Jhansi pet dog death news : पालतू कुत्ते की मौत पर सैकड़ों लोगों को बुलाकर किया तेरहवीं का भोज, इसे आप अंधविश्वास कहेंगे या पशुप्रेम
Jhansi pet dog death news : इसे आप पशुप्रेम कहें या अंधविश्वास, पूंछ कस्बे में लाखन यादव नामक एक शख्स ने पालतू कुत्ते के निधान पर भोज का आयोजन किया।
लक्ष्मी नारायण शर्मा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के झांसी ( Jhansi News ) जनपद में पशुप्रेम ( Pashuprem ) का एक नायाब उदाहरण सामने आया है। हालांकि, इस घटना को कुछ लोग अंधविश्वास से भी जोड़कर देख सकते है। यह मामला झांसी जिले के पूंछ कस्बे में पशुप्रेम के नाम पर अंधश्रद्धा का एक हैरान कर देने जैसा है। यहां एक पालतू कुत्ते (Pet animal ) की मौत (Jhansi pet dog death news) पर तेरहवीं भोज का आयोजन हुआ। एक शख्स ने सैकड़ों स्थानीय लोगों को बुलाकर उन्हें भोजन कराया।
लाखन सिंह यादव ( Lakhan Singh yadav ) नाम के इस शख्स का दावा है कि इस कुत्ते ने जीवन भर उनका जितना सहयोग किया, उतना कोई इंसान भी नहीं कर सकता। कुत्ते की मौत पर आयोजित यह मृत्युभोज अब पूरे जनपद में चर्चा का विषय है।
दरअसल, कालू नाम के कुत्ते की मौत तेरह दिन पहले हुई थी। कालू की मौत पर लाखन ने उसका अंतिम संस्कार ठीक उसी तरह किया, जिस तरह इंसान का अंतिम संस्कार किया जाता है। बकायदा उसकी शवयात्रा निकालकर उसके शव को नदी में प्रवाहित किया गया। धार्मिक रीति रिवाज के मुताबिक इस दौरान कर्मकांड भी आयोजित कराए गए। इसी दिन तय हुआ कि तेरहवीं भोज का भी आयोजन किया जाएगा। इस अवधि में अन्य परंपराएं भी निभाई गईं।
भोज में शामिल हुए 4 से 5 सौ लोग
शनिवार शाम कस्बे में तय कार्यक्रम के मुताबिक एक विवाह घर में भोज आयोजित हुआ। इस भोज में करीब चार सौ से पांच सौ लोगों ने भोजन किया। लाखन सिंह यादव नाम के शख्स ने अपने पालतू कुत्ते की मौत आयोजित इस मृत्युभोज में अपने रिश्तेदारों, परिचितों और स्थानीय लोगों को बुलाया।
लाखन के मुताबिक कालू नाम के कुत्ते को वर्ष 2001 में लाए थे और तभी से कस्बे में स्थित विवाह घर में उसे रख रखा था। जिस दिन उसकी मौत हुई, उसकी उम्र लगभग बीस वर्ष आठ महीने की थी। लाखन दावा करते हैं कि कालू के रहने के दौरान कभी चोरी की घटना नहीं हुई। चौकीदारी या देखभाल के लिए कभी किसी को नहीं रखना पड़ा। कई बार चोरी की कोशिश हुई लेकिन कालू ने उसे नाकाम कर दिया। लाखन ने बताया कि इस कुत्ते को बचपन से पाला था। उसके मौजूद होने पर कोई भी हमारी मर्जी के बिना परिसर में नहीं घुस पाता था। जीवन भर उसने हमारा सहयोग किया। उसकी मौत पर हमने इंसान की तरह उसका अंतिम संस्कार किया और उसे नदी में प्रवाहित किया। तेरहवीं पर चार-पांच सौ लोगों का भंडारा किया और जिस तरह मनुष्य की मृत्यु पर कर्मकांड होते हैं, सभी कर्मकांड किये।
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