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मोरबी का मौत से है पुराना नाता, कुंभकरणी नींद में सोई रही गुजरात सरकार और तबाह हो गई सैकड़ों जिंदगियां

Janjwar Desk
1 Nov 2022 8:57 AM IST
Gujarat Morbi bridge collapsed updates : मोरबी का मौत से है पुराना नाता, कुंभकरणी नींद में सोई रही गुजरात सरकार और तबाह हो गई सैकड़ों जिदंगियां
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Gujarat Morbi bridge collapsed updates : मोरबी का मौत से है पुराना नाता, कुंभकरणी नींद में सोई रही गुजरात सरकार और तबाह हो गई सैकड़ों जिदंगियां

Gujarat Morbi bridge collapsed Updates : मोरबी के राजा जीयाजी जडेजा की गलत हरकतों से पीड़ित एक महिला ने ने मच्छू नदी में डूबने से पहले राजा को श्राप दिया था। सात पीढ़ियां जाएंगी, फिर न तुम्हारा वंश रहेगा, न तुम्हारा शहर। कहा जाता है कि राजा को वो श्राप लग गया और उसी के बाद से उनका वंश खत्म हो गया।

Gujarat Morbi bridge collapsed Updates : 19वीं सदी में बना और इंजीनियरिंग का करिश्मा का कहा जाने वाला गुजरात ( Gujrat ) का मोरबी पुल ( Morbi bridge ) एक बार फिर 150 से अधिक मौत का गवाह बना। सैकड़ों परिवारों और मोरबी के लोगों के लिए झूलता हुआ यह ब्रिज मौत का झूला साबित हुआ। यह बहुत ही हृदय विदारक घटना है। हम तो यही उम्मीद करेंगे कि गुजरात मॉडल ( Gujrat Model ) के नशे धुत्त धृतराष्ट व जिम्मेदार लोग इससे सबक लेंगे, लेकिन ऐसा होगा, इसकी उम्मीद बहुत कम है।

ऐसा इसलिए कि मोरबी ( Morbi ) के इस कलंक को ढकने और गुजरात चुनाव ( Gujrat election ) पर इसके असर को नाकाम करने के लिए एक बार फिर वहां की संघी सरकार अपनी चिर परिचित जनविरोधी मुहिम में जुट गई है। जबकि यह वक्त शोक मनाने और संकल्प लेने का है कि हम कुछ वैसा करेंगे कि मोरबी भविष्य में फिर से मौत का गवाह न बने।

दरअसल, मोरबी पुल ( Morbi bridge news ) उन लोगों का बोझ नहीं सह पाया जो जन हित की परवाह नहीं करते। साथ ही पुल रखरखाव करने वाली कंपनी की आपराधिक कार्यशैली और दरबारी नौकरशाही के बोझ को और बर्दाश्त नहीं पाई। साथ ही ये झूलता हुआ झूला मोरबी पालिका की लापरवाही झेल नहीं पाया। अफसोस की बात यह है कि सिर्फ पुल नहीं टूटा है। यहां टूटी हैं जिंदगियां, यहां टूटी हैं उम्मीदें, टूटी हैं सांसों की डोर और टूटी है मानवता।

पुल का टूटना गुजरात मॉडल ( Gujrat Model ) के निर्माताओं से पूछ रहा है कि अंग्रेजों की गुलामी की जंजीर तोड़ रहे हो, शहरों और सड़कों के नाम बदल रहे हो, स्टेशनों के नाम बदल रहे हो, तो फिर 100 साल पुराने अंग्रेजों के बनाए इस मौत के झूले को क्यों नहीं बदला? इतना ही नहीं मोरबी की लोककथाओं की मानें तो यह पुल ये भी पूछ रहा है कि वहां के राजाओं की मानमानी और काली करतूतों का कलंक कब धोओगे ये तो बताओ।

फिलहाल, 150 से अधिक लोगों की जान लेने के बाद वहां की सरकार कुंभकरणी नींद से जागी है। एसआईटी की जांच बैठा दी गई है, लेकिन बुनियादी सवाल तो वही हैं कि क्या मोदी और शाह ( PM Modi - Amit Shah ) की कठपुतली गुजरात सरकार सही मायने में दोषियों की गर्दनों पर अपना हाथ रख पाएंगी, दोषियों को ऐसा सजा दिला पाएगी कि एक नजीर बन जाए। या एक बार फिर भ्रष्टाचार की डकार की आवाज में माताओं-बहनों-बेटों-बेटियों-पिताओं की चीखें 43 साल पहले की तरह फिर गुम हो जाएंगी। या छोटी मछलियों पर कार्रवाई कर मगरमच्छों को ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा, जो फिर से मासूम जिंदगियों पर सौदे लगाते रहेंगे।

