'रात के भोगी-सुबह के योगी' सोशल मीडिया के स्टार युवा संतों पर स्वामी शिवानंद सरस्वती का चौंकाने वाला खुलासा
मातृ सदन प्रमुख स्वामी शिवानंद सरस्वती ने उगाहीबाज युवा संतों को इस तरह खोली पोल, धर्म के 10 लक्षणों का पालन अनिवार्य बताते हुए आरएसएस को बताया आपराधिक प्रकरणों में लिप्त संगठन....
Haridwar : गंगा की पवित्रता के लिए लंबी लड़ाई लड़ चुके मातृ सदन के शिवानंद सरस्वती महाराज ने नई उम्र के संतों की कुकुरमुत्ते की तरह उग रही पौध को धर्मविरोधी बताते हुए धर्म के 10 लक्षण बताएं हैं। जनज्वार से बातचीत के दौरान उन्होंने संत परंपरा, सनातन संस्कृति, हिंदुत्व के कथित ठेकेदार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर खुलकर बेबाकी से अपनी बात रखी।
गौरतलब है कि भारत की जीवनदायिनी नदी गंगा को बचाने में मातृ सदन वही संस्था है जिसके 4 संत गंगा के लिए अपने प्राणों की बलि दे चुके हैं। हरिद्वार में स्थित मातृ सदन भारतीय संत परंपरा का वह उच्च दायरा है जहां के संतों में त्याग, तपस्या का नजर आता है।
टीवी चैनलों के माध्यम से प्रवचन देकर लोगों से चंदा उगाही के धंधे में लगे नई उम्र के तथाकथित संतों को हिंदुत्व और सनातन परंपरा पर हमला बताते हुए शिवानंद सरस्वती ने कहा कि यह लोग सनातन परंपरा का निर्वाह न करके भोगवादी संस्कृति में लिप्त हैं। बिना किसी ज्ञान के धर्म का उपदेश देने वाले इन लोगों के चरित्र में धर्म का ही कोई लक्षण नहीं है। यह भौतिकतावाद में फंसे हुए लड़के रात भर भोग विलास में लिप्त रहते हैं। उसके बाद दिन निकलते ही इनके प्रवचन शुरू हो जाते हैं, जबकि भोग और योग, दो अलग अलग बाते हैं। भोग से विरक्त होकर ही ईश्वर की सत्ता के साथ खुद को आत्मसात किया जा सकता है। प्रोफेशनल ढंग से अपनी मार्केटिंग कर रहे इन धंधेबाजों के बहुत ज्यादा फॉलोअर्स होने से भी इनकी महानता सिद्ध नहीं होती। द्वापर युग में भी श्री कृष्ण भगवान पांडवों के ही साथ थे, जबकि सेना तो कौरवों की ही विशाल थी, लेकिन धर्म पांडवों के साथ था, इसलिए पांडवों की ही विजय हुई।
विद्या, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, दया, सरलता, बुद्धिमता, आत्म, सत्य तथा बोध भाव जैसे दस तत्वों को धर्म के लक्षण बताते हुए महाराज शिवानंद ने कहा कि गृहस्थ व्यक्ति सत्य, ईमानदारी और कर्मठता के साथ धनोपार्जन कर अपने परिवार को पाले, यह धर्म है। गृहस्थी से सभी भारों से मुक्त होकर अथवा गृहस्थी से विरक्तता की स्थिति में भोग विलास का त्याग कर ज्ञान का अधिकारी बनता है।
अनेकानेक गुरुओं से ज्ञान को प्राप्त करने के बाद वह उस ज्ञान को स्वयं में आत्मसात करने के बाद ही व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उपदेश देने का अधिकारी बनता है। लेकिन आजकल के यह लड़के जो संत बनकर बड़ी बड़ी और महंगी गाड़ियों और हवाई जहाजों में घूम कर संसारिक भोग कर रहे हैं, किसी छोटे से त्याग की कल्पना भी नहीं कर सकते।
प्रवचन देने के लिए आसन पर बैठने से पहले घंटों तक मेकअपमैन से मेकअप करवाने वाले यह लड़के पहले शुद्ध कर्म के साथ धनोपार्जन करें, फिर धर्म का काम करें। युवा संतों की भविष्यवाणियों को कोरी गप्प बताते हुए उन्होंने कहा कि इनकी भविष्यवाणी इतनी ही सत्य होती तो यह कोरोना की ही भविष्यवाणी करके बता देते। इनकी लच्छेदार बातों में इतनी ही शक्ति थी तो कोरोना वायरस को अपने ही आश्रम में घुसने से रोक लेते। अपने प्रवचनों से अपने ही आश्रम की घेराबंदी कर बीमारी से बचाव कर लेते।
वहीं दूसरी तरफ आरएसएस पर हमलावर होते हुए स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते हैं, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने आप को हिंदुत्व का ठेकेदार और सनातन संस्कृति का रक्षक बताता है, उसी के शासनकाल में सनातन परंपरा को बड़ा खतरा है। शिवानंद महाराज कहते हैं उत्तराखंड में आरएसएस से जुड़ी पार्टी का शासनकाल होने के बाद भी यहां कई संतों की जान चली गई। कई संतों का पुलिस और जजों के बल पर उत्पीड़न किया जा रहा है। अनेक आपