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विमर्श

नीरा राडिया केस वाले विवादित आईएएस सुनील अरोड़ा को प्रधानमंत्री मोदी ने बनाया मुख्य चुनाव आयुक्त

Prema Negi
29 Nov 2018 11:04 AM GMT
नीरा राडिया केस वाले विवादित आईएएस सुनील अरोड़ा को प्रधानमंत्री मोदी ने बनाया मुख्य चुनाव आयुक्त
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बातचीत के टेप नीरा राडिया का संबंध सुनील अरोड़ा से भी साबित करते हैं। अरोड़ा राजस्थान में तैनात आईएएस अफसर थे, जिन्होंने राडिया को अलग-अलग मंत्रालयों में तैनात अपने दोस्तों तक पहुंचाया...

स्वतंत्र टिप्पणीकार गिरीश मालवीय का विश्लेषण

तीन राज्यों के चुनाव की गहमागहमी के बीच मोदीजी ने चुपके से सुनील अरोड़ा की नियुक्ति मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर कर दी है और वही 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की जिम्‍मेदारी संभालने वाले हैं। 2019 की तैयारी में मोदीजी कोई कोर—कसर छोड़ नहीं रहे हैं। उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर ऐसे दागी व्यक्ति की नियुक्ति की है जो नीरा राडिया वाले केस में शामिल रहे हैं।

राजस्थान कैडर के आइएएस अधिकारी सुनील अरोड़ा एयर इंडिया के सीएमडी रह चुके हैं ओर राडिया टेप में सुनील अरोड़ा के साथ हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट के सामने आने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने एविएशन के क्षेत्र में लॉबिंग एक्टिविटी की जाँच करने को कहा था।

वैसे नीरा राडिया का नाम सुनते ही आज के नामचीन बड़े पत्रकारों की कलम की स्याही भी सूख जाया करती है, इसलिए इस मुद्दे पर कोई कुछ लिखने की जहमत नही उठा रहा है।

लगता नहीं है कि रवीश कुमार इस मुद्दे को लेकर प्राइम टाइम करेंगे और न ही पुण्य प्रसुन वाजपेयी किसी टीवी शो में दोनों हाथों की हथेलियों को रगड़ते हुए अपने 2010 में लिखे हुए ब्लॉग को याद करेंगे जिसमें वह लिखते हैं...'नीरा राडिया के फोन टैप से इंडियन एयरलाइंस के पूर्व सीएमडी सुनील अरोड़ा के जरिये सीबीआई बीजेपी को भी घेरने की तैयारी में है।

क्योंकि एयरलाइंस को लेकर जो भी गफलत सुनील अरोड़ा ने की वह तो राडिया फोन टैपिंग में सामने आया ही है। आखिर कैसे सुनील अरोड़ा नीरा राडिया की पहुंच का इस्तेमाल कर एंडियन एयरलाइन्स के मैनेजिंग डायरेक्टर बनना चाहते थे। लेकिन सीबीआई की नजर सुनील अरोड़ा के जरिये राजस्थान में करोड़ों की जमीन को कुछ खास लोगों को दिलाने में कितनी भूमिका थी, इस पर है। क्योंकि सुनील अरोड़ा राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री के निजी सचिव थे और तब सत्ता बीजेपी के पास थी।

बतौर निजी सचिव बिना सीएम के हरी झंडी के जमीनों को कौडियों के मोल खरीद कर बांटने की कोई सोच भी नही सकता है। उसी दौर में राजस्थान की कई जमीनें कुछ खास नौकरशाहों को नीरा राडिया के जरिये मुफ्त या कौडियों के मोल बांटी गयी...यह भी टेलीफोन टैपिंग में सामने आ गय़ी है।'

आलोक तोमर अब नहीं रहे, पर अपने अंतिम दिनों तक उन्होंने जिस खांटी पत्रकारिता का परिचय दिया था। आज वह दुर्लभ है। वो बताते हैं नागरिक उड्डयन मंत्री के तौर पर अनंत कुमार से नीरा राडिया की गहरी दोस्ती थी। इसी अंतरंगता का सहारा लेकर नीरा राडिया की सिर्फ एक लाख रुपए की लागत से एक पूरी एयर लाइन चलाने का लाइसेंस उन्हें मिलने वाला था। उस वक्त सुनील अरोड़ा एएसी के निदेशक थे, जो इंडियन एयरलाइंस के प्रबंध निदेशक और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी थे।

आलोक तोमर लिखते हैं कि सुनील अरोड़ा ने अनंत कुमार के निर्देश पर राडिया की हास्यास्पद फाइल को रद्दी की टोकरी में डालने की बजाय सिर्फ कुछ मासूम से स्पष्टीकरण मांगे। बाद में अरोड़ा ने कहा कि उदारीकरण का दौर था और ऐसे में प्रतियोगिता होती हैं और कई कंपनियां आती हैं, मगर उनकी पात्रता पर मौजूद नियमों और निर्देशों के हिसाब से विचार किया जाता है।

नीरा राडिया ओर सुनील अरोड़ा के रिश्तों पर प्रसिद्ध पत्रकार शांतनु गुहा रे ने भी बहुत कुछ लिखा है, जिसे आज पढ़ा जाना चाहिए। अपने एक पुराने लेख वो कहते हैं 'बातचीत के टेप राडिया का संबंध सुनील अरोड़ा से भी साबित करते हैं। अरोड़ा राजस्थान में तैनात आईएएस अफसर हैं, जिन्होंने राडिया को अलग-अलग मंत्रालयों में तैनात अपने दोस्तों तक पहुंचाया।

इन टेपों में रिकॉर्ड बातचीत उन नोट्स का हिस्सा है जो सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे हैं। ऐसा लगता है कि नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल के खिलाफ मोर्चा खोलकर इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर की अपनी कुर्सी गंवाने वाले अरोड़ा ने राडिया के लिए भारत में कई दरवाजे खोले। यह पता चला है कि इंडियन एयरलाइंस के मुखिया के तौर पर अरोड़ा के कार्यकाल के दौरान सात विमान उन कंपनियों से लीज पर लिए गए थे, जिनके एजेंट के तौर पर राडिया की कंपनियां काम कर रही थीं। वरिष्ठ आयकर अधिकारी अक्षत जैन कहते हैं, 'हमारे पास सबूत हैं कि राडिया की कंपनी ने अरोड़ा के मेरठ स्थित भाई को काफी पैसा दिया है।'

ये लेख और इस तेवर की पत्रकारिता ज्यादा पुरानी नहीं है। यह आज से सात आठ साल पुरानी ही बाते हैं, लेकिन अब इन बातों को कोई याद नहीं रखना चाहता। आज का दौर वो दौर है जब जज लोया की संदिग्ध मृत्यु पर सुनवाई करने से बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन तीन जज इनकार कर घर बैठना पसंद करते हैं, तो सिर्फ पत्रकारों को ही दोष क्यों दिया जाए?

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