क्या वाकई लंबे समय तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों ने सारा ज्ञान चुराया हमारे वेदों से, यहां आने से पहले नहीं किया था कोई आविष्कार !

वेदों में जो कथित विज्ञान है वह तो संस्कृत भाषा में है, बहुजन समाज के जातियों, एससी एसटी ओबीसी के लिए तो बीसवीं सदी के मध्य तक यह ज्ञान हासिल करना और संस्कृत सीखना अपराध था, जिसके लिए कठोर सजा थी। संस्कृत भाषा और ये ज्ञान केवल ब्राह्मण लोगों का एकाधिकार था। फिर सवाल ये पैदा होता है की हमारी देववाणी संस्कृत भाषा विदेशी अंग्रेज़ कहाँ से सीखे....

Update: 2023-06-23 17:12 GMT

तर्कशास्त्री उत्तम जोगदंड की टिप्पणी

आजकल सोशल मीडिया में कुछ ऐसे पोस्ट/वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसका संक्षेप में आशय यह है कि ‘अंग्रेजों के पास जो विज्ञान का समस्त ज्ञान है वह हमारे वेदों से ही 17-18वीं सदी में चोरी किया हुआ है। यहाँ आने से पहले अंग्रेजों ने कोई भी आविष्कार नहीं किया था। अंग्रेज़ जब भारत आये तब उन्होंने हमसे विज्ञान सीख लिया तब जाकर वे आविष्कार कर सके। अंग्रेजों ने हमारे धन के साथ साथ हमारा ज्ञान भी लूट लिया, वेद ही विज्ञान है, आदि।’

अपने दावे के समर्थन में हमारे ये विद्वान मित्र यह कहते हैं कि ‘विमान, विद्युत, दूरसंचार, अणु, परमाणु, शल्य चिकित्सा आदि शब्द हमारे पास हैं इसका मतलब ये है कि ये सभी तकनीक हमारे पास थी, इसी कारण ये शब्द अस्तित्व में हैं। सौरमंडल, अनंत ब्रह्मांड यह सभी ज्ञान हमारे पूर्वजों के पास था।’

ऐसे पोस्ट्स और वीडियो को जवाब

अपनी सभ्यता में जो भी अच्छी, उदात्त बातें हैं उन पर अभिमान, गर्व होना और बुरी बातों पर शर्मसार होना बिलकुल जायज है, लेकिन दूसरों की प्रगति को नीचा दिखाने के लिए उन पर अपने ज्ञान के चोरी का इल्जाम लगाना, वह भी अपने पास जो है ही नहीं ऐसी बातों का झूठा दाखिला देकर लगाना, इसे आत्मवंचना के सिवाय कुछ नहीं कहा जा सकता। विडंबना देखिये कि हमारे ज्ञान को कथित रूप से चुराने वाले चोरों में से एक के साथ यानी अमेरिका के जनरल इलैक्ट्रिक के साथ जेट इंजन लेने का सौदा हमारे महामहिम प्रधानमंत्री हाल ही में अपने अमेरिका दौरे के दरमियान कर चुके हैं। पुष्पक विमान वाले हमारे देश के इन्हीं प्रधानमंत्रीजी ने इससे पहले फ्रांस से दुगने दाम देकर राफेल का सौदा किया था। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री जी का विशाल विमान अमेरिका की बोइंग कंपनी से लिया हुआ है। खैर, इन महानुभावों के दावों पर अब विचार करते हैं।

1- 17-18वीं सदी के पहले कोई आविष्कार यूरोप में नहीं हुआ, भारत आकर सीखकर और चुराकर अंग्रेज़ों ने आविष्कार किए यह दावा ही गलत है। क्योंकि अंग्रेज़ यहाँ आने से पहले पश्चिमी दुनिया में कई आविष्कार हुए थे। इनमें से एक है दूरबीन का वर्ष 1608 में लिपरशे द्वारा किया गया आविष्कार। दूरबीन की सहायता से गैलीलियो ने अपने सिद्धान्त प्रसिद्ध किए। उस पर चर्च ने मतलब धर्म ने आक्षेप लिया और इस अपराध के लिए उसे आजन्म गृहकैद की सजा सुनाई।

इससे पहले चर्च ने मतलब धर्म ने ब्रुनो को इसी कारण जिंदा जलाया था। इसके बाद वहाँ धर्म के चंगुल से विज्ञान मुक्त होने लगा और वहाँ की इंसानी प्रज्ञा अपना जलवा दिखाती रही। एक के बाद एक नए नए आविष्कार वहाँ के वैज्ञानिकों ने किए। इस का संबंध वेदों से होने के कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः अंग्रेज़ यहाँ आने के बाद ही वहाँ नए नए आविष्कार हुए ये मानना केवल काकतालीय न्याय का उत्तम उदाहरण है। मतलब ड़ाल पर कौवा बैठा और ड़ाल टूट गयी...

