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चीफ जस्टिस भी हैरान कि राम मंदिर मामले में कोर्ट से फैसला कैसे सुना रहे मंत्री ?

Prema Negi
13 Sept 2019 10:31 AM IST
चीफ जस्टिस भी हैरान कि राम मंदिर मामले में कोर्ट से फैसला कैसे सुना रहे मंत्री ?
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वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा इस मामले में वकील बनने के कारण मुझे फेसबुक पर मिल रही है धमकी और हमारे क्लर्क के साथ भी अदालत परिसर में की गई थी मारपीट, वहीं यूपी के एक मंत्री ने भी किया दावा कि अयोध्या हिंदुओं की है, मंदिर भी उनका और उच्चतम न्यायालय भी उन्हीं का...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई के 22वें दिन 12 सितंबर को मुस्लिम पक्षकारों के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने एक बार फिर धमकी का मामला उठाया और संविधान पीठ को बताया कि उनके क्लर्क को कोर्ट के बाहर धमकी दी जा रही है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री के बयानों की ओर भी कोर्ट का ध्यान दिलाया।

राजीव धवन ने बताया कि मंत्री ने दावा किया है कि अयोध्या हिंदुओं की है, मंदिर भी उनका है और उच्चतम न्यायालय भी उनका ही है। उन्होंने कहा ऐसे गैर-अनुकूल माहौल में बहस करना मुश्किल हो गया है। मैं अवमानना के बाद अवमानना दायर नहीं कर सकता। हमने पहले ही 88 साल के व्यक्ति के खिलाफ अवमानना दायर की है।

स पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हम कोर्ट के बाहर ऐसे बयानों की निंदा करते हैं। देश में ये क्या हो रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम इस तरह के बयानों को रद्द करते हैं। कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष अपनी दलीलें कोर्ट में रखने के लिए स्वतंत्र हैं। चीफ जस्टिस ने धवन से पूछा कि क्या वो सुरक्षा चाहते हैं। धवन ने इनकार करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय का भरोसा दिलाना ही काफी है।

ससे पहले तीन सितंबर को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सुनवाई करते हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन द्वारा दायर अवमानना याचिका पर 88 वर्षीय प्रोफेसर एन शनमुगम को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबडे,जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नज़ीर की संविधान पीठ ने अवमानना नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब मांगा था। यह याचिका वरिष्ठ वकील धवन ने दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्हें अयोध्या-बाबरी मस्जिद विवाद में मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करने के लिए धमकी दी गई थी।

सुनवाई शुरू होते ही 12 सितंबर को वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि इस मामले में वकील बनने के कारण उन्हें फेसबुक पर धमकी मिल रही है और उनके क्लर्क के साथ भी अदालत परिसर में मारपीट की गई थी। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि इस घटना की निंदा की जानी चाहिए और ऐसे कृत्य नहीं होने चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि दोनों पक्ष बिना किसी डर के अपनी दलीलें अदालत के समक्ष रखने के लिए स्वतंत्र हैं।

ससे बाद राजीव धवन ने मुख्य मामले पर बहस की शुरुआत की। राजीव धवन ने कहा कि लिमिटेशन पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि निर्मोही अखाड़े की लिमिटेशन छह साल होनी चाहिए थी। छह साल की अवधि से बचने के लिए निर्मोही अखाड़ा शेवियेट, बिलांगिंग और कब्जे की दलील दे रहा है, जो कि सही नहीं है, क्योंकि निर्मोही सिर्फ सेवादार है, जमीन के मालिक नहीं हैं।

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स्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि निर्मोही अखाड़े द्वारा प्रस्तुत वाद के चलाए जाने की योग्यता के बारे में प्रश्न उठाया जा सकता है। धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा किस बात को चुनौती दे रहे थे, वह क्या चाहते थे, लेकिन इस मसले को उठाना मेरे लिए सही नहीं होगा। निर्मोही के मामले में साक्ष्य और गवाही पर्याप्त नहीं है। आप अवैधता के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर सकते और उससे लाभ देने की कोशिश नहीं कर सकते, भले ही आप अवैधता पैदा न करें, फिर भी आप उस पर विश्वास नहीं कर सकते।

राजीव धवन ने कहा कि ट्रस्टी और सेवादार में अंतर होता है। शेवियत मालिक नहीं होता है। जिस दिन से कोर्ट का ऑर्डर आया, यानी 5 जनवरी 1950 को, उस दिन से कंटिनिवस रांग खत्म हो जाता है। निर्मोही अखाड़े ने अगर समय से पहले, यानी छह साल पहले अखाड़े ने रिसीवर नियुक्त करने को चुनौती दी होती तो ठीक था, लेकिन निर्मोही अखाड़े ने छह साल की तय समय सीमा के बाद चुनौती दी, इसलिए निर्मोही अखाड़े का दावा नहीं बनता। इनकी याचिका खारिज की जानी चाहिए।

वन ने कहा कि एक ट्रस्ट या ट्रस्टी के विपरीत शेबेट के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। वर्ष 1934 के बाद से मुस्लिमों ने वहां पर प्रवेश नहीं किया, लेकिन जब आप उन्हें प्रवेश नहीं करने देंगे तो वे इबादत कैसे करेंगे? निर्मोही अखाड़े का जो शेवियेट, यानी सेवादार का दावा है, उसको हम सपोर्ट करते हैं, लेकिन इनका टाइटल राइट नहीं बनता। अगर निर्मोही अखाड़े को सेवादार का अधिकार है, मान भी लिया जाए कि सेवादार का अधिकार पीढ़ियों तक चलता है, तो फिर प्रॉपर्टी का मालिक कौन है, क्या नेक्स्ट फ्रेड को माना जाएगा, फिर निर्मोही अखाड़े को सेवादार से हटाने का डर कैसा, कौन मालिक या ट्रस्टी है।

ज 13 सितंबर को सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से जफरयाब जिलानी इस मसले पर बहस करेंगे। उसके बाद फिर से राजीव धवन वक्फ बोर्ड की तरफ से बहस जारी रखेंगे।

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