कोरोना के सन्नाटे को चीरतीं ईद की कुछ पुरानी मीठी यादें
डॉ. मोहम्मद आरिफ की टिप्पणी
जनज्वार। 2020 और 2021 की ईद ऐसे गुजर गई जैसे पूरा आलम मरघट में तब्दील हो गया हो। आखिर हो क्यों न, सब के जान पर जो बन आई है। कुछ तो हुक़ूमत के डंडे की आवाज़ और कुछ जान की परवाह ने ऐसा असर दिखाया कि लोग घरों में ही जश्न मनाते रहे।
आइये आपको ले चलता हूँ गांव की ओर, जहां की खुशबू में त्योहारों का रंग भाईचारे की मिलावट में गाढ़ा हो जाता है और ऐसा लगता है कि हरेक मस्ती के आलम में है, चाहे ईद हो या होली।
कोरोना संकट से पहले की ईद का एक यादगार तजुर्बा पेशे खिदमत है- दो दिन ईद के अवसर पर अपने गांव रहा। अक्सर ईद बकरीद, होली, दीवाली, मुहर्रम आदि त्योहारों पर गांव चला जाता हूँ। मेरे तमाम दोस्तों विशेषकर डॉ. आनंद तिवारी को शिकायत रहती है कि अभी तक या तो मै शहरवासी ही नहीं हुआ या बुलाना या खिलाना नहीं चाहता।
चलो आज कुछ बातें इस बाबत कर ली जाये, मेरा गांव प्रताप पुर कमैचा, सुल्तानपुर जिला में है। अपनी ईद की नमाज पढ़ने से लेकर रात सोने तक एक दिन की दिनचर्या को हू-ब-हू बयां करता हूँ - सुबह- सुबह घर में नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद में जल्द पहुँचने को लेकर अफरातफरी और तैयारी का हंगामेदार माहौल और उसमें पूरा घर व्यस्त। ऐसे में चाय का सवाल बड़ा कठिन था। उस पर मस्जिद में 7 बजे तक पहुंचना किसी जंग के ऐलान जैसा ही था।
नमाज़ के लिए घर से मस्जिद को कूच किया तो रास्ते में हरीलाल यादव, जिन्हें लोग काका कहते हैं, मिल गए और बोले डॉ. साहेब चाय तो पिए नहीं होंगे चलिए पहले चाय पीजिये, साथ के लोग मस्जिद को बढ़ चले और मैं काका के साथ चाय की ओर। एक कप, दो कप और फिर तीसरा कप फिर मैं चिल्लाया क्या इरादा है काका.. 6:55 हो गया। बोले चलिए चलते हैं और दोनों लोग मस्जिद की ओर बढ़ चले। रास्ते में तमाम लोगों की आवाज़ डॉ. साहेब कहाँ जा रहे हैं, अकेले डर लग रहा है क्या।
कई ने कहा कि बिना टोपी के आप दोनों ही हैं, मैंने कहा कि रुमाल है लगा लूंगा। रास्ते के ये तमाम लोग हिंदुस्तान के तमाम वर्गों/जातियों के नुमाइंदे थे जो ईदगाह के रास्ते मे दोनों तरफ सड़क की पटरी पर स्थित अपनी अपनी दुकानों की नुमाइंदगी कर रहे थे। मस्जिद के गेट पर हमें अकेला छोड़कर काका वापस आ गए। तमाम मिठास भरे रिश्तों के बावजूद मजहब की ऐसी मजबूत दीवार अभी भी मौजूद है जो हमराही होने के बावजूद मंज़िल तक साथ नहीं जाती और साथी को अकेला ही रास्ता तय करना होता है।
नमाज़ के बाद गले मिलने का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा था, खासतौर पर उन बच्चों के साथ जो अपने कैरियर के शुरूआती दौर में हैं और कॉलेज ,यूनिवर्सिटी की पढाई कर रहे हैं। इन बच्चों का प्यार और सम्मान देखकर आँखे नम हुए बिना नहीं रह सकीं। ऐन केन प्रकारेण मस्जिद से निकला तो बाहर स्वर्गीय अवधेश कुमार द्विवेदी के सुपुत्र राजीव द्विवेदी इंतज़ार करते मिले और कहा कि भैया सब लोग आपसे गले मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं, मैं उनके साथ बढ़ चला और नमाज़ी अपने अपने घर की ओर ।
आजकल गांव कई खेमों में बंट गया है जिसने त्यौहारों को भी अपने घेरे में ले लिया है। वहां से छूटा तो लालजी दूबे इंतज़ार करते मिले, उनसे निपटा तो पता चला की सूर्य नारायण मिश्र, पूर्व प्रधान जो काफी बीमार हैं, 5 किलोमीटर से चलकर मिलने आये हैं, उनके साथ चाय और फिर पान का रसास्वादन। घर से नाश्ता करने का बार-बार फोन आ रहा है पर क्या मज़ाल कि बंधु लोग से छुटकारा मिल जाये। यही तो ताना-बाना है जो भारत को विश्व का सिरमौर बनाता है।
