Andhvishvash : वैज्ञानिक चेतना बनाम पाखंड : IIT खड़गपुर के छात्रों को शांति का सबक सिखाएंगे रविशंकर
Andhvishvash : आईआईटी खड़गपुर के एक छात्र समूह टेक्नोलोजी स्टूडेंट्स जिमख़ाना की तरफ से इस व्याख्यान का वर्चुअल आयोजन 25 सितंबर को किया जाएगा...
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
Andhvishvash जनज्वार। पूरे देश में वैज्ञानिक चेतना (Scientific Consciousness) को कुंद कर अज्ञान के साम्राज्य को स्थापित करने का जो अभियान संघी गिरोह चला रहा है, उसकी वजह से आईआईटी (IIT) जैसे ज्ञान-विज्ञान के केंद्र भी अछूते नहीं रह गए हैं। आगामी 25 सितंबर को एक ऐसे ही संघी गिरोह के एजेंट की भूमिका निभाने वाले बाबा डबल श्री रविशंकर (Sri Sri Ravi Shankar) आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) के विद्यार्थियों को आंतरिक शांति का सबक सिखाने वाले हैं।
आईआईटी खड़गपुर के एक छात्र समूह टेक्नोलोजी स्टूडेंट्स जिमख़ाना (Gymkhana) की तरफ से इस व्याख्यान का वर्चुअल आयोजन 25 सितंबर को सायं 6.30 बजे से 7.30 बजे तक किया जाएगा।
इसके निमंत्रण पत्र (Invitation Letter) पर संस्थान के निदेशक प्रो. वी के तिवारी (V. K. Tiwari) और डीन वी आर देसाई (V.R. Desai) के नामों का उल्लेख आयोजक के रूप में किया गया है। व्याख्यान का विषय है - इनर पीस एंड आउटर डायनिज़्म (Inner Peace And Dynamism)। बाबा का सचित्र परिचय प्रख्यात मानवतावादी आध्यात्मिक नेता के रूप में दिया गया है।
ज्ञान-विज्ञान और अन्वेषण के केंद्र का ऐसा दुरुपयोग भाजपा (BJP) शासनकाल में पूरे देश में हो रहा है। विज्ञान (Science) को नष्ट करने के लिए मोदी सरकार (Modi Govt) की तरफ से सात सालों से अभियान चलाया जा रहा है और अधिक से अधिक अंध भक्तों की फौज तैयार करने की योजना पर काम किया जा रहा है। यही वजह है आईआईटी जैसी संस्था के निदेशक किसी वैज्ञानिक का व्याख्यान आयोजित करने की जगह एक ऐसे विवादास्पद बाबा का व्याख्यान आयोजित कर रहे हैं जिस बाबा ने धर्म और अध्यात्म की दुकान खोल रखी है।
आज अनगिनत उपकरण व डिवाइस हमारे दैनिक जीवन के अंग बन चुके हैं. परंतु यह कैसी बिडंबना है कि एक तरफ तो हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली खोजों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं. मगर दूसरी तरफ कुरीतियों, मिथकों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं पाखंडों ने भी हमारे जीवन और समाज में जगह बनाए हुए हैं.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करती है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शर्त है बिना किसी प्रमाण के किसी भी बात पर विश्वास न करना या उपस्थित प्रमाण के अनुसार ही किसी बात पर विश्वास करना।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्त्व को पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawahar Lal Nehru) ने 1946 में अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' (Discovery Of India) में विचारार्थ प्रस्तुत किया था। उन्होंने इसे लोकहितकारी और सत्य को खोजने का मार्ग बताया था।
दरअसल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण दैनिक जीवन की प्रत्येक घटना के बारे में हमारी सामान्य समझ विकसित करती है। इस प्रवृत्ति को जीवन में अपनाकर अंधविश्वासों एवं पूर्वाग्रहों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
जनसामान्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना हमारे संविधान के अनुच्छेद 51, ए के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों में से एक है। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए प्रयास करे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए अनेक प्रयत्न किये।
इन्हीं प्रयासों में से एक है उनके द्वारा वर्ष 1958 में देश की संसद (लोकसभा) में विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति को प्रस्तुत करते समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विशेष महत्त्व देना। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सोचने का तरीका, कार्य करने का तरीका तथा सत्य को खोजने का तरीका बताया था।
हमारे संविधान (Indian Constitution) निर्माताओं ने यही सोचकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया होगा कि भविष्य में वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान में वृद्धि से वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त चेतना सम्पन्न समाज का निर्माण होगा, परंतु वर्तमान सत्य इससे परे है। मोदी राज ने आधुनिक युग से पाषाण युग की तरफ यात्रा शुरू कर दी है।