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राजस्थान

राजस्थान का महिला आयोग 2 साल से क्वारंटीन में, महिला उत्पीड़न के मामले पहुंचे हाइट पर

Prema Negi
28 May 2020 10:34 AM GMT
राजस्थान का महिला आयोग 2 साल से क्वारंटीन में, महिला उत्पीड़न के मामले पहुंचे हाइट पर
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राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा हम यह देखकर हैरान हैं कि इतने लंबे समय से राजस्थान में नहीं किया गया है महिला आयोग का नए सिरे से गठन, जबकि महिला उत्पीड़न के आंकड़े बढ़ रहे हैं लगातार...

अवधेश पारीक की रिपोर्ट

जनज्वार, जयपुर। देश और दुनिया में कोरोना का कहर जारी है। कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए देशभर में पिछले 2 महीने से भी ज्यादा वक्त से तालाबंदी है, करोड़ों लोग घरों की चारदीवारी में कैद हैं तो दूसरी ओर देश की आधी आबादी एक अन्य वायरस से जूझ रही है।

पिछले दिनों शोध में भी सामने आ चुका है कि लॉकडाउन में घरेलू हिंसा बढ़ी है, ऐसे में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले महिला आयोग का भी गठन न किया जाना राजस्थानी महिलाओं के लिए​ चिंतनीय है, जिस तरफ शासन—प्रशासन का ध्यान ही नहीं जाता।

देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से महिलाएं घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से घरों में कैद होकर लड़ रही हैं। इन मामलों में देश के कई हिस्सों में बढ़ोतरी देखी गई है। जहां राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं पर होने वाली इन घटनाओं को लेकर चिंतित है, वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार में महिलाओं को एक स्याह हकीकत का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि प्रदेश में गहलोत सरकार के डेढ़ साल बीत जाने बाद भी राज्य महिला आयोग का नया ढांचा तक नहीं बना है।

क्टूबर 2018 में सूबे की जनता ने नई सरकार चुनी, लेकिन अभी तक राज्य महिला आयोग का दुबारा गठन नहीं किया गया है, आयोग के अध्यक्ष और बाकी सदस्यों के पद खाली पड़े हैं। बीजेपी सरकार में आयोग की पिछली अध्यक्ष सुमन शर्मा रहीं, जिनका कार्यकाल 19 अक्टूबर 2018 को समाप्त हो गया।

लॉकडाउन के इस दौर में ऐसी संस्था का नहीं होना एक चिंता का विषय है, क्योंकि हाल में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में क्वारंटीन के दौरान एक स्कूल में 40 वर्षीय महिला से गैंगरेप का मामला सामने आया, जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग को इस पर खुद संज्ञान लेना पड़ा।

आयोग ने राजस्थान पुलिस के महानिदेशक भूपेंद्र सिंह यादव को पत्र लिखकर कहा था कि वह इस मामले की तत्काल जांच कर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करें।

वहीं एक अन्य मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन में सीकर राजस्थान के एक पिता की ओर से राष्ट्रीय महिला आयोग को शिकायत मिली, जिसमें पिता ने कहा कि उनकी बेटी की ससुराल में बेरहमी से पिटाई की जा रही है और उनके शिक्षक दामाद ने लॉकडाउन के बाद से उनकी बेटी को खाना तक नहीं दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसे कई मामले राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रहे हैं।

लॉकडाउन से घरेलू हिंसा की शिकायतों में बढ़ोतरी : राष्ट्रीय महिला आयोग

राष्ट्रीय महिला आयोग को कोरोना वायरस महामारी के बाद लगाए गए देशव्यापी तालाबंदी के दौरान अप्रैल में घरेलू हिंसा की 315 शिकायतें मिली हैं। ये सभी शिकायतें ऑनलाइन और व्हाट्सएप के जरिए मिली हैं।

आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि, 24 मार्च से अब तक सिर्फ घरेलू हिंसा से जुड़ी 69 शिकायतें हमारे पास आई हैं. वहीं रेप या रेप की कोशिश की 13, सम्मान के साथ जीने के अधिकार के संबंध में 77 शिकायतें देशभर से मिली है।

सके अलावा आयोग का यह भी कहना है कि सभी शिकायतें ईमेल के ज़रिए ज्यादातर शहरी इलाकों से मिली हैं लेकिन हमें आशंका है कि लॉकडाउन खुलने के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ेगा, क्योंकि तब डाक सेवा से भी शिकायतें मिलेंगी।

