Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

COVID-19 के मेडिकल कचरे से सफाई कर्मचारियों को सबसे ज़्यादा ख़तरा!

Janjwar Team
18 April 2020 8:00 AM IST
COVID-19 के मेडिकल कचरे से सफाई कर्मचारियों को सबसे ज़्यादा ख़तरा!
x

पुणे में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष और कॉलेज की पूर्व डीन रेनू भारद्वाज कहती हैं- 'अगर आम जनता द्वारा इस्तेमाल किये गए फेस मास्क ठीक तरीके से नहीं फेंके गए तो सफाई कर्मचारियों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी संक्रमण का स्त्रोत हो सकते हैं...

चैतन्य मल्लापुर का विश्लेषण

फाई कर्मचारियों और कचरा बटोरने वालों को उन जगहों के आस-पास से गैर-चिन्हित कचरा बटोरने में बहुत बड़ा खतरा है जहां COVID-19 के मरीज क्वारंटीन में रह रहें हैं। यह कहना है चिकित्सा और कचरा प्रबंधन विशेषज्ञों का। इन विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि फेंके गए मास्क, हाथ के दस्ताने और टिश्यू पेपर इस बीमारी का संक्रमण बढ़ाने के शक्तिशाली माध्यम बन सकते हैं।

स वायरस के इलाज और रोकथाम में इस्तेमाल होने वाली चिकित्सा सम्बन्धी सामग्री का कचरा कितना खतरनाक हो सकता है इसके अनेक उदाहरण सामने आये हैं -

- इंडियन एक्सप्रेस में 23 मार्च 2020 को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पुणे में घरेलू कचरे में फेंके गए फेस मास्क कूड़ा बटोरने वालों द्वारा उठाये जा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि ज़िले में क्वारंटीन में रह रहे कोरोना के लक्षणों से प्रभावित या विदेश से लौटे 2000 से भी ज़्यादा लोगों द्वारा फेंके गए मास्क और अन्य चिकित्सा सम्बन्धी कचरे को उठाने और फेंकने का कोई तरीका नहीं है।

- 12 मार्च 2020 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी रिपोर्ट में कहा गया था कि एक व्यक्ति ने ठाणे में एक लाख फेस मास्क धोकर सुखाने के लिए टाँगे थे ताकि वो उन्हें दोबारा बाजार में बेच सके।

- 1 अप्रैल 2020 को इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के शरण विहार इलाक़े में खुले में फेंकी गयी चिकित्सा सम्बन्धी सामग्री के कचरे का ढेर पाया गया। कचरे के इस ढेर में रद्दी फेस मास्क, ट्यूनिक्स, गाउन्स और सिरिंजेज़ पाए गए थे।

संबंधित खबर : हर महामारी की तरह कोरोना में भी मरने को अभिशप्त है हाशिये का समाज

बीरामजी जीजीबॉय गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पुणे में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष और कॉलेज की पूर्व डीन रेनू भारद्वाज कहती हैं- 'अगर आम जनता द्वारा इस्तेमाल किये गए फेस मास्क ठीक तरीके से नहीं फेंके गए तो सफाई कर्मचारियों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी संक्रमण का स्त्रोत हो सकते हैं। ये वायरस की संख्या बढ़ाने के महत्वपूर्ण हॉट स्पॉट्स हो सकते हैं क्योंकि इस कचरे पर सूक्ष्मजीवाणु बैठे रहते हैं। फेंकने से पहले हमें इस कचरे को सैनेटाइजर के माध्यम से जीवाणु रहित कर देना चाहिए या पेपर बैग्स में रखना चाहिए। सबसे अच्छा तरीका तो है कपडे के मास्क को इस्तेमाल करना क्योंकि इसे धोकर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।'

बीमारी फ़ैलने के शुरुआती दौर में देखने में आया कि भारत में फरवरी 2020 में मास्क, सैनेटाइज़र्स और सुरक्षा सम्बन्धी दूसरी वस्तुओं की बिक्री तेजी से बढ़ गयी और मार्च महीने के मध्य में तो इन वस्तुओं का संकट तक पैदा हो गया। लेकिन सुरक्षा सम्बन्धी वस्तुओं के इस्तेमाल में यह बढ़ोत्तरी, भारद्वाज कहती हैं, स्वच्छता पूर्वक कचरा फेंकने सम्बन्धी दिशा निर्देशों का पालन नहीं करती है। अक्सर प्रदूषित कचरा घरेलू कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है जिसके चलते पर्यावरण और सफाई कर्मचारियों की ज़िंदगी खतरे में पड़ जाती है।

पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा 18 मार्च 202 को कोरोना वायरस से संक्रमणित मरीजों की बीमारी की पहचान, इलाज और क्वारंटीन के दौरान पैदा हुए कचरे को सम्भालने और उसका निष्पादन करने के बारे में कुछ दिशा निर्देश जारी किए गए थे। इनके अनुसार हस्पतालों में मरीजों को अलग रखने के लिए बनाये गए वार्ड्स में कचरे को अलग रखने के लिए रंग के आधार पर कचरे के डिब्बे रखे जायेंगे। COVID-19 लिखा हुआ एक डिब्बा अस्थाई स्टोर रूम में रखना चाहिए जिसे अधिकारप्राप्त कर्मचारियों द्वारा ही खाली किया जाना चाहिए। दिशा निर्देशों में यह भी कहा गया है कि बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन के लिए इन वार्डस में अलग से सफाई कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाएगी। बोर्ड द्वारा यह भी कहा गया कि इस बात का भी हिसाब रखना होगा कि अलग-थलग किये गए वार्ड्स में से कितना कचरा निकलता है।

सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की सलाह थी कि क्वारंटीन शिविरों और संभावित मरीजों की घरों में देख-रेख के दौरान बायोमेडिकल कचरा पीले थैलों में जमा किया जाए और इन थैलों को कचरे के डिब्बों में रख कर तय अधिकारीयों को दे दिया जाना चाहिए।

संबंधित खबर : लॉकडाउन ने की हवा और पानी साफ! क्या देश अब समझ पाएगा स्वस्छ पर्यावरण की कीमत

जानकारों का कहना है कि वैसे तो ज़्यादातर अस्पताल 2016 में बनाए गए बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन नियमों का पालन करते हैं, ख़ासकर COVID-19 के दौरान ज़्यादा ही कर रहे हैं। लेकिन सफाई कर्मचारियों को सबसे ज़्यादा खतरा अलग-थलग किए गए घरों से फेंके गए कचरे से है क्योंकि इन लोगों के बीच कचरे की संक्रमित करने की क्षमता को लेकर जागरूकता का अभाव है।

क ग़ैर-सरकारी संगठन टॉक्सिक्स लिंक के असोसिएट डायरेक्टर सतीश सिन्हा का कहना है- 'COVID-19 के इलाज के दौरान निकले कचरे का प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण है फिर चाहे ये कचरा मास्क हो, दस्ताने हों या फिर चिकित्सा कर्मियों द्वारा पहने जाने वाला हज़मत सूट ही क्यों ना हो। ये कचरा कूड़ा बीनने वालों, बच्चों और आस-पास रहने वाले गरीबों को संक्रमित कर सकता है।' गौरतलब है कि टॉक्सिक्स लिंक नामक ये गैर-सरकारी संगठन खाद्य सुरक्षा और खतरनाक कचरे के प्रबंधन पर काम करता है।

र्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट - इंडिया नामक एक शोध संस्थान के पर्यावरण वैज्ञानिक किशोर वानखेड़े कहते हैं कि यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि ये कचरा कूड़ा-करकट डालने के आम स्थानों पर ना फेंका जाये।

प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीइ) के इस्तेमाल सम्बन्धी सरकारी दतावेज में कहा गया है कि नॉवेल कोरोनावायरस मरीज से सीधे संपर्क के अलावा सतहों और वस्तुओं के स्पर्श से भी हस्तांतरित होता है। अक्सर छुई जाने वाली सतहों और कपड़ों को साफ़ करने में लगे सफाई कर्मचारी मध्यम दर्ज़े के खतरे से घिरे रहते हैं। इसीलिये उनके द्वारा N-95 मास्क और दस्तानों का इस्तेमाल लाजिमी हो जाता है।

भारत में अभी भी कचरे को छांटने से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों को अपनाये जाने के प्रति बहुत कम उत्साह दिखाई देता है। 2016 के ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के अनुसार कचरा पैदा कार्नर वालों से ये अपेक्षा रखी जाती है किउत्पादन स्थल में छंटाई करने के बाद ही वे कचरा कूड़ा उठाने वालों को देंगे। लेकिन ऐसे बहुत से उदहारण सामने आये हैं जिनमें घरवालों और हाउसिंग सोसायटी ने भी इन नियमों का पालन नहीं किया।

रों द्वारा निकाले जा रहे बायोमेडिकल कचरे के अलग निस्तारण के बारे में तो जागरूकता और भी कम है। इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे। जानकारों ने हमें बताया कि कचरा प्रबंधन व्यवस्थाओं को तो अब COVID-19 सम्बन्धी नियमों को भी शामिल करना होगा।

सफाई कर्मचारियों को ख़तरा

पीपीइ के इस्तेमाल पर सरकारी दस्तावेज कहता है- 'स्वास्थ्य कर्मचारियों के उपचार के दौरान वायरस से संक्रमित हो जाने की जानकारी अनेक देशों के दस्तावेजों में उपलब्ध है। COVID-19 से संक्रमित हो जाने का सबसे ज़्यादा खतरा उन लोगों को होता है जो COVID-19 से संक्रमित या आशंकित मरीजों और उनके तीमारदारों के संपर्क में आते हैं।'

'टॉक्सिक्स लिंक' के सतीश सिन्हा का सुझाव है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों की तरह सफाई कर्मचारियों को भी पीपीइ मुहैय्या कराया जाना चाहिए।

मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोशल एक्सक्लूज़न एंड इन्क्लूसिव पॉलिसीज़ में फैकेल्टी मेंबर शैलेश कुमार दारोकर का कहना है, 'कोविड -19 के मरीजों की देखभाल करने वाले मेडिकल प्रोफ़ेशनल्स, पुलिस और सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की ही तरह सफाई कर्मचारी भी बड़े खतरे से घिरे होते हैं। डॉक्टर्स, नर्स तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी तो एहतियात बरतने के उपायों के बारे में तो जानते हैं लेकिन सफाई कर्मचारियों की अनभिज्ञता उन्हें ज़्यादा खतरे में डाल देती है।'

'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के 24 मार्च के अंक में रिपोर्ट छपी थी जिसमें कहा गया था कि अभी हाल ही में चेन्नई में घरेलू कचरे के साथ फेंके गए फेस मास्क को इकट्ठा करने के दौरान सफाई कर्मचारियों ने चक्कर आने की शिकायत की थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कूड़ा बीनने वाले और कचरा उठाने वाले भी खतरे से घिरे हैं। सरकार ने 6 मार्च 2020 को संसद में कहा था कि ये उनकी आजीविका का बहुत बड़ा साधन है और उनकी वजह से पुनर्निर्माण क्षेत्र बड़ी मात्रा में कचरा उठा पाता है और इस प्रकार सम्पूर्ण कचरा प्रबंधन ईको-सिस्टम की ही कार्यकुशलता बढ़ जाती है।

मार्च 2020 को राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि 2018 के उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से भारत में प्रति दिन 608 टन बायोमेडिकल कचरा पैदा होता है जिसके 87 फीसदी या 528 टन का ट्रीटमेंट या प्रबंधन कर दिया जाता है। हालाँकि 2018 में ही सरकारी नियम ना मानने के 27,427 मामले सामने आये थे। सरकार का कहना था कि इनमें से 16,960 मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।

बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन के लिए तय नियमों के उल्लंघन सम्बन्धी जो शिकायतें सरकार को मिली थीं उनमें इस कचरे को सामान्य कचरे में मिलाना, वायरस फैलने का डर, हस्पताल के कचरे को गैर-कानूनी तरीके से कृषि भूमि में फेकना और पुरानी पद चुकी दवाओं को जलाना शामिल है।

न 2018 में बायोमेडिकल कचरे का प्रति दिन का उत्पादन 18 फीसदी बढ़ गया। 2016 में जहां ये उत्पादन 517 टन प्रति दिन था वहीं 2018 में बढ़ कर ये m608 टन प्रति दिन हो गया। वर्तमान में भारत में बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन की 200 सामान्य सुविधाएँ हैं। 28 इकाइयां और लगाई जा रही हैं।

'सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा कवच मुहैय्या हो और कचरे को जलाया जाए '

बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन से जुडी हैदराबाद स्थित कंपनी Ramky Enviro Engineers Ltd. के अधिकारियों का कहना है कि सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के नियम कड़ाई से लागू किये जा रहे हैं। यह कंपनी देश भर में 18 शहरों के 20 सुविधा केंद्रों में कचरे के निष्पादन का काम देखती है। ये लगभग तीन लाख पचास हज़ार स्वास्थ्य केंद्रों के कचरे को उठाती है।

कंपनी के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर मसूद मलिक कहते हैं-"हम सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा जारी सम्बद्ध दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन कर रहे हैं। कोविड 19 से पैदा हुआ कचरा दोहरे झोलों में भरा जाता है और तय वाहनों में उसे अलग से ले जाया जाता है। जैसे ही कचरा तयशुदा प्रबंधन इकाई पर पहुंचता है उसे तुरंत दोहरे चैंबर में डाल कर 1050 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रख दिया जाता है।"

संबंधित खबर : देश में 130 करोड़ लोगों का 9 महीने का अनाज, फिर भूख से क्यों बिलबिला रहे शहरी गरीब और मजदूर

लिक बताते हैं कि कर्मचारियों को शरीर ढंकने का गाउन, मास्क, दस्ताने, सुरक्षा के लिए काले चश्मे,जूते, बूट कवर आदि दिए गए हैं और उन्हें बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन का प्रशिक्षण भी दिया गया है। उनसे यह भी उम्मीद की जाती है कि वे सभी गाड़ियों और सतहों को संक्रमण से मुक्त करेंगे। मलिक का कहना है कि चूंकि छोटे हस्पताल और क्लीनिक बंद हैं लेकिन बायोमेडिकल कचरे का निकलना लगातार जारी है लेकिन कंपनी ज़्यादातर फेंके गए फेस मास्क, दस्तानों और टिश्यू पेपर के निष्पादन में लगी है।

गुजरात के गांधीनगर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में प्रोफ़ेसर दीपक सक्सेना कहते हैं कि ठोस घरेलू कचरा उठाने के लिए बिना सुरक्षा कवच दिए सफाई कर्मचारियों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा-"जहां तक घरेलू कचरे के निष्पादन का सवाल है तो सरकार तो केवल परामर्श ही दे सकती है, ज़िम्मेदारी दिखाना तो समुदाय का काम है। "

(चैतन्य मल्लापुर इंडिया स्पेंड में सीनियर अनलिस्ट के रूप में कार्यरत हैं, अनुवाद : पीयूष पंत )

Next Story

विविध