रिक्शाचालक से प्रसिद्ध दलित लेखक बने मनोरंजन व्यापारी TMC के टिकट पर लड़ रहे चुनाव
मनोरंजन व्यापारी बंगला साहित्य के जाने-माने रचनाकार हैं। उनका परिचय यह है कि वे दलित समाज से हैं, उन्होंने रिक्शा चलाया है, बतौर कुक काम किया है, जेल भी होकर आए हैं.....
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
टीएमसी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए 291 उम्मीदवारों की घोषणा की। ज्यादातर 40 वर्ष से कम उम्र के कम से कम 12 हस्तियों ने सूची में स्थान पाया है। इन हस्तियों में फिल्मी कलाकार जून मालिया, सौयोनी घोष, सायंतिका बनर्जी और कंचन मुलिक; गायक अदिति मुंशी; निर्देशक राज चक्रवर्ती; और क्रिकेटर मनोज तिवारी शामिल हैं। उनमें से कुछ ने कुछ दिन पहले टीएमसी ज्वाइन की थी। टीएमसी ने दलित लेखक मनोरंजन व्यापारी और मोहन बागान के पूर्व कप्तान बिदेश बोस को भी टिकट दिया है।
विधायक का चुनाव लड़ रहे प्रसिद्ध दलित लेखक मनोरंजन व्यापारी ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लंबा संघर्ष किया है। उनके जीवन की कथा किसी फिल्म की तरह विविध अनुभवों से भरपूर है। 16 साल का एक किशोर घर से भाग जाता है। उसे काम की तलाश थी। साल 1967 था, वह भाग कर सिलीगुड़ी आता है। तब बंगाल में नक्सल आंदोलन अपने चरम पर था। खैर, थक-हार कर वह किशोर फिर घर पहुंच गया। लेकिन इस बीच उसने कई नई बातें सीखीं। इनमें से एक बात यह भी थी कि किस्से कैसे गढ़े जाएं।
उसने एक किस्सा गढ़ा- अपने दोस्तों को बताया कि वह नक्सली आंदोलन के संचालक कानू सान्याल से मिलकर आया है। उसकी बातों से प्रभावित होकर एक दोस्त ने दक्षिण कोलकाता में सीपीआई (एम) के होर्डिंग पर 'एल' शब्द और जोड़ दिया। एल से मतलब लेनिनवादी से था। इसका पता जब सीपीआई (एम) के नेताओं को लगा तो उन्होंने उस किशोर को लैम्पपोस्ट (बिजली का खंभा) से बांध दिया और जमकर पिटाई की। संभव है यह एक लेखक के जन्म की शुरुआत थी, हालांकि उस किशोर के जीवन में अभी और भी बहुत कुछ घटना बाकी था।
मनोरंजन व्यापारी बंगला साहित्य के जाने-माने रचनाकार हैं। उनका परिचय यह है कि वे दलित समाज से हैं, उन्होंने रिक्शा चलाया है, बतौर कुक काम किया है, जेल भी होकर आए हैं और इससे पहले एक गुंडा भी रह चुके हैं। व्यापारी साफ मन से जाहिर करते हैं, बंगाल में 1960 से 1970 के बीच ऐसे लोग सक्रिय थे, जिनका काम छोटे-मोटे अपराध करना था, मुझे भी इसका चाव चढ़ा था और मैं भी उनकी लाइन में आ गया। व्यापारी की 10 किताबें और 100 निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें विभिन्न पुरस्कार और अवॉर्ड हासिल हो चुके हैं, जिनमें से एक पश्चिम बंगाल बांग्ला अकादमी अवॉर्ड भी शामिल है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से प्रकाशित एक पत्रिका के सेमिनार में वे हिस्सा ले चुके हैं। वे दक्षिण कोलकाता के मुकंदपुर में एक छोटे से मकान में रहते हैं।
व्यापारी बताते हैं- 'मैं 22 साल का था और मुझे जेल हो गई थी, पढ़ना क्या होता है, इसकी समझ नहीं थी। जेल के बारे में कहते हैं कि उन्हें अपराधियों को सुधारने के लिए बनाया जाता है। हालांकि मैं जेल में गया तो जीवन ही बदल गया। जेल में एक कैदी ने मुझे अक्षर ज्ञान कराया। मैंने पढ़ने को क्यों इच्छुक हुआ, इसकी भी वजह है, वैसे यह वजह बेहद साधारण थी। मैंने सुना था कि जेल में उन लोगों को कुछ सम्मान मिलता है जोकि पढ़े-लिखे होते हैं। उन लोगों को काम भी अलग तरह के सौंपे जाते हैं, हालांकि जो पढ़े-लिखे नहीं होते, उन्हें आटा-चक्की पर या फिर दूसरे इसी तरह के काम दिए जाते। इस बात को ध्यान में रखकर मैंने अपने जीवन को सरल बनाने की कोशिश शुरू की। जेल में लिखने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी।'