चंद दिनों पहले की ही तो बात है जब मरम्मत के बाद गुजराती नव वर्ष के अवसर पर पर बिना सेफ्टी एनओसी लिए स्थानीय प्रशासन ने इस पुल का चालू कर दिया था, ताकि भाजपा विधानसभा चुनाव ( Gujrat election ) में इसको भुना सके। लेकिन रिनोवेशन के बाद भी पुल इतनी जिंदगियों को लील गया, तो इन मौतों का जिम्मेदार किसे माना जाए। एफआईआर में तो जिम्मेदारी लोगों और एजेंसियों के नात मक नहीं हैं।

क्या हुआ था 43 साल पहले

दरअसल, मोरबी में 1979 में एक बांध टूटा था। बांध टूटने की वजह से 1500 लोग मारे गए थे। तब आरोप लगा था कि इंदिरा गांधी ने लाशों से आती दुर्गंध से बचने के लिए नाक बंद कर ली थी। अब सवाल पूछा जाएगा, गुजरात और मोरबी के नेताओं ने क्यों इतनी बड़ी आपराधिक लापरवाही पर चार पांच दिनों तक आंख बंद कर ली? अब कांग्रेस पूछ रही है कि क्या चुनावी माइलेज लेने के लिए हड़बड़ी में ब्रिज को खोला गया? क्या वोट के लिए गुजरातियों की जिंदगी से सियासी खेल खेला गया? क्या सच से पर्दा उठाएगी मोदी सरकार। चौंकाने वाली बात यह है कि मोरबी पालिका के चीफ संदीप के मुताबिक 20-25 लोगों को एक बैच में जाने की इजाजत थी, तो कैसे 400 से ज्यादा लोगों को जाने की इजाजत मिली। पुल पर कितने लोग जा रहे हैं, क्या इसे देखने वाला कोई नहीं था?

मोरबी पुल का इतिहास

गुजरात के मोरबी पुल का उद्घाटन 20 फरवरी, 1879 को मुंबई के तत्कालीन गवर्नर रिचर्ड मंदिर और मोरबी के पूर्व शाही निवास, नज़रबाग पैलेस के साथ दरबारगढ़ पैलेस द्वारा किया गया था। 143 वर्ष तक चालू रहने के बाद, पुल को नवीनीकरण कार्य के लिए अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था, जिसमें 2 करोड़ रुपए की लागत आई थी। सुधार में सात महीने लगे और सिर्फ पांच दिन पहले बिना एनओसी के इसे जनता के लिए फिर से खोल दिया गया। तीन दिन पहले मोरबी पुल ध्वस्त हो गया। मोरबी पुल का निर्माण वहां के पूर्व शासक वाघजी ठाकोर ने उपनिवेशवादी सोच से प्रभावित होकर कराया था। पुल को उनकी आधुनिक सोच का प्रतीक माना जाता था। मोरबी कलेक्ट्रेट वेबसाइट के मुताबिक पुल एक 'इंजीनियरिंग चमत्कार' था क्योंकि इसमें इंग्लैंड से आयातित आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था। उस दौर में पुल के निर्माण पर 3.5 लाख रुपए की लागत से बनाया गया था।

मोरबी ब्रिज के निर्माण का श्रेय वहां के तत्कालीन राजा वाघजी रावजी को जाता है। इसे ब्रिटिश इंजीनियरों ने साल 1979 में बनाया था। पुल के निर्माण में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। इस पुल पर अकसर लोग धूमने आते थे। पुल की लंबाई 765 फुट है और ये 4 फुट चौड़ा है। ऐतिहासिक होने के कारण इसे गुजरात टूरिज्म की लिस्ट में भी शामिल किया गया था। कहते हैं कि राजा राजमहल से राज दरबार तक इसी पुल से होकर जाते थे। जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तो इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ था। मच्छू नदी पर बने मोरबी पुल अब दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच एक संपर्क बिंदु के रूप में काम करता है। पहले यह पुल दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ता था।

राजा जीयाजी जडेजा को एक महिला ने दिया था ये श्राप

Gujarat Morbi bridge collapsed Updates : वहीं, गुजरात ( Gujrat ) के मोरबी ( Morbi bridge ) की तमाम लोककथाओं में मोरबी में होने वाले हादसों को एक श्राप के तौर पर देखा जाता है। इसका जिक्र उनके कई लोक गीतों में भी है। मोरबी को लेकर एक कथा है कि मोरबी के राजा जीयाजी जडेजा एक औरत की ओर आकर्षित हो गए थे, लेकिन पउस महिला को ये बात पसंद नहीं आई। राजा उसे परेशान करते थे जिसकी वजह से एक दिन महिला ने मच्छू नदी में कूदकर जान दे दी। आउटलुक की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने राजा के डूबने से पहले उन्हें श्राप दिया था। महिला ने कहा था कि सात पीढ़ियां जाएंगी, फिर न तुम्हारा वंश रहेगा, न तुम्हारा शहर। कहा जाता है कि राजा को वो श्राप लग गया और उसी के बाद से उनका वंश खत्म हो गया। 1978 में जब ये बांध बना तो जीयाजी के सातवें वंशज मयूरध्वज यूरोप में किसी से लड़ पड़े और उनकी जान चली गई।

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