योग ने अप्रैल के महीने में साइबर अपराध के मामलों में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की है। आंकड़ों के लिहाज से अप्रैल में 54 साइबर शिकायतें मिली है।

राजस्थान में मार्च और अप्रैल में महिला अत्याचार के 3000 से अधिक मामले दर्ज : राजस्थान पुलिस

सके अलावा राजस्थान में पुलिस विभाग की 2019 वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल (2018) के मुकाबले 2019 के जनवरी से जुलाई के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 66% की बढ़ोतरी देखी गई है।

आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कुल 66.78% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले साल (2018) में इस दौरान 15,242 मामले दर्ज किए गए थे जो 2019 में जनवरी और जुलाई के बीच 25,420 तक पहुंच गए।

हीं यदि हम जुलाई 2019 में दर्ज महिला अत्याचार के मामलों की तुलना करते हैं, तो आंकड़े 4,898 हैं, जबकि जुलाई 2018 में यह आंकड़ा 2614 था।

भाजपा-कांग्रेस सरकारों के भंवर में महिला आयोग!

अगर हम राज्य महिला आयोग के गठन के बाद से इसके इतिहास को देखें तो यह साफ दिखाई देता है कि सरकारों के आवागमन में हर बार नई सरकार नए सिरे से गठन करने 5-6 महीनों का वक्त लेती है, लेकिन गहलोत सरकार का पैटर्न इससे पहले भी चिंताजनक रहा है।

दाहरण के तौर पर 2009 में आयोग अध्यक्ष तारा भंडारी का कार्यकाल खत्म होने के बाद नई महिला आयोग अध्यक्ष प्रो लाड कुमारी जैन को मनोनीत करने में राज्य सरकार ने करीब ढ़ाई साल का समय लिया था। मालूम हो कि राज्य में 2008 में अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए थे। इसके अलावा 2014 के बाद तत्कालीन राजे सरकार ने अध्यक्ष मनोनीत करने में करीब 10 महीने का समय लगाया। मालूम हो कि आयोग की अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है।

रकारों की इस लेटलतीफी पर पूर्व महिला आयोग अध्यक्ष सुमन शर्मा कहती हैं कि, लॉकडाउन के इन दो महीनों के दौरान पूरे देशभर में महिला अत्याचार की बहुत सी घटनाएं हुई है इसके अलावा सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कितने ही मामले इस दौरान रजिस्टर तक नहीं हो पाए हैं।

कौल शर्मा, "लॉकडाउन के बाद से मेरे पास बहुत महिलाओं के फोन आए हैं क्योंकि अधिकांश महिलाएं या जनमानस के बीच अभी तक यही जानकारी है कि वर्तमान में मैं राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हूं"।

आयोग के गठन को लेकर पूछने पर वह कहती हैं कि, भगवान जाने सरकारें ऐसे जरूरी संस्थाओं में यह लेटलतीफी क्यों करती हैं, जबकि ऐसे दौर में हमारे समाज में तो इन संस्थाओं की जरूरत बढ़ जाती है।

हीं कांग्रेस की राज्य उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा इस पूरे मसले पर एकदम सीमित जवाब देते हुए कहती हैं कि, "हमारी सरकार बने कुछ ही समय हुआ है और अब ये कोरोना संकट आ गया, ऐसे में सरकार अभी आयोग के गठन पर फैसला कैसे ले पाएगी, हां परिस्थितियां जब भी सामान्य होगी सरकार इस पर तुरंत फैसला लेने के लिए प्रतिबद्ध है।"

रिष्ठ पत्रकार नारायण बारहठ इसे किसी पार्टी विशेष का नाम ना लेकर राजनीतिक विफलताओं का उदाहरण बताते हुए कहते हैं कि, "राजनीतिक दलों के साथ ये समस्या रही है कि सरकारों में आने के बाद वो लंबे समय तक अपनी प्राथमिकताएं तय नहीं कर पाते हैं, जिसका नतीजा समाज के एक तबके को भुगतना पड़ता है।"।

