति का आधार नंबर या मोबाइल नंबर, राजनीतिक विचार, बैंक और वित्तीय जानकारी, शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य, विवाहित या अविवाहित, डीएनए, जाति / जनजाति और धर्म आदि के विवरण भी शामिल होंगे।

इस आईडी में आपके हर टेस्ट, हर बीमारी, डॉक्टर, आपकी परिचित फार्मेसी, आपके द्वारा ली गई दवाएं और निदान का विवरण भी होगा। यह सभी एकीकृत डेटा मोबाइल ऐप के माध्यम से व्यक्ति की सहमति से क्लीनिक, डॉक्टर या किसी भी व्यक्ति के पास पहुंच सकता है।

"इंटरनेट वह पहली चीज़ है जिसे मनुष्य ने बनाया तो है लेकिन जो मनुष्य को समझ में नहीं आता है। अराजकता का यह सबसे बड़ा प्रयोग है जो हमने कभी किया है।" - एरिक श्मिट, गूगल के पूर्व सीईओ का कहना है। इस तरह से संदेह पैदा होता है कि मोदी सरकार की यह नीति हमारे स्वास्थ्य के बारे में है या सभी के लिए डिजिटल हेल्थकेयर के नाम पर एक नया निगरानी उपकरण है।

यदि व्यक्ति सरकारी योजनाओं से लाभ प्राप्त करना चाहता है, तो उसे डिजिटल हेल्थ आईडी को अपने आधार से जोड़ना होगा। प्रारंभिक चरण के लिए यह एक स्वैच्छिक पंजीकरण होगा, लेकिन आधार की तरह जल्द ही सभी नागरिकों के लिए पंजीकरण करना अनिवार्य हो सकता है। साथ ही मरीजों को इस बात की पूरी जानकारी नहीं होगी कि उनके डेटा का उपयोग कैसे किया जा रहा है। एक डिजिटल स्टेट का उद्भव और विस्तार होगा जो तेजी से एक स्वचालित नियंत्रण प्रणाली को संचालित कर सकता है। यह लोगों को लक्षित करने और उन्हें दंडित करने के लिए एक पूर्ण निगरानी तंत्र में भी बदल सकता है।

कारपोरेट और दवा कंपनियों के लिए चिकित्सा डेटा के ऐसे व्यापक, एकीकृत रूप किसी भी निष्कर्ष से अधिक मूल्यवान हैं, जो वे अरबों डॉलर अनुसंधान पर फूंक कर भी हासिल नहीं कर सकते। यह डेटा एक विशाल संभावित आर्थिक मूल्य रखता है। लेकिन अगर वह मूल्य तीसरे पक्ष या कारपोरेट के हाथों में पहुंच जाता है, तो यह जनता के लिए बहुत हद तक खो जाएगा क्योंकि डेबिट / क्रेडिट कार्ड को जहां हैक और चोरी की स्थितियों में जल्दी से अवरुद्ध या रद्द किया जा सकता है, वहीं स्वास्थ्य जानकारी को उन लोगों से वापस हासिल नहीं किया जा सकता। एक बार रोगी के संवेदनशील डेटा चोरी या उजागर होने के बाद इसे इंटरनेट से या इसे कानूनी रूप से या अवैध रूप से रखने वालों को बदलने या हटाने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। कैम्ब्रिज एनालिटिका एक उदाहरण था कि क्या हो सकता है जब आपका डेटा गलत व्यक्ति के हाथों में हो या तीसरे पक्ष द्वारा एक्सेस किया जाए। एंथम इंक डेटा लीक, इतिहास में सबसे बड़ी हेल्थकेयर हैक की घटना थी, जिसमें 37 मिलियन से अधिक डेटा रिकॉर्ड चोरी हो गए।

चूंकि यह मोबाइल ऐप के माध्यम से सुलभ हो सकता है, मोबाइल स्वास्थ्य ऐप के जरिये इसकी बेहद निजी जानकारी और उपयोगकर्ताओं के अच्छी तरह से एकीकृत आजीवन चिकित्सा इतिहास की चोरी हो जाने का खतरा है। नागरिक के व्यक्तिगत डेटा, डिजिटाइज्ड इंटीग्रेटेड हेल्थ आईडी (डेटा), जिसमें व्यक्ति का डीएनए, राजनीतिक विचार, धर्म, जाति, शारीरिक, वित्तीय जानकारी शामिल है, पर सरकार के नियंत्रण का किसी भी उद्देश्य से दुरुपयोग होने की संभावना है। कौन जानता है, इसका नई दवाओं के परीक्षणों के लिए कारपोरेट द्वारा इस्तेमाल किया जाए।

लोगों के व्यक्तिगत डेटा को इकट्ठा करने की प्रक्रिया को इतना जटिल बनाया जा रहा है कि लोगों को समझने में मुश्किल हो, पढ़ने में बहुत लंबा हो, याद रखना असंभव हो और पारदर्शिता का अभाव हो।

स्मार्टफोन के साथ हर नागरिक बल्क डेटा संग्रह, सामूहिक निगरानी का एक हिस्सा है। आपका फोन लगातार निकटतम सेलुलर टॉवर से जुड़ा होता है, हर बार जब आप इसका उपयोग करते हैं, तो आपकी पूरी गतिविधि सेलुलर टॉवर पर भेजे गए रेडियो आवृत्तियों के माध्यम से दर्ज की जाती है।

जैसा कि रेडियो फ्रीक्वेंसी अदृश्य होती है, आप देख नहीं सकते कि आपका डिवाइस अभी भी काम कर रहा है, इसका मतलब है कि यह आपकी पूरी गतिविधि के बारे में डेटा भेजता रहता है, विशिष्ट पहचान संख्या के माध्यम से सेलुलर टॉवर को जियो-लोकेशन देता है। इसका मतलब है कि आपके बारे में स्थायी रिकॉर्ड बनाया जा रहा है। दूसरे शब्दों में डेटा का थोक संग्रह करते हुए बड़े पैमाने पर निगरानी तंत्र काम करता है और भविष्य में उपयोग के लिए पहले से डेटा एकत्र किया जाता है।

सामान्य लोगों को यह पता नहीं होता है कि ऐप या वेब पोर्टल के पास कौन सी अनुमतियाँ हैं या यह किससे जुड़ रहा है। लोगों का लागता है कि केवल उनके डेटा का उपयोग किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि वास्तव में लोगों का उपयोग किया जा रहा है।

इसके अलावा, आधार के बायोमेट्रिक डेटा संग्रह और इसके प्रारंभिक चरण में इसकी सुरक्षा चिंताओं के अनुभव से, डेटा रिकॉर्ड के पंजीकरण और सुरक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर संदेह पैदा होता है। इस तरह की गलतियाँ और दुरुपयोग अपने नागरिकों के लिए अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने की तुलना में अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।

1.3 बिलियन की अनुमानित जनसंख्या के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करना बहुत महंगा होगा। लाखों डॉलर खर्च हो सकते हैं और देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ सकता हैं, जो पहले से ही मंदी का सामना कर रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर भारत का खर्च देश की जीडीपी का महज 1.5 प्रतिशत है, जो कि अन्य देशों की तुलना में कम है।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं होने और सरकार के औषधालय, जिला अस्पतालों की बदहाली के कारण निकटतम स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचने से पहले कई ग्रामीणों की मृत्यु हो जाती है। गांवों में से कई में अभी भी बिजली, इंटरनेट का उपयोग और सड़क संपर्क की कमी है। दूरदराज के क्षेत्रों में ग्रामीण अक्सर गर्भवती महिला को पीठ / कंधों पर ले जाते हैं।

पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल बजट के बिना और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के माध्यम से मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और पर्याप्त मानव संसाधनों में सुधार के बिना डिजिटल हेल्थ आईडी असल में एक मज़ाक ही साबित होने वाला है। आम नागरिकों को पहले से ही आधार कार्ड की अनिवार्यता से जोड़कर निजता के अधिकार का हनन किया जा रहा है। अब यह हेल्थ कार्ड मोदी सरकार के लिए निगरानी का नया औज़ार बन जाएगा।

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