2-अंग्रेज़ भारतवर्ष में व्यापार करने के लिए आये थे। वे अपने पैर इस भूमि में 19वीं सदी में यानी 1818 के युद्ध के बाद पूरी तरह जमा सके। देखते हैं, उस समय और उस से कुछ समय पूर्व भारतवर्ष के कथित वेदों में, विज्ञान में पारंगत, महाज्ञानी लोग क्या कर रहे थे। पेशवा रियासत में अस्पृश्य जाति के लोगों के गले में मटका और पीछे झाड़ू लगाकर अमानुषता की सभी सीमाएं लांघ रहे थे और मुहूर्त देख कर युद्ध पर जाते थे। बाल विवाह कराते थे। महिलाओं को सतीप्रथा के नाम पर पति की चिता पर जिंदा जला रहे थे। सती प्रथा अंग्रेजों ने बंद करने के बाद विधवा महिला के बालकाट कर उसे विद्रूप बनाते थे। महिला को शिक्षा से दूर रखते थे। वर्ष 1814 में जॉर्ज स्टीफनसन ने भांप का रेल इंजन बनाया था। तब हम बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी आदि चला रहे थे और उसे नींबू मिर्च लटका रहे थे।

वर्ष 1785 में एडमंड कार्टराइट ने पहला पावरलूम बनाया था, तब हम हैंडलूम चला रहे थे। वर्ष 1800 में वोल्टा ने प्रथम बैटरी का आविष्कार किया और एडिसन ने बल्ब का आविष्कार किया तब हम घासलेट की लालटेन जला रहे थे। लिस्ट बड़ी लंबी है, लेकिन इन कथित ज्ञानी लोगों को शर्मिंदा और नंगा करने के लिए इतना काफी है।

3- हाँ, वेदों में जो कथित विज्ञान है वह तो संस्कृत भाषा में ही है। बहुजन समाज के जातियों, एससी एसटी ओबीसी के लिए तो बीसवीं सदी के मध्य तक यह ज्ञान हासिल करना और संस्कृत सीखना अपराध था, जिसके लिए कठोर सजा थी। संस्कृत भाषा और ये ज्ञान केवल ब्राह्मण लोगों का एकाधिकार था। फिर सवाल ये पैदा होता है की हमारी देववाणी संस्कृत भाषा विदेशी अंग्रेज़ कहाँ से सीखे? जरूर किसी ब्राह्मण ने कई ब्राह्मणों ने ये संस्कृत का ज्ञान और वेदों का कथित विज्ञान अंग्रेजों को दिया होगा। या तो मजबूरी में या तो किसी लालच में आकर। कौन थे वह ब्राह्मण? उन्होंने हजारों वर्ष ये ज्ञान-विज्ञान हमारे ही देश के लोगों को क्यों नहीं दिया? ठीक है, बहुजनों को ज्ञान नहीं दिया। तो स्वयं उस ज्ञान के आधार पर कुछ आविष्कार क्यों नहीं किए? क्यों भारत को मध्ययुगीन दलदल में फंसाए रखा? इसके गुनहगार यही लोग हैं जिन्होंने यह कथित ज्ञान अपने पास छिपाकर रखा।

4- ये कहते हैं विमान, विद्युत, दूरसंचार, अणु, परमाणु, शल्य चिकित्सा आदि शब्द हमारे पास हैं, इसका मतलब ये है कि ये सभी तकनीक हमारे पास थी। ;वैसे तो सुपरमैन, स्पाइडरमैन, बैटमैन जैसे शब्द पश्चिमी देशों में हैं, लेकिन वहाँ कोई ये मूर्खतापूर्ण दावा नहीं करता कि इसकी तकनीक हमारे पास है या वास्तव में उनके यहाँ ये सब थी या है। इनमें से कई शब्द तो पश्चिमी लोगों द्वारा किए गए आविष्कारों के प्रतिशब्द है जो बाद में बनाए गए हैं। और, अगर यह तकनीक हमारे पास थी तो अब वह कहाँ है? पिछले चार हज़ार सालों से वह कहाँ छुपी है? कौन से ग्रंथ में, किस नंबर के अध्याय में, श्लोक में है? अंग्रेजों ने वेदों से ज्ञान अगर चुराया होगा तो वेद अभी भी यहाँ मौजूद हैं ना? फिर उस में स्थित विज्ञान का उपयोग करने से इन विद्वान लोगों को किसने रोका था? रोका हैत्र आज तक इस देश के वैज्ञानिक को विज्ञान विषय में केवल एक नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। वे हैं डॉ सीवी रमन और उन की खोज का संबंध उनकी अपनी प्रज्ञा से है, न कि किसी धर्मग्रंथ से।