सी परिदृश्य में भीलवाड़ा में बाल व महिला चेतना समिति की अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता तारा अहलूवालिया सीधे कांग्रेस सरकार को निशाने पर लेते हुए कहती हैं कि अक्सर हमनें देखा है कि संस्थाओं के गठन में कांग्रेस सरकार की नींद 4 सालों बाद खुलती है, चुनावी साल में सारी गायब संस्थाएं कागजों में उतार दी जाती हैं।

सके साथ ही लॉकडाउन में महिलाओं की स्थिति पर वह जोड़ती हैं कि पुलिस तंत्र का महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रह ग्रसित रवैया और फिलहाल महामारी रोकथाम में व्यस्तता के बीच महिलाओं की सुनवाई कहां होगी। अब तक राज्य में महिला आयोग जैसी संस्था का नहीं होना राजस्थान कांग्रेस सरकार की ढांचागत कमियों को उजागर करता है।

तो उधर लॉक़डाउन में राजस्थान में काम करने वाले महिला संगठन कैसी परिस्थितियां देख रहे हैं, इसके लिए हमनें महिला मुद्दों पर काम करने वाले संगठन "विशाखा" के भरत कुमार से बात की, उन्होंने लॉकडाउन के समय को महिलाओं पर त्रासदी बताते हुए कहा कि, हम पिछले 2 महीनों से राजस्थान में अतिरिक्त टीम के साथ काम कर रहे हैं क्योंकि पिछले 2 महीनों में बीकानेर, डूंगरपुर, उदयपुर जैसे जिलों से हमारे पास करीब 50 से 60 शिकायतें रोज ही आयी हैं, जिनकी हम काउंसलिंग कर रहे हैं।

राज्य महिला आयोग के सवाल पर वह कहते हैं कि जब राजस्थान में गहलोत सरकार दुबारा आयी थी तो हमनें सोचा था कि जल्द ही महिला आयोग का गठन किया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

हीं अजमेर में काम करने वाले एक अन्य संगठन राजस्थान समग्र कल्याण संस्थान से डॉ एस एन शर्मा बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हमें अजमेर के अलावा कई हिस्सों से 200 से अधिक महिलाओं ने संपर्क किया है। हमारी 7 लोगों को टीम लगातार उन महिलाओं से संपर्क बनाकर उनकी समस्या की काउंसलिंग कर रही है। महिला आयोग पर बकौल शर्मा जब सरकार बनी तो कई संगठनों ने मिलकर महिला आयोग के गठन को लेकर कहा था लेकिन करीब 2 साल बाद हालात वही है।

खिर में अब थोड़ा राज्य महिला आयोग के बारे में भी जान लेते हैं। 23 अप्रैल 1999 को, राज्य सरकार ने राजस्थान विधानसभा में महिला अधिनियम (1999) के तहत राजस्थान राज्य आयोग का प्रस्ताव पारित किया जिसके बाद 15 मई 1999 को महिलाओं के लिए यह आयोग अस्तित्व में आया। आयोग के अध्यक्ष को राज्य सरकार मनोनीत करती है जिसका कार्यकाल तीन साल का होता है। इसके अलावा आयोग में 3 सदस्य होते हैं और एक राज्य सरकार द्वारा पदस्थापित अधिकारी होता है।

नियम के मुताबिक आयोग की सिफारिशें मिलने की तारीख से तीन महीने के भीतर वहां की राज्य सरकार कार्यवाही और उसकी सूचना देने के लिए प्रतिबद्ध है।

राज्य महिला आयोग की आखिरी वार्षिक रिपोर्ट 2018

अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद से राज्य महिला आयोग बना ही नहीं है, इसलिए आयोग की अधिकारिक वेबसाइट पर आखिरी रिपोर्ट साल 2018 की है। इसके मुताबिक, 1 अप्रैल 2018 से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक आयोग को कई तरह की शिकायतें जनसुनवाई व व्यक्तिगत तरीके से प्राप्त हुईं, जिनमें दहेज क्रूरता, दहेज हत्या, भरण-पोषण, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार, बलात्कार का प्रयास, अपहरण, यौन उत्पीड़न, भूमि विवाद व घरेलू हिंसा की शिकायतें शामिल थी।

हीं रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कहते हैं कि इस दौरान आयोग को कुल 3188 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 1523 मामले निपटा दिए गए वहीं 1665 अभी प्रक्रियाधीन है। वहीं महिला आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, कोई भी महिला ऑनलाइन, 24 घंटे हेल्पलाइन और लिखित में शिकायत कर सकती है।

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