पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को यौन शोषण मामले में क्लीनचिट देने वाले जस्टिस अरविंद बोबड़े बने 47वें सीजेआई
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जस्टिस बोबड़े 2015 में उस तीन सदस्यीय पीठ में भी थे शामिल जिसने निर्देशित किया था कि आधार कार्ड के बिना भारत के किसी भी नागरिक को बुनियादी सेवाओं और सरकारी सेवाओं से नहीं किया जा सकता वंचित...
जनज्वार। सीजेआई रंजन गोगोई के रिटायरमेंट के बाद 47वें चीफ जस्टिस के बतौर शरद अरविंद बोबड़े ने शपथ ले ली है। नागपुर में जन्मे बोबड़े के पिता महाराष्ट्र में अधिवक्ता रहे तो दादा एक ख्यात वकील थे।
जस्टिस बोबड़े को 47वें सीजेआई के बतौर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज 18 नवंबर को शपथ दिलवाई है। जस्टिस बोबड़े (18 महीने तक चीफ जस्टिस के बतौर काम करेंगे और 23 अप्रैल, 2021 को उनका कार्यकाल समाप्त होगा।
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गौरतलब है कि भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई ने अपने उत्तराधिकारी के बतौर शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस बोबड़े के नाम की सिफारिश की थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस साल आये कई महत्वपूर्ण मामलों में जस्टिस अरविंद बोबड़े की बड़ी भूमिका रही है। हाल ही में आये अयोध्या रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद उनमें से एक है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके जस्टिस बोबड़े का जन्म 24 अप्रैल 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। नागपुर विश्वविद्यालय से कला एवं कानून में स्नातक की पारिवारिक पृष्ठभूमि वकालत से जुड़ी हुई रही है। उनके दादा भी वकील थे और पिता अरविंद बोबड़े 1980 और 1985 में महाराष्ट्र के महाधिवक्ता रहे। यही नहीं उनके बड़े भाई स्वर्गीय विनोद अरविंद बोबड़े सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और संवैधानिक विशेषज्ञ रह चुके थे।
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गौरतलब है कि जस्टिस बोबड़े वर्ष 1978 में महाराष्ट्र बार परिषद में बतौर अधिवक्ता पंजीकृत हुए थे। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में 21 साल तक सेवाएं देने के बाद जस्टिस बोबड़े वर्ष 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने थे।
29 मार्च 2000 को बॉम्बे उच्च न्यायालय में बोबड़े को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। 16 अक्टूबर 2012 को जस्टिस बोबड़े मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 12 अप्रैल 2013 को उनका प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में हुआ। इस दौरान कई महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही।
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला सुनाने वाली 5 जजों की बेंच में जस्टिस बोबड़े भी शामिल थे। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति बोबड़े की अध्यक्षता में ही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने पूर्व CJI रंजन गोगोई को उन पर न्यायालय की ही पूर्व कर्मी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप में क्लीनचिट दी थी। इस समिति में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी शामिल रह चुकी हैं।
जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इन हाउस कमेटी ने कहा था कि वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं। उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं। रंजन गोगोई पर लगा यौन उत्पीड़न का आरोप तब मीडिया की सुर्खियों में रहा था।
न्यायमूर्ति बोबड़े 2015 में उस तीन सदस्यीय पीठ में भी शामिल थे, जिसने निर्देशित किया था कि आधार कार्ड के बिना भारत के किसी भी नागरिक को बुनियादी सेवाओं और सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं किया जा सकता। यह एक महत्वपूर्ण फैसला था।