आर्थिक आधार पर क्यों नहीं मिलना चाहिए आरक्षण कोटा - सुप्रीम कोर्ट का याचिकाकर्ता से सवाल
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नई दिल्ली। आर्थिक आधार ( EWS ) पर आरक्षण ( reservation ) के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस एस रवींद्र भट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि 75 साल बाद देश में गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले लोगों का एक बड़ा समूह है। फिर आर्थिक आधार पर आरक्षण ( reservation ) क्यों नहीं हो सकती। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो सरकारी स्कूल उपलब्ध हैं, नौकरियां उपलब्ध हैं लेकिन ये लोग दूसरों की तरह आरक्षण से वंचित हैं। ऐसे में आर्थिक तौर से पिछड़े लोगों को आरक्षण मिलता है तो इसमें गलत क्या है?
एससी-एसटी को तो पहले से आरक्षण हासिल है
जस्टिस रवींद्र भट ने यह सवाल तब उठाया जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता शादान फरासत ने दलील दी कि पिछड़े वर्गों को इससे छूट देकर 103वें संशोधन ने समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है। यह संविधान के मूल ढांचे से भी छेड़छाड़ है। इसके जवाब में जस्टिस भट ने कहा कि हो सकता है कि ईडब्लूएस कोटे का लाभ पिछड़े वर्गों को इसलिए नहीं दिया जा सकता है कि वो उन्हें पहले से ही आरक्षण हासिल है। उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्गों को पहले से ही आरक्षण की सुविधा मिली है। इस सोच के तहत उन्हें ईडब्लूएस कोटा से बाहर रखा गया है।
जस्टिस भट के इस तर्क पर अधिवक्ता फरासत ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा और पिछड़ा वर्ग का आरक्षण अलग है। पिछड़े वर्गों के लिए कोटा एक समूह के लिए एक कोटा है न कि एक व्यक्ति के लिए। यह ऐतिहासिक गलतियों को सुधारना है। प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। यह एक समूह से बात करता है। ईडब्ल्यूएस कोटा उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर व्यक्ति से बात करता है। यह कहना अनुचित होगा कि ईडब्ल्यूएस में पिछड़ों को शामिल नहीं किया जाएगा क्योंकि उनके पास पहले से ही अन्य आरक्षण हैं।
अधिवक्ता फरासत का कहना है कि आर्थिक रूप से वंचित वर्गों की समस्याओं को हल करने के लिए अन्य सकारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि आरक्षण हो। इस पर अदालत ने कहा कि किसी वर्ग तक सरकारी नीतियों का लाभ पहुंचाने के लिए आर्थिक आधार पर नियम तय करने को प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
आर्थिक आधार पर आरक्षण क्यों नहीं
इसका जवाब देते हुए अधिवक्ता ने कहा कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। यह सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए व्यवस्था थी। इसका मकसद गरीबी हटाओ योजना चलाना नहीं है। कई वकीलों ने चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांचण्सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि किसी परिवार की वित्तीय स्थिति के एकमात्र मानदंड के आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा तय करना असंवैधानिक है। संविधान के तहत इस तरह के आरक्षण को गरीबी उन्मूलन योजना के हिस्से के तौर पर मंजूर नहीं किया जाता है। वकीलों ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा पूरी तरह से अनुचित, मनमाना, अवैध और असंवैधानिक है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील रवि वर्मा कुमार ने आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यानि चंपकम दोरईराजन के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी, एससी और एसटी की आबादी 85 फीसदी है और उन्हें करीब 50 फीसदी कोटा दिया जा रहा है। पांच फीसदी ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी कोटा मिलेगा। एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा कि इसे एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। बता दें कि 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा एससी-एसटी और ओबीसी के लिए तय 50 प्रतिशत आरक्षण के अतिरिक्त है।
इस पर अदालत ने यह अहम टिप्पणी की है। यह इंदिरा साहनी या मंडल कमीशन मामले में न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए सरकार के विधायी निर्णय की श्रेणी में आता है। ऐसे में अदालत के रुख से यह माना जा रहा है कि शायद ईडब्लयूएस कोटा बरकरार रहेगा। इस याचिका पर सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित अध्यक्षता वाली पीठ में सीजेआई सहित जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं। पांच सदस्यीय पीठ सरकारी नौकरियों और प्रवेश में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा शुरू करने वाले 103वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।