'मैंने रेत पर लकड़ी के टुकड़े से लिखने की प्रैक्टिस शुरू की। हालांकि जिंदगी खुद एक पाठशाला है, मुझ पर केस गलत था और कोर्ट से मैं बरी हो गया। जेल से बाहर आकर मैंने रिक्शा चला कर अपनी गुजर करनी शुरू कर दी थी। इस बीच रिक्शा में बैठने वाली सवारियों की जिंदगी मुझे अपनी ओर खींचती। लोगों का आचरण, बोलने और उनके हाव-भाव को रेखांकित करने का हुनर मैंने वहीं सीखा। गौरतलब है कि व्यापारी की रचना 'अमानुषिक' जोकि धनंजय चटर्जी फांसी मामले पर आधारित है, में उनके इसी हुनर को बारीकी से समझा जा सकता है। दुष्कर्म केस में धनंजय को 2004 में फांसी दी गई थी।'
व्यापारी कहते हैं- 'मैंने जिंदगी की कठोर हकीकतों को जिया है, मेरे अंदर इस कदर गुस्सा भरा हुआ था, जो बहकर कागजों पर फैल गया। जेल से बाहर आने के बाद एक दिन जो घटा उसने मेरे जीवन को एक दिशा दी जोकि संभव है मेरे जैसे हालात में किसी और को न मिले। हुआ यह था कि मैं अपनी रिक्शा पर एक महिला को लेकर उनकी मंजिल पर जा रहा था। मुझे लगा कि वह बेहद पढ़ी-लिखी महिला हैं तो मैंने उनसे एक शब्द का अर्थ पूछा। इस दौरान उन महिला ने मुझसे यह जानना चाहा कि आखिर मैंने उस शब्द को कहां पढ़ा है। मैंने एक किताब निकाली और उनके सामने पेश कर दी। जाते हुए उन महिला ने एक कागज पर अपना पता लिखा और मुझे देते हुए कहा कि मैं उनकी पत्रिका के लिए कुछ लिखकर दूं। और जब मैंने उस कागज को पूरा खोला तो उस पर एक नाम लिखा था- महाश्वेता देवी। बंगाली की सुविख्यात लेखिका से इस तरह परिचय होगा, यह मैंने कभी नहीं सोचा था।'
'मैं समझता हूं जैसे मुझे फिर से जन्म मिला। जब व्यापारी की लिखी स्टोरी महाश्वेता देवी की पत्रिका बर्तिका में छपी तो वे एक गंभीर लेखक बन चुके थे। इसके बाद तमाम अन्य कहानियों और निबंधों में उन्होंने अपने आक्रोश और अनुभवों को पिरोया। आपने महाश्वेता देवी से क्या पूछा था? व्यापारी बताते हैं- यह शब्द था, जिजीविषा। और महाश्वेता देवी ने मुझे इसका अर्थ समझाया था- जीने की चाह। (महाश्वेता देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं।)'
व्यापारी के अनुसार, मैं बेशक लिख रहा था लेकिन मैंने अपने रोजगार रिक्शा चलाना को बंद नहीं किया था। लिखना आपका घर नहीं चला सकता। रोजी-रोटी के लिए कुछ और तो करना ही पड़ता है और रिक्शा चलाकर मैं अपनी इन्हीं जरूरतों को पूरा करता था। बाद में मैंने एक स्कूल में कुक का काम शुरू कर दिया। मेरी रचनाएं उस बंटे हुए समाज का दर्पण है, जिसमें हम रह रहे हैं।
व्यापारी के अनुसार जेल जाने के बाद मुझ पर अपराधी का जो टैग लग चुका था, मैं उसे उतारना चाहता था, लोग मुझे गंभीरता से नहीं लेते थे। तब मेरे पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं था कि मैं सीखूं और आगे बढ़ूं। देश भर के समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में दलितों के संबंध में जब-तब प्रकाशित होता रहता है, लेकिन मनोरंजन व्यापारी मानते हैं कि वह दलितों की असली जिंदगी को जाहिर नहीं करता। बकौल व्यापारी, मुझे नहीं लगता यह कोई दलित साहित्य है, जो लिख रहे हैं, उनके साथ कभी जब कुछ अप्रिय घटता है तो उससे प्रभावित होकर वे लिख देते हैं। व्यापारी कहते हैं, बहुत बार लोग एक शब्द बोलते हैं, चोरी-चमारी। चमार एक जाति है, तब आप कैसे इसे चोरी के साथ जोड़ सकते हो। मुझे इसका जवाब चाहिए। मैंने देखा है कि जब आप निम्न वर्ग से संबंधित होते हैं, तब अपने आप गरीब हो जाते हैं।
