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राष्ट्रीय

प्रसिद्ध वायलुर मुरुगन मंदिर के नए गैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति, पास की थी परीक्षा

Janjwar Desk
20 Aug 2021 11:47 AM GMT
प्रसिद्ध वायलुर मुरुगन मंदिर के नए गैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति, पास की थी परीक्षा
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डीएमके सरकार ने हाल में 24 गैर ब्राह्मण पुजारियों को नियुक्ति पत्र सौंपा था....

जनज्वार। तमिलनाडु के एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल ही में चार दलितों समेत 24 गैर ब्राह्मण पुजारियों को नियुक्ति दी है। इन्हें पुजारी के रूप में नियुक्त करने से पहले प्रशिक्षण दिया गया था। बता दें कि इससे पहले तक पूजा स्थलों में अधिकांशत: ब्राह्मण समुदाय से आने वाले ही पुजारी के रूप में नियुक्त होते थे। अब गैर ब्राह्मण पुजारियों की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है और डीएमके सरकार के इस फैसले पर खूब चर्चा हो रही है।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं, "शुक्रिया एम.के. स्टालिन। तमिलनाडु के मंदिरों में ग़ैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति के बाद। त्रिची के प्रसिद्ध ऐतिहासिक वायलुर मुरुगन मंदिर के नए अब्राह्मण पुजारी एस. प्रभु और एस. जयबालन। एस. प्रभु के पिता दर्ज़ी हैं। पुजारी बनने के लिए दोनों ने परीक्षा पास की थी।"

वहीं ब्लॉगर व लेखक हंसराज मीणा ने अपने ट्वीट में लिखा, "मैं इस मुहिम का समर्थन नहीं करता। यह निर्णय पेरियार साहब के संघर्ष व विचारों को कमजोर करेगा और समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देगा। यह चिंताजनक हैं।"

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता नितिन मेश्राम ने लिखते हैं, "ऐसी परीक्षा न्यायालयों - सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जज बनने के लिए कब शुरू होगी? न्यायालयों में भयंकर बड़ा जातिवाद और ब्राह्मणवाद है। ब्राह्मण और अन्य शोषित जातियों के लोग सिर्फ अपनी जाति की वजह से वहां जज बनते हैं और आपके ख़िलाफ फ़ैसले सुनाते है।

डॉ. अवतार सिंह लिखते हैं, "बिल्कुल सही कहा। वैसे भी किसी धर्म को चलाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होती। हमें मंदिरों में नहीं, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में नौकरी चाहिए।"

नागेंद्र राम लिखते हैं, "धर्म-जाति को खत्म करना अभी असंभव लग रहा है। यह तभी संभव होगा जब हमारे 90% मूलनिवासियों में से बहुत इतने बड़े महामानव बन जाय कि धर्म-जाति पर गर्व करने वाले उसके सामने दो-कौड़ी का तुच्छ आदमी लगने लगें। वैसें भी धर्मातंकी-जातंकवादी ज्ञान-विज्ञान-ध्यान से नहीं क्रूरता से श्रेष्ठ है।"

अनूप सन्धू लिखते हैं, "मैं आपकी बात से सहमत हूं पर हमारे ही महापुरुष ने कहां है कि अगर जिस दिन मूलनिवासी मंदिर का पुजारी बनेगा उस दिन ब्राह्मण ही देवी देवताओं के विरोध में सड़कों पर उतरेंगे और यह कहने पर मजबूर होंगे कि यह सब काल्पनिक है क्योंकि उन्हें अब वहां से पैसा आना बंद हो जाएगा।"

विजय राव बौद्ध लिखते हैं, "आरक्षण से बहुत लोगों को दिक्कत होती है, लेकिन सदियों से एक हि समुदाय के लोग मंदिरों में तथा मंदिरों के पैसों पर कुडली मार कर बैठे है उनको बोलने वाला कोई नहीं है, तमिलनाडु की तरह हर प्रदेशों के मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारीयों की नियुक्ति अनिवार्य की जाये।"