खैर आगे बढ़ा तो स्वर्गीय सुभाष त्रिपाठी जी के पुत्र की पकड़ में आ गया और उन्होंने कहा कि अल्लाहाबाद से मिलने के लिए ही आया हूं। इतने में दोपहर के दो बज गए। घर चलने का इरादा कर ही रहा था कि निषाद संघ के अध्यक्ष महोदय ने घेर लिया और बोले डॉ. साहब हम तो सुबह से इंतज़ार कर रहे हैं, अब मेरी क्या मज़ाल जो आगे बढूँ। चलो भाई प्यार का ये निराला अंदाज़ भी देख लेते हैं जब मर्यादा पुरूषोत्तम इनकी मजबूत गिरफ्त से नहीं छूटे तो मेरी क्या मजाल। छूटते-छूटाते आगे बढ़ा तो घात लगाये बैठे राकेश सोनी चिल्लाये, अरे साहब ऐसा कभी हुआ है कि बिना कुछ खाये आप आगे बढ़ पाएंगे। चलो इनसे भी निपट लेते हैं, अब शाम के 4 बज रहे थे। इतने में पान लिए इंद्रपाल दूबे खड़े मिले और उलाहना भरे अल्फ़ाज़ में बोले की अब आप हमारा पान खाये बगैर ईद मनाएंगे।
चलो अब घर का रुख करता हूँ, 10 क़दम ही चला था की शिव कुमार बरनवाल का बुलन्द स्वर सुनाई पड़ा अरे भैया बरसों से हमारी गरी (नारियल) खाये बगैर ईद मनाई है क्या आपने, सुबह से इंतज़ार है आपका।मेरी क्या मजाल जो उनके आदेश का पालन न करता। रुक गया शाम ढलने को आ गयी और घर की मन्ज़िल का पता नहीं। पलटा ही था कि पाण्डे जी मिल गए और बोले कि दुर्गा पूजा आ रहा है 1001 लेना है आपसे। मैंने कहा कुछ कम में निपटाइये तो बोले चलो डॉ.साहेब 1500 में बात पक्की कर ली जाये। पूरे रेलवे मजिस्ट्रेट नज़र आ रहे थे।
तमाम मुस्लिम लोग अब अपने-अपने घरों से ईद का इंतज़ाम कर वापस आ गए थे, अभी कारवां बढ़ ही रहा था तभी एकाएक याद आया कि श्री चंद हलवाई के भाइयों ने मेरे लिए लड्डू बना कर रखा था, पिछले दिनों बातों बातों में मैंने कह दिया था की अब अच्छे लड्डू नही मिलते ये बात ईद तक उन्होंने याद रखा सो इस प्रेम की सौगात को बिना खाये कैसे आगे बढ़ सकता हूँ। चंद कदम ही बढ़ा था स्वर्गीय शंभू भाई के बच्चों ने रास्ता रोक लिया और अपनी दुकान में ले चले।
इतने में हाजी लल्लन साहेब का फोन आ गया कि पूर्व मंत्री जी घर पर इंतज़ार कर रहे है, जल्द आइये। मैंने कहा कि फोन पर बात करा दीजिये, अभी आ नही सकता। फोन पर बात हुई, भला मैं उन लोगों को कैसे छोड़ कर जा सकता था जिनके सानिध्य में कभी भूख प्यास का अहसास नहीं होता और सदियों से प्रेम- मोहब्बत का इतिहास समेटे हुए हैं। यही तो हमारी विरासत है, इसे ही संजों कर रखना है, आज यही खतरे में है।
अब शाम गहरी हो चुकी है। मेरे भाई का फोन आया कि घर पर तमाम लोग घंटों से बैठे हुए है। इतने में पता चला कि दलित नेता जयकरण दल-बल के साथ घर पर पिल गए हैं। वे हमारे कक्षा पांच तक के सीनियर साथी हैं। उनका आदेश मिला और घर की और चल पड़ा, लोग आवाज़ देते रहे और मैं झूठा वादा करके यानी सुबह आता हूँ, कहता हुआ आगे बढ़ चला। रास्ते में रजवाड़े रामपुर के पूर्व जमींदार के वारिस रितेश रजवाड़ा का फरमान मिला की घर पहुँच रहा हूँ।
फिर वो आये और ये मिलन का सिलसिला रात 12 बजे तक चलता रहा, इतने में मेरी भतीजी की आवाज़ आई कि अब्बा आप जब तक गांव रहते हैं, खाना-पीना तो करते नहीं और पूरा घर भूखा रहता है, लगता है आज भी पूरा घर दिन के साथ रात का भी रोज़ा है। अब्बा कहीं ऐसा तो नहीं कि ईदी देने के डर से घर नहीं आ रहे है। (मुझे मेरे सभी भाइयों और भतीजों की औलादें अब्बा कहती है)।
दोस्तों अब आप खुद फैसला करें, मैं कहाँ त्यौहार मनाऊं। आज रिश्तों में कितनी खटास बढ़ती जा रही है। समाज जाति-धर्म-संप्रदाय-भाषा-नस्ल क्षेत्र आदि में बंट रहा है, नफरत का बोलबाला है। ऐसे में ये प्यार के लम्हात मैं कैसे छोड़ दूँ। यही तो मेरी थाती है और यही सच मायने में हिन्दुस्तान है जिसकी गूंज पूरी दुनियां में सुनाई पड़ती है। आज कुछ लोग इसे नष्ट करना चाहते हैं, हमारी आपकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखा जाये।