बंगाल में दलित साहित्य कहीं नहीं है, हालांकि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में काफी सक्रिय दलित लेखक हैं। मुझे इसका दुख होता है कि कैसे समाज को जाति में बांट दिया गया है और ऊंची जात के लोग किस तरह से हमारे संबंध में बात करते हैं। अपनी उपेक्षा मुझे परेशान करती है। व्यापारी कोलकाता के कालीघाट इलाके की एक घटना का वर्णन करते हैं, यहां रेड लाइट एरिया है, आवारागर्द लड़के नशाखोरी के लिए यहां जमा रहते हैं, पुलिस छापेमारी करती रहती है। एक बार रेड के दौरान एक पुलिस कर्मी ने एक लड़के को पकड़ लिया। मालूम हुआ कि वह लड़का पुलिस कर्मी की तरह ऊंची जाति से था। इस पर उस पुलिसकर्मी ने उसे सुधार गृह भिजवा दिया। व्यापारी के अनुसार महाश्वेता देवी जोकि ऊंची जाति से थीं, ने हमारे अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी।
मनोरंजन व्यापारी की आत्मकथा 'इतिवृत्ते चांडाल जीवन' में कठिन जीवन संग्राम झकझोर देनेवाला है। 368 पृष्ठों की इस किताब में लेखक ने सिर्फ एक जीवन लिखा है। वह जीवन कभी आगे बढ़ता है कभी पीछे छूट जाता है। वह जीवन कभी हार जाता है तो कभी खो जाता है। खो जाने के बाद पुनः खोज लिया जाता है। वह आघात के ठोकर से क्षत-विक्षत होकर रक्ताक्त भी होता है। इस आत्मकथा में नव नाम का जो रिक्शा चालक है, लतखोर नाम का जो ट्रक खलासी है, जीवन नाम का जो क्रोधी चंडाल है, गुड़जोर नाम का जो शराबी है, बांगाल (उस पार से आए लोगों को बांगाल कहा जाता है) नाम का जो लेखक है, वे सभी मनोरंजन व्यापारी के खंडित रूप हैं।
मनोरंजन व्यापारी का जन्म पूर्वी बंगाल के बरिशाल जिले के पिरिचपुर के निकट स्थित तुरुकखाली गांव के दलित मंडल परिवार में हुआ था। देश विभाजन के बाद उनका परिवार उस पार से विस्थापित होकर इस पार सुंदरवन पहुंचा था। मनोरंजन व्यापारी का बचपन शरणार्थी शिविरों में बीता जहां अन्न और वस्त्र के लाले पड़े रहते। स्कूल का मुंह देखने का सुयोग नहीं था। किशोरावस्था में ही उनकी जेल यात्रा हो गई और वहीं खुद की कोशिश से उन्होंने अक्षर ज्ञान अर्जित किया। जेल से लौटकर मनोरंजन ने रिक्शा चलाना शुरू किया। जीविका के लिए दूसरे कई काम भी किए।
व्यापारी पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव में हुगली जिले के बालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव के लिए खड़े होंगे। उनके उम्मीदवार घोषित किए जाने के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल में दलित साहित्य अकादमी के 70 वर्षीय अध्यक्ष व्यापारी के पहले चुनावी अभियान के पोस्टर में "रिक्शा ईबार बिधानसभा (रिक्शा अब विधानसभा की ओर)" का नारा दिया गया।
जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके पास पहुंचीं, तो उन्होंने उम्मीदवारी के उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने में संकोच नहीं किया। "मैंने पिछले एक दशक में मातुओं [एक अनुसूचित जाति समुदाय] के लिए और मेरे जैसे नामशूद्र लोगों के लिए उनका काम देखा है। जब उन्होंने मुझसे कहा, आपको जिम्मेदारी लेनी होगी', तो मेरे पास ना कहने का कोई कारण नहीं था," व्यापारी कहते हैं।