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उत्तर प्रदेश

एक दशक से निलंबित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की आपबीती, बोले-जाति का मैं धोबी हूं इसलिए मुझे नहीं मिल रहा न्याय

Janjwar Desk
26 Oct 2020 12:51 PM GMT
एक दशक से निलंबित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की आपबीती, बोले-जाति का मैं धोबी हूं इसलिए मुझे नहीं मिल रहा न्याय
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मिर्जापुर जिला अस्पताल की जहां धोबी जाति के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुनील कुमार कनौजिया तैनात हैं और अक्सर विभाग में होने वाले हर उस गलत कार्यों का डटकर विरोध करते हैं जो जनहितों की अनदेखी करते हुए किया जाता है, बस यही स्वभाव उनके लिए घातक साबित हो गया है......

संतोष देव गिरी की रिपोर्ट

मिर्जापुर। सच बोलना स्वास्थ्य विभाग के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को इस कदर महंगा पड़ा कि उसे तरह-तरह की मानसिक और आर्थिक यातनाओं से भी रूबरू होना पड़ रहा है। एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उसे बहाल करने को कौन कहे, उसके तमाम उन प्रार्थना पत्रों को भी रद्दी की टोकरी में डालकर उसे हाशिए पर छोड़ दिया गया है, जिसमें उसने अपना पक्ष रख रखा था।

हम बात कर रहे हैं मिर्जापुर जिला अस्पताल की जहां धोबी जाति के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुनील कुमार कनौजिया तैनात हैं और अक्सर विभाग में होने वाले हर उस गलत कार्यों का डटकर विरोध करते हैं जो जनहितों की अनदेखी करते हुए किया जाता है। बस यही स्वभाव उनके लिए घातक साबित हो गया है। गाली गलौज देने के आरोप में उन्हें जनवरी 2009 से निलंबित कर दिया गया है।

मिर्जापुर जिला अस्पताल के तत्कालीन मुख्य चिकित्सा अधीक्षक रहे डॉक्टर सी.एस. मधुकर द्वारा सुनील कनौजिया को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। उनपर गाली गलौच देने का आरोप लगा था, तब से अब तक निलंबन की पीड़ा झेलते आ रहे सुनील कनौजिया की स्थिति जर्जर होने के साथ ही साथ उन्हें कई तरह के आर्थिक और मानसिक परेशानियों से भी दो-चार होना पड़ रहा है।

जबकि वह अपना पक्ष रखने के क्रम में कई बार विभागीय उच्चाधिकारियों को अपनी समस्याओं से अवगत करा चुके हैं, साथ ही साथ अपने निलंबन के पक्ष में अपनी बात को भी दमदारी के साथ प्रस्तुत कर चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि इन सबके बाद भी उनके प्रार्थना पत्रों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जा रहा है।

यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक अदने से कर्मचारी को महज गाली-गलौज देने के आरोप में बिना किसी देर लगाए निलंबित कर दिया गया, जबकि वहीं दूसरी ओर मिर्जापुर के स्वास्थ्य विभाग में तमाम ऐसे दागदार चेहरे हैं हैं जो भ्रष्टाचार, घोटाले के गंभीर आरोपों से घिरे होने के बाद भी मोटी पगार लेने के साथ-साथ विभाग को खोखला करते आ रहे हैं। बावजूद इसके इन पर कोई ठोस दंडनात्मक कार्रवाई के बजाय उन्हें उनकी हाल पर छोड़ दिया गया है।

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिरकार एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों? क्या यह कथित छोटी जाति की वजह से है ? कम वेतन पाने वाला कर्मचारी है? सच बोल देना उसके स्वभाव का हिस्सा बन चुका है इस वजह से उसे न्याय नहीं मिल पा रहा है?

गौरतलब हो कि फर्जी नियुक्तियों से लेकर एनएचआरएम घोटाले के मामले में मिर्जापुर जनपद भी अव्वल रहा है जिसमें कई "मुन्ना बाबू" महारत हासिल करते हुए फर्जी नियुक्तियों के सरताज बन विभाग में अपने नाम का डंका बजाते आ रहे हैं। जिन पर कहने के लिए तो कार्रवाई की गई, लेकिन वह ऐनकेन प्रकारेण पद पैसे का प्रभाव दिखाकर विभाग में ऐनकेन प्रकारेण जमे हुए हैं।

जिनका कोई भी बाल बांका नहीं कर पाया वही जब बात एक अदने से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की आती है तो वह पिछले 12 वर्षों से निलंबन की मार सहता आ रहा है, जिसका कसूर बस इतना रहा है कि उसने विभागीय गड़बड़ झाले का विरोध कर दिया था जो विभागीय लोगों को नागवार गुजरा और बस उसको गाली गलौज देने के आरोपों में निलंबित कर दिया गया।

6 जनवरी 2009 से निलंबन के बाद सुनील कुमार उन तमाम जनप्रतिनिधियों से लेकर विभागीय उच्चाधिकारियों के चौखट तक अपनी वेदना, पीड़ा को लेकर हाजिरी लगा चुका है, लेकिन किसी ने भी उसके जख्मों पर मरहम लगाने की जहमत नहीं उठाई है।

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