Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

देश में 130 करोड़ लोगों का 9 महीने का अनाज, फिर भूख से क्यों बिलबिला रहे शहरी गरीब और मजदूर

Prema Negi
15 April 2020 4:45 AM GMT
देश में 130 करोड़ लोगों का 9 महीने का अनाज, फिर भूख से क्यों बिलबिला रहे शहरी गरीब और मजदूर
x

सरकार ने पहले सोचा होता तो कोई कारण नहीं है कि लोग भूख के कारण भोजन के लिए सुबह 6:00 बजे से कतार में खड़े हो जाते और दोपहर में उन्हें आधा पेट भोजन मिलता...

अबरार खान का विश्लेषण

जनज्वार, मुंबई। पहले दिल्ली फिर गुजरात का सूरत और कल 14 अप्रैल को मुंबई में भारी मात्रा में मजदूर, गरीब, भुखमरी के शिकार लोग इकट्ठे होते हैं और उग्र हो जाते हैं इतने उग्र हो जाते हैं कि उन्हें कंट्रोल करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ता है।

ह भी तब जब देश के प्रधानमंत्री लॉक डाउन का पालन करने वालों को बधाई देते हुए कह रहे हैं कि आपका योगदान देश के लिए आपका बलिदान है। जब लॉकडाउन का पालन करने मात्र से स्वस्थ रहने की गारंटी और प्रधानमंत्री द्वारा बलिदानी की उपाधि मिल रही है, उसके बावजूद इतनी बड़ी मात्रा में यह लोग क्यों जमा हो रहे हैं। क्या यह लोग देश के दुश्मन हैं, समाज के दुश्मन हैं, अपने स्वयं के दुश्मन हैं?

ब तक कोरोना का कोई एल्टीट्यूड नहीं मिल जाता जब तक कोई वैक्सीन नहीं बन जाती,य तब तक एकमात्र उपाय सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन ही है दूसरा कोई विकल्प नहीं है। परंतु भारत में लॉक डाउन पूरी तरह से विफल रहा है, क्योंकि तमाम तरह की सख्ती के बावजूद कुछ घंटों के लिए खुलने वाली सब्जी की दुकानों पर सरकारी राशन की दुकानों पर बैंकों में लोगों की अव्यवस्थित भीड़ बड़े पैमाने पर जमा हो रही है।

सके अलावा बेरोज़गारी, बदहाली भूख के कारण भी बहुत से लोग जहां तहां जमा होने और प्रदर्शन करने को बाध्य हैं। लॉकडाउन के तुरंत बाद दिल्ली से शुरू हुआ यह सिलसिला गुजरात के सूरत से होता हुआ मुंबई के बांद्रा तक पहुंच गया है।

स्थानों पर जितने बड़े पैमाने पर लोग जमा हुए और फिर घरों को वापस लौटे यह किसी परमाणु विस्फोट से कम नहीं है, क्योंकि इस भीड़ में यदि एक व्यक्ति भी कोरोना कैरियर रहा होगा तो उसने कम से कम 50 लोगों को संक्रमित किया होगा। फिर यह 50 लोग अपने आसपास, मिलने जुलने वाले कम से कम 3 से 5 लोगों को संक्रमित करते रहेंगे। इससे लॉकडाउन का औचित्य खत्म हो जाता है, क्योंकि लॉकडाउन इसीलिए किया गया है जो जहां है वही रहे कोई किसी के संपर्क में ना आए कोई संक्रमित व्यक्ति दूसरे को संक्रमित न करे। कोई असंक्रमित व्यक्ति संक्रमित होने से बचे, परंतु अव्यवस्था के कारण ऐसा नहीं हो रहा है।

मारे देश में अव्यवस्था व्यवस्था स्तर पर है। यह अव्यवस्था उपचार की पद्धति में भी है, टेस्ट की पद्धति में भी है, अस्पतालों में है, अस्पतालों से जुड़ी सरकार की पॉलिसी में भी है। भारत में पहला कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति 20/21 जनवरी को केरल में पाया गया था। तब से अब तक लगभग 3 महीने बीत चुके हैं, मगर व्यवस्था का आलम यह है कि उपचार करने वाले डॉक्टरों के पास न तो समुचित मात्रा में पीपीई है, न ही अच्छी क्वालिटी का मास्क है, और न ही वेंटिलेटर है।