5- नौ ग्रहों का ज्ञान यहाँ पहले ही था ऐसा दावा किया जाता है। लेकिन यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो, तो अब ग्रह रहा ही नहीं, अतः केवल आठ ही ग्रह हैं। ये ग्रह तो भारतियों को पता भी नहीं थे। वे अपने ज्योतिष में चंद्र को भी ग्रह कहते हैं, जो वास्तव में पृथ्वी का उपग्रह है। सूर्य को भी वे ग्रह मानते हैं जो की एक तारा है। यूरेनस को बाद में पंचांग में जोड़ दिया गया और उसे हर्षल यूरेनस के शोधकर्ता का नाम दे दिया। राहू और केतू ये तो काल्पनिक बिन्दु हैं, इन्हें भी ये ग्रह मानते हैं। इनके अनुसार पृथ्वी के इर्द गिर्द सूर्य घूमता है। उनके कथित ग्रन्थों में यह भी कहा जाता है कि पृथ्वी शेषनाग के मस्तक पर विराजमान है और जब भी शेषनाग हिलता है तब भूचाल आ जाता है।

वास्तव में हमारे देश के पुरातन जमाने के कुछ लोगों द्वारा दृश्यमान ग्रहों, नक्षत्रों के उदयास्त, स्थान, मार्ग आदि का अचूक गणित खोज निकाला है। वाकई ये बहुत बड़ा आविष्कार है, जिस पर गर्व करना चाहिए, लेकिन उनके बाद वाले ज्ञानी लोगों ने इस आविष्कार को आगे ले जाने के बजाय उन ग्रहों का डर दिखा कर उसे ज्योतिष शास्त्र का नाम देकर लोगों को लूटने और अपनी कमाई बढ़ाने का जरिया बना दिया और हमारी इस विशाल विरासत को संकुचित, कुंठित कर दिया।

6- आज हमारे यहाँ जो भी वैज्ञानिक ज्ञान है, एटम बम है, आण्विक शक्ति है, मिसाइल है, कम्प्युटर प्रणाली है, कम्प्युटर हार्डवेयर है, टेलीफोन-मोबाइल है, बाइक-कार-बस-विमान-रेल-जंगी जहाज है, दवाई है, सीटी स्कैन है, और भी बहुत कुछ है। इन के मूलभूत अनुसंधान, आविष्कार में हमारे ग्रन्थों का और हमारे देश का कोई योगदान नहीं है। पश्चिमी आविष्कारों को बस हम दोहरा रहे हैं। यह कटु वास्तविकता है। हमारे वैज्ञानिक उस पर काम कर रहे हैं जिसकी खोज पहले ही की जा चुकी है। हमारे विद्वान लोग, पश्चिमी देशों में जैसे ही कोई नया आविष्कार हो जाता है, तब जाग जाते हैं और कहते हैं ये तो हमारे वेदों में पहले से ही है। इस पर दुनिया हँसती है। हमारे वेद फिर मज़ाक का विषय बन जाते है। ये लोग एडवांस में ये नहीं कहते की हमारे वेदों में फलां फलां आविष्कार है जो दुनिया में अन्यत्र अभी तक हुआ ही नहीं।

हमारे इन सभी 'वेद ही विज्ञान-पंथ के लोगों से अनुरोध है की वेदों में और क्या क्या विज्ञान है, भविष्य में क्या क्या आनेवाला है और कौन कौनसा वैज्ञानिक आविष्कार वेदों में पहले से ही है, इस की लिस्ट संदर्भ के साथतुरंत जारी करें। ताकि वेद आप जैसे लोग तथा देश मज़ाक का विषय न बन जाये।

पश्चिमी देशों ने विज्ञान को धर्म से अलग किया, इस कारण वहाँ विज्ञान में काफी बड़े पैमाने पर प्रगति हुई, लेकिन हमारे यहाँ विज्ञान को धर्म के साथ जबर्दस्ती जोड़कर विज्ञान को 16वीं सदी में घसीट कर लिया जा रहा है। यह इस देश के वैज्ञानिक प्रगति के लिए घातक है।

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