मानसिक अस्वस्थ संथाल आदिवासी महिला को डायन ठहराने का आरोप, सैकड़ों ग्रामीणों की उपस्थित में परिजनों के साथ दी सजा

नुनूराम का आरोप है, मेरे भाई और उसकी पत्नी ने मिलकर मेरी मानसिक रूप से अस्वस्थ पत्नी बड़की के डायन होने की अफवाह फैला दी, जिसके बाद गांव के लोग भी उसे डायन की नजर से देखने लगे...

Update: 2022-03-26 15:18 GMT

डायन ठहरायी गयी मानसिक रूप से अस्वस्थ संथाल आदिवासी महिला का डरा सहमा परिवार लगा रहा है गंभीर आरोप

विशद कुमार की रिपोर्ट

डायन-बिसही के नाम पर झारखंड में उत्पीड़न बहुत आम हो चुका है। 20 मार्च की देर शाम भी ऐसा ही एक मामला झारखंड के गिरिडीह जिला स्थित पीरटांड़ प्रखण्ड के नोकनिया गांव में सामने आया। डायन घोषित कर नोकनिया के मांझी हड़ाम (संथाल समाज की वंशानुगत मांझी-परगना स्वशासन व्यवस्था का पद) के नेतृत्व में बैठक कर सैकड़ों की संख्या में उपस्थित संथाल ग्रामीणों के बीच एक संथाल आदिवासी महिला बड़की हांसदा और उसके परिजनों के साथ मारपीट करने का मामला सामने आया है।

जानकारी के मुताबिक तुझ्यों पंचायत के नोकनिया निवासी नुनूराम मुर्मू की पत्नी बड़की जिसकी मानसिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों से ठीक नहीं है, उसे नुनूराम मुर्मू के भाइयों द्वारा ही डायन बताये जाने का आरोप है। नुनूराम का आरोप है कि उसके सगे भाई व गांव के कई लोग नुनूराम मुर्मू की पत्नी पर डायन होने का आरोप तब से लगाने लगे हैं, जब उनकी एक 14 वर्षीय बेटी की मौत किसी बीमारी की वजह से हो गयी थी।

नुनुराम मुर्मू का आरोप है कि उसके तीनों भाई व गांव के ग्रामीण उसकी पत्नी बड़की हांसदा पर डायन का आरोप लगाकर विभिन्न तरह से उन्हें प्रताड़ित करते रहे थे। लगभग चार वर्षों से चल रहा इस अंधविश्वास ने आखिरकार 20 मार्च को अपना उग्र रूप दिखा दिया और वही हुआ जो अंधविश्वास के जाल में पूर्व से होता आया है।

नुनूराम का कहना है कि डायन बिसाही के इस आरोप से डरकर महिला बड़की देवी और मैं अपने पांच बच्चों के साथ मेरे घर को छोड़ मंझियानडीह में बड़की के मायके में रह रहे थे।

पीरटांड़ प्रखंड के तुइयों पंचायत के नोकनिया निवासी नुनूराम मुर्मू बताते हैं, वे अपने परिवार का भरण पोषण किसी तरह से कर रहे हैं। लगभग चार वर्ष पूर्व उनकी 14 वर्षीया भतीजी की मृत्यु बीमारी से हो गयी थी। उसके परिवार में अंधविश्वास के मकड़जाल की शुरुआत यहीं से हुई। तब से मेरे भाई और उसकी पत्नी ने मिलकर मेरी पत्नी बड़की को डायन होने की अफवाह फैला दी। इस आरोप से गांव के लोग भी उसे डायन की नजर से देखने लगे। बात यहीं तक नहीं रुकी। पिछले माह बड़की के डायन होने की बात पर नोकनिया गांव में बैठक की गयी। इस बैठक में मेरी पत्नी के साथ मारपीट भी की गयी। इससे तंग आकर वह अपनी मायके में रहने लगी।


जानकारी के मुताबिक ऐसे आरोप के बाद बड़की के मायके के लोगों ने उसके ससुराल जाकर उस पर लगे आरोप को साबित करने को कहा। उसके बाद गांव में मांझी-परगाना स्वशासन व्यवस्था के तहत एक बैठक करके मांझी हड़ाम से न्याय की गुहार लगाई गयी, मगर मांझी हड़ाम ने बड़की के मैके वालों की गुहार को दरकिनार कर बड़की पर लगाए गए आरोप को ही सही ठहराकर उसे दंडित करने का फैसला सुना दिया। इसके बाद बड़की और उसके परिजनों के साथ बैठक में जमकर मारपीट की गई।

बड़की के परिजनों का आरोप है कि नोकनिया निवासी सरोदा किस्कु ने जो मुखिया प्रतिनिधि व गांव के मांझी हड़ाम द्वारा सुनियोजित तरीके से बैठक में मारपीट करवायी गयी। इस अंधविश्वास ने अपने ही घर की महिला व उसके परिजनों को अपने ही गांव के लोगों ने मारकर घायल कर दिया, जिससे बड़की सहित उसका पति व बच्चे भी बुरी तरह घायल हो गए।

इस मामले में पुलिस का भी लचर रवैया सामने आया है। नुनूराम और उसके ससुराल वालों का आरोप है कि घटना के घण्टों बाद भी खुखरा थाना की पुलिस नहीं पहुंची थी। वहीं इस घटना के बारे में खुखरा थाना प्रभारी सोमा उरांव कहते हैं, मामले को लेकर दोनों ओर से आवेदन प्राप्त हुआ है। मामले की पड़ताल की जा रही है। दोषी व्यक्ति के ऊपर कार्रवाई की जाएगी।

आदिवासी संताल समाज में पूर्व से चली आ रही स्वशासन व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए पूर्व सांसद व आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू जो खुद संंथाल समाज से आते हैं, कहते हैं, "भारत के आदिवासी संताल समाज में व्याप्त वंशानुगत माझी-परगाना स्वशासन व्यवस्था जाने-अनजाने झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम आदि प्रदेशों में संताल समाज को गुलामी की जंजीरों में कैद कर रखा है। यह रूढ़िवादी राजतांत्रिक व्यवस्था भारतीय संविधान, कानून, मानवाधिकारों और जनतांत्रिक प्रक्रियाओं और मूल्यों के खिलाफ खड़ा है। इस व्यवस्था ने अधिकांश संताल गांव- समाज को पंगु और गुलाम बनाकर रखा हुआ है, जिसे निरंकुश और तुगलकी राजा की तरह मांझी- परगाना चला रहे हैं।"

वे कहते हैं, "आदिवासी संताल समाज में विद्यमान इस आत्मघाती व्यवस्था की तुलना सती प्रथा के साथ की जा सकती है। इसलिए भारत सरकार, संबंधित राज्य सरकारों और सभी संवेदनशील संस्थानों से आग्रह है कि राष्ट्रहित में इसकी त्वरित जांच और इसमें सुधार किया जाना चाहिए।"

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