राम मंदिर मामले में मुस्लिम पक्ष ने पेश किया ठोस सबूत, 1934 में पीडब्ल्यूडी ने कराई थी मस्जिद की मरम्मत
मुस्लिम पक्ष ने कहा अयोध्या के विवादित स्थल पर रोज़ की नमाज के लिए ज़्यादा लोग नहीं आते थे, लेकिन जुमे की नमाज में होती थी भीड़, जिन दस्तावेज़ों को निर्मोही अखाड़े द्वारा इस्तेमाल किया गया है, उसके बाद भी यह कैसे कह सकते हैं कि वहां पर नमाज नहीं पढ़ी जाती थी...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के सामने अयोध्या मामले की सुनवाई में हिन्दू पक्ष की दलीलें समाप्त हो गयी हैं और मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें दे रहा है। एक ओर जहां पीठ द्वारा बार बार विवादित स्थल के मालिकाना का सबूत मांगे जाने के बावजूद हिन्दू पक्ष कोई ठोस सबूत नहीं दे सका, वहीं सुनवाई के 23वें दिन 13 सितंबर को मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में मस्जिद होने का दावा पेश करते हुए पीठ के सामने कुछ दस्तावेज रखे।
मुस्लिम पक्ष के वकील ज़फरयाब जिलानी ने पेश किए गए दस्तावेजों में पीडब्ल्यूडी की उस रिपोर्ट को भी रखा, जिसमें यह बताया गया था कि 1934 के सांप्रदायिक दंगों में मस्जिद क्षतिग्रस्त हो गई थी।
जिलानी ने कोर्ट में यह दावा किया कि विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद था। इसके लिए कोर्ट के सामने कुछ दस्तावेजों को संदर्भ के तौर पर भी पेश किया। जिलानी ने पीडब्ल्यूडी की उस रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि 1934 के सांप्रदायिक दंगों में मस्जिद के एक हिस्से को कथित रूप से क्षतिग्रस्त किया गया था और पीडब्ल्यूडी के उसकी मरम्मत करायी थी।
जिलानी ने कहा कि जन्मस्थान के लिए अदालत में याचिका दाखिल नहीं हो सकती। जन्मस्थान कोई कानूनी व्यक्ति नहीं है। नदियों, पहाड़ों, कुओं के लिए प्रार्थना की जाती है और यह एक वैदिक अभ्यास है। अगर कल को चीन मानसरोवर में जाने से मना कर देता है तो क्या कोई पूजा के अधिकार का दावा कर सकता है?
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जिलानी ने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने जब कोर्ट में याचिका दायर की थी तो उन्होंने अपनी याचिका में विवादित जमीन की पश्चिमी सीमा पर मस्जिद होने की बात कही थी। यह हिस्सा अब विवादित जमीन के भीतरी आंगन के नाम से जाना जाता है। निर्मोही अखाड़े ने 1942 के अपने मुकदमे में भी मस्जिद का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने तीन गुम्बद वाले ढांचे को मस्जिद स्वीकार किया था।
जिलानी ने बाबरी मस्जिद में 1945-46 में तरावीह की नमाज पढ़ाने वाले हाफ़िज़ के बयान का ज़िक्र किया। जिलानी ने एक गवाह का बयान पढ़ते हुए कहा कि उसने 1939 में मगरिब की नमाज़ बाबरी मस्जिद में पढ़ी थी। जिलानी मुस्लिम पक्ष के गवाहों के बयान पर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि 1934 के बाद भी विवादित स्थल पर नमाज पढ़ी गई। हिन्दू पक्ष की तरफ से उच्चतम न्यायालय में जिरह के दौरान यह दलील दी गई कि 1934 के बाद विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी गई थी।
जिलानी ने दस्तावेजों के जरिए कोर्ट में यह साबित करने की कोशिश की कि 1934 से 1949 के बीच बाबरी मस्जिद में नियमित नमाज़ होती थी। जिलानी ने कहा कि रोज़ की नमाज के लिए ज़्यादा लोग नहीं आते थे, लेकिन जुमे की नमाज में भीड़ होती थी। जिलानी ने कहा कि जिन दस्तावेज़ों को निर्मोही अखाड़े द्वारा इस्तेमाल किया गया है उसके बाद भी यह कैसे कह सकते हैं कि वहां पर नमाज नहीं पढ़ी जाती थी। जिलानी ने मोहम्मद हाशिम के बयान का हवाला देते हुए कहा कि हाशिम ने अपने बयान में कहा था कि उन्होंने 22 दिसबंर 1949 को बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ी थी।
उन्होंने हाजी महबूब के बयान का हवाला देते हुए कहा कि 22 नवंबर 1949 को हाजी महबूब ने बाबरी मस्जिद में नमाज अदा की थी। जिलानी ने एक गवाह के बारे में बताया कि 1954 में बाबरी मस्जिद में नमाज पढ़ने की कोशिश करने पर उस व्यक्ति को जेल हो गई थी।
लंच के बाद मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत की। राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े ने सिर्फ प्रभार और प्रबंधन के लिए अंदर के अहाते के अधिकार के लिए याचिका दाखिल की। पहले हिन्दू बाहर के अहाते में पूजा करते थे, लेकिन 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति को गलत तरीके से मस्जिद के अंदर शिफ्ट किया गया। वहीं निर्मोही अखाड़े का कहना है कि वह शेबत है और प्रबंधन के अधिकार से वंचित है। अगर कोई नया मंदिर बन जाता है तो निर्मोही अखाड़ा उसका शेबत रहेगा।
धवन ने कहा कि 1885 में महंत रघुबर दास के मुकदमे को पहले निर्मोही अखाड़े ने नकार दिया था, लेकिन बाद में निर्मोही अखड़ा का महंत मान लिया था। पहले निर्मोही अखाड़े ने जन्मस्थान शब्द को नकार दिया था, लेकिन बाद में इसको ज्यूडिशियल इंट्री में माना। अयोध्या रामजन्मभूमि मामले की सुनवाई 16 सितंबर को भी जारी रहेगी। मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन अपना पक्ष रखेंगे।