गणेश बौद्ध ने लिखा, "इंडिया में हर जगह ऐसा नहीं हो सकता है सर, इस व्यवस्था को जिंदा रखने का साजिश है। हमें इस व्यवस्था को हर हाल में खत्म करना ही होगा, न कि ढोगी पोंगा पंडित और पुजारी बनकर हमारे आने वाली चिड़िया को वापस बर्बाद करना। आने वाले दीक्षित और विकसित पीढ़ियों को बर्बाद करने की प्लान रचा जा रहा है।"

सुमित सुमन नाम के यूजर लिखते हैं, "धर्म से जुड़े नौकरियों को सरकार द्वारा विज्ञापन जारी किया जाना चाहिए और ये विज्ञापन हर राज्य,जिले और ब्लॉक और गांव स्तर तक के मंदिरों के लिए होनी चाहिए।मंदिरों में पहले आम चुनाव हो और भारतीय संविधान की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए महिलाओं, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति को मंदिरों में नियुक्ति हेतु आरक्षण प्रदान किया जाए, उसके बाद एग्जाम लेकर मेरिट के आधार पर उसका चयन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बाहुबलियों से बचाया जा सकता है।"

वहीं सुजीत सिन्हा अपनी प्रतिक्रिया में लिखते हैं, "मंदिर में पुजारी बनने की हसरत क्यों? मंदिरों का बहिष्कार क्यों न हो?"

अनुराग निषाद निश्चल लिखते हैं, "ब्राह्मण का विरोध करते करते यहां खुशी मनाना बहुत अजीब है लेकिन यही एक एक डिपार्टमेंट है जो रिजल्ट ओरिंएटेड नहीं है, यहां के आरक्षण का मजाक नहीं उड़ा सकता, यह एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसमें जवाबदेही नहीं होती।"

अभय लाल लिखते हैं, "डॉ बी आर अंबेडकर ने मंदिरों में पुजारियों 'सरकारी नियुक्ति' की बात कही थी। मैं समझता हूं कि उनकी दूरदृष्टि इस बात से रही होगी कि सर्वसमाज की भागीदारी से धार्मिक संस्थानों में होने वाली बौद्धिक कटुता खत्म होगी। उनके इस उपाय पर तात्कालिक स्वघोषित बौद्धिक ने संवाद भी उचित नहीं समझा।"

हैरी पाण्डेय ने लिखा, "यह जरूरी भी है क्योंकि भक्ति की भावना अंदर से होती है और जिसके अंदर होगी वही आज इस क्षेत्र में जाएगा और हमें योग्य एवं वास्तविक धर्मगुरु मिल पाएगा भक्ति किसी भी जाति समुदाय की दास नहीं है, वह किसी के भी हृदय में उत्पन्न हो सकते हैं संत रैदास महर्षि वाल्मीकि महात्मा वेदव्यास यह सब।"

राकेश कुमार वर्मा ने लिखा, "असल में यही सामाजिक न्याय है ! फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार, अम्बेडकर अमर रहें !"

दर्शन सिंह लिखते हैं, "द्रविड़ क्रांति के जनक श्री रामास्वामी पेरियार का यह सपना था कि मंदिरों में सभी जातियों के पुजारियों की नियुक्ति होनी चाहिए।आज तमिलनाडु के मुख्यमंत्री श्री MK Stalin द्वारा श्री पेरियार के सपने की पूर्ति , एक क्रांतिकारी कदम है। बधाई एम.के.स्टालिन साहब।"

तमिलनाडु की डीएमके सरकार को 14 अगस्त को सरकार बने सौ दिन पूरे हुए। पार्टी ने 6 अप्रैल को हुए विधानसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि मंदिरो में पुजारी पद के लिए प्रशिक्षण पूरा करने वाले सभी जातियों के अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाएगी। स्टालिन ने 7 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

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