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विमर्श

लॉकडाउन का महिलाओं पर ज्यादा असर, करोड़ों महिलाएं हो गयीं बेरोजगार

Janjwar Desk
2 July 2020 9:21 AM GMT
लॉकडाउन का महिलाओं पर ज्यादा असर, करोड़ों महिलाएं हो गयीं बेरोजगार
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हमारे देश में लैंगिक असमानता की जड़ें पहले से ही बहुत गहरी हैं, यहां वेतन वाले कार्यों में यानि रोजगार में केवल 25 प्रतिशत महिला आबादी की ही हिस्सेदारी है, जो दुनिया में सबसे कम है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

भारत को छोड़कर दुनियाभर में कोविड 19 से होने वाली मौतों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है। पर, भारत में यह आंकड़ा बिलकुल अलग तस्वीर प्रस्तुत करता है। अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों ने भारत में 20 मई तक कोविड 19 से होने वाली मौतों का विस्तार से अध्ययन किया, इस समय तक कुल संक्रमितों की तुलना में मृत्यु दर 3.1 थी। लेकिन संक्रमित महिलाओं में मृत्यु दर 3.2 थी और पुरुषों में यह दर 2.9 थी। 5 वर्ष से लेकर 19 वर्ष के आयु वर्ग में जितनी भी मौतें कोविड 19 के कारण दर्ज की गयीं हैं, सभी महिलायें या लड़कियां थीं।

40 वर्ष से 49 वर्ष के आयु वर्ग में महिलाओं की मृत्यु दर 3.2 प्रतिशत है, जबकि पुरुषों में यह दर महज 2.1 प्रतिशत है। इस अध्ययन के प्रमुख हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एस वी सुब्रमनियन के अनुसार इसका पूरी दुनिया के विपरीत भारत में महिलाओं की अधिक मृत्यु दर के कारणों का ठीक पता नहीं है, पर ये आंकड़ें चौकाने वाले और अनोखे जरूर हैं।

भारत में महिलाओं पर कोविड 19 का सीधा असर तो घातक है ही, इसके कारण लॉकडाउन का असर भी बहुत प्रभावी हैं। वैसे तो दुनियाभर में लॉकडाउन के कारण लैंगिक असमानता और अधिक गहरी हो रही है लेकिन भारत में इसका बहुत अधिक असर पड़ा है। हमारे देश में लैंगिक असमानता की जड़ें पहले से ही बहुत गहरी हैं। यहाँ वेतन वाले कार्यों में यानि रोजगार में केवल 25 प्रतिशत महिला आबादी की ही हिस्सेदारी है, जो दुनिया में सबसे कम है।

एक ही रोजगार में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा औसतन 35 प्रतिशत कम वेतन मिलता है, जबकि दुनिया का औसत महज 16 प्रतिशत है। भारत में कुल आबादी में से लगभग 49 प्रतिशत महिलायें हैं, लेकिन पूरी अर्थव्यवस्था में इनका योगदान महज 18 प्रतिशत है। अर्थव्यवस्था में योगदान का यह आंकड़ा दुनिया के औसत का आधा भी नहीं है।

कोविड 19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने इस असमानता को और विकराल कर दिया है। इस दौर में घरों में काम करने वाली, ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली, सेक्स-वर्कर्स और इसी तरह के दूसरे असंगठित पेशे में, जहां शिक्षा के बिना भी काम किया जा सकता था, काम करने वाली करोड़ों महिलायें बेरोजगार हो गयीं।

अब नया काम खोजना इनके लिए पुरुषों की अपेक्षा अधिक कठिन है, क्योंकि इनके साथ सुरक्षा का भी सवाल रहता है। लाखों महिलायें कठिन यात्रा कर अपने परिवार के साथ अपने पैतृक गाँव चली गईं, जहां उनके लिए रोजगार के अवसर नहीं हैं और शहर की तरफ वापसी अनिश्चित है।

ऑस्ट्रेलिया एंड न्यूज़ीलैण्ड बैंकिंग ग्रुप में कार्यरत अर्थशास्त्री संजय माथुर के अनुसार लॉकडाउन का असर तो अर्थव्यवस्था के हरेक पहलू पर पड़ेगा, लेकिन महिलाओं और बच्चों की स्थित पर असर आने वाले कई वर्षों तक रहेगा। ऑक्सफैम इंडिया के आकलन के अनुसार इस महामारी के दौर में केवल महिलाओं के रोजगार के अवसर जाने से अर्थव्यवस्था को 216 अरब डॉलर का नुकसान होगा, जो पूरे जीडीपी का लगभग 8 प्रतिशत है।

हमारे देश की स्थिति लैंगिक असमानता के सन्दर्भ में ब्बहुर खराब है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2020 के अनुसार कुल 153 देशों में भारत का स्थान 112वां है। यहां महिलाओं की स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधाएं पुरुषों की अपेक्षाएं कम हैं। लॉकडाउन के दौरान वर्क फ्रॉम होम ने इस संकट को और बढ़ाया है।

पुरुष इस दौरान केवल कार्यालय का काम करते रहे, जबकि महिलायें घर के काम, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल, चूल्हा-चौका के साथ काम करती रहीं। अधिकतर घरों में एक ही कम्पूटर रहता है, जिसपर पुरुषों का अघोषित कब्जा रहता है। ऑन-लाइन क्लासेस के लिए भी बच्चे अपनी माँ का ही स्मार्टफोन उपयोग में लाते रहे। ऑन-लाइन क्लासेस में भी भाइयों को प्राथमिकता मिलती है, इसलिए बालिकाएं इसमें भी पिछड़ जाती हैं। देश में केवल 29 प्रतिशत महिलाओं के पास निजी स्मार्टफोन हैं।

लॉकडाउन के दौरान देश में घरेलु हिंसा के मामलों में दुगुनी बृद्धि दर्ज की गई, विशेषज्ञों के अनुसार हिंसा का महिलाओं और बच्चों पर दीर्घकालीन असर पड़ता है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद के अर्थशास्त्री तरुण जैन के अनुसार हिंसा से बच्चों पर और महिलाओं पर मानसिक और मनोवैज्ञानिक आघात लगता है, जिसका असर जीवन पर्यंत रहता है।

अशोका यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अश्विनी देशपांडे का आकलन है कि अप्रैल के महीने में महिलाओं की रोजगार दर 61 प्रतिशत थी, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 71 प्रतिशत था। लॉकडाउन के बाद भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को रोजगार मिलने की संभावना लगभग 24 प्रतिशत कम रहेगी।

स्वास्थ्य सेवाओं में महिलायें बड़ी संख्या में कार्यरत हैं और कोविड 19 से जंग का अहम हिस्सा हैं लेकिन इसके लिए सुरक्षा उपकरणों के बंटवारे में भी महिलाकर्मी उपेक्षित रहती हैं और इस कारण बड़ी संख्या में नर्सों और दूसरी महिला कर्मियों के मृत्यु कोविड 19 के कारण ही दर्ज की गई है। महिला स्वास्थ्य कर्मियों की दुर्दशा का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अधिकतर स्वास्थ्य केन्द्रों पर उन्हें अपने रोजगार या फिर कोविड 19 में से एक चुनना पड़ता है।

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