यह भी पढ़ें : कोरोना का संकट ऐसा कि यहां कम्युनिस्ट और आरएसएस वाले मिलकर चला रहे हैं रसोई

र तो और हमारे टेस्ट करने की स्पीड भी दुनिया में सबसे कम है, क्योंकि हमारे पास समुचित मात्रा में टेस्ट किट भी नहीं है। केंद्र सरकार अपनी तैयारियों को लेकर भले स्वयं ही अपनी पीठ थपथपा रही है, परंतु सच्चाई यही है उसकी तैयारियां बिल्कुल अधूरी और इस अधूरी तैयारी के कारण इलाज करने वाले स्वास्थ्य कर्मी भी संक्रमित हो रहे हैं।

भी राज्य और उनके मुख्यमंत्री केंद्र सरकार की तरफ मुंह बाए खड़े हैं, मगर उनकी मांगें पूरी नहीं हो रहीं। न ही धन के रूप में और न ही मेडिकल इक्विपमेंट के रूप में, जिसके कारण राज्य सरकारें भी कुछ ठोस कदम नहीं उठा पा रही हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने भी जीएसटी में मिलने वाला राज्यों का बड़ा हिस्सा रोक रखा है।

कोरोना से बचने का एकमात्र विकल्प है, परंतु लॉकडाउन से पहले जरूरत थी एक अच्छी प्लानिंग की, मगर हमारे देश में जिस तरह आनन-फानन में लॉकडाउन किया गया और उसके बाद दिल्ली, सूरत, मुंबई हर जगह अफरा तफरी मची, उससे साबित होता है कि केंद्र सरकार ने लॉक डाउन से पहले न तो राज्य सरकारों को विश्वास में लिया, न ही ब्यूरोक्रेट्स को कोई एक्शन प्लान दिया और न ही कोई तैयारी की।

दि तैयारी की गई होती तो जिस तरह अमित शाह को पता है कि किस बूथ पर उनके कितने कार्यकर्ता हैं, उसी तरह केंद्र सरकार को राज्य सरकारों को यह पता होता कि किस बूथ में, किस ब्लॉक में, किस विधानसभा, लोकसभा में, किस राज्य में, किस जिले में, किस तहसील में, कितने लोग गरीब हैं। कितने लोग डेली वेजेस हैं, कितने लोग बेघर हैं, कितने लोग भिखारी हैं, कितने लोग एनीमिक हैं, कितने लोगों को पौष्टिक आहार की ज़रूरत है। यह सारा आंकड़ा सरकार के पास होता।

लॉकडाउन से पहले सरकार इसके बारे में सोचती और व्यवस्था करती। परंतु देश के हालातों को देख करके यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि सरकार ने न तो इसके बारे में पहले सोचा था न अभी तक सोचा है और न ही कोई तैयारी की है।

पूरे देश में टेस्ट करने की रफ्तार सबसे तेज महाराष्ट्र की है। महाराष्ट्र में ही सबसे ज्यादा पेसेंट हैं और महाराष्ट्र में ही सबसे ज्यादा मृतकों की संख्या है। इसके बावजूद अपनी पारदर्शिता के कारण महाराष्ट्र की सरकार बधाई की पात्र है। इससे यह साबित होता है कि जितने बड़े पैमाने पर लोगों के सैंपल लिए जाते हैं, जितने बड़े पैमाने पर टेस्ट किया जाता है, उतने ही बड़े पैमाने पर संक्रमित लोगों की संख्या सामने आती है।

न संक्रमित लोगों में से जो लोग मरते हैं, वही लोग रिकॉर्ड में दर्ज किए जाते हैं परंतु पूरे देश में टेस्ट की रफ्तार बहुत ही कम है। हमारे देश की जितनी बड़ी और जितनी घनी आबादी है, उस आधार पर हमें अमेरिका से 4 गुना ज्यादा टेस्ट करने चाहिए थे, परंतु ऐसा नहीं हो रहा है।

संबंधित खबर - लॉकडाउन की मार : भूखे मजदूरों का टूटा धैर्य का बांध, बांद्रा स्टेशन पर उतरा जनसैलाब, पुलिस ने किया लाठीचार्ज

इंदौर में एक बच्ची तेज बुखार-खांसी और गले में दर्द से 2 दिन तक तड़पती रही 2 दिनों तक उसे न तो एंबुलेंस मिली न ही उपचार मिला और वह मर गई। इसी तरह न जाने कितने लोग कोरोना से पीड़ित होकर मर गए होंगे, मगर वह रिकॉर्ड बुक में नहीं आएंगे क्योंकि उनका टेस्ट नहीं हुआ था। उनकी संख्या छोड़ दीजिए जो बड़े पैमाने पर संक्रमित होने के बावजूद बिना किसी सिम्टम्स के स्वयं ही ठीक हो जाते हैं।

शायद इस मामले में सरकार की पॉलिसी कुछ ऐसी है कि कम से कम टेस्ट करो, कम से कम पेन लो, क्योंकि ज़्यादातर लोग संक्रमित होने के बावजूद स्वयं ही ठीक हो जा रहे हैं। परंतु ऐसा कब तक चलेगा यह चलन कितना कारगर है कितना घातक हो सकता है यह आने वाला समय बताएगा।

रकार ने इन परिस्थितियों के बारे में न पहले सोचा, न अब तक सोचा है और ना ही इस तरफ कुछ करती नजर आ रही है। यदि सरकार ने पहले सोचा होता तो कोई कारण नहीं है कि लोग भूख के कारण भोजन के लिए सुबह 6:00 बजे से कतार में खड़े हो जाते और दोपहर में उन्हें आधा पेट भोजन मिलता।

मारा देश कृषि प्रधान देश है हमारे देश में अनाज की कमी बिल्कुल नहीं है। भंडार में लॉकडाउन से पहले 57 मिलियन टन गेहूं चावल का स्टॉक था, लॉकडाउन के बाद पांच-सात किलो जो एक्स्ट्रा अनाज बांटने की स्कीम है, यदि उसे भी जोड़ दिया जाए तो 3 महीने में अधिकतम 2600000 टन अनाज ही खर्च हो पाएगा। यानी उसके बाद भी हमारे पास 3100000 टन अनाज बचा रहेगा।

ही बात स्टॉक में जमा अनाज की, फिलहाल रवि की फसल तैयार है आने वाले 10-15 दिनों में अनाज घरों में पहुंच जाएगा। मंडियों से होता हुआ सरकार के गोदाम में 15 मई तक छप्पन लाख टन फिर से जमा हो जाएगा। यह आंकड़े हमारे नहीं सरकार के हैं।

दि पूरे देश के भूखे, गरीब लोगों को तीनों टाइम सरकार खिलाए तब भी हमारे पास इतना बड़ा अन्न भंडार है कि 9 महीने तक कोई कमी नहीं होगी। यदि हमारी सरकार को भूखों की गरीबों की संख्या का पता होता तो भूख के कारण किसी को दिल्ली से यूपी तक पैदल नहीं भागना पड़ता, लोग मुंबई सूरत में जमा हो करके अपनी जान की परवाह किए बगैर धरना-प्रदर्शन नहीं करते।

जदूर-गरीब तोड़फोड़, आगजनी नहीं करते, क्योंकि वह भी समझ रहे हैं यह संकट वैश्विक संकट है, यह संकट प्राकृतिक संकट है और यह संकट स्वयं उनके स्वास्थ्य पर उनके जीवन पर है फिर भी वह बाध्य हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह भूखे हैं, वह भूखे इसलिए हैं क्योंकि सरकार के पास अन्न भंडार की कमी नहीं है। उसके बावजूद व्यवस्था न होने के कारण उन तक वह अनाज नहीं पहुंच रहा है, जिसके लिए सिर्फ मोदी सरकार की नीतियां और अव्यवस्था जिम्मेदार है।

Next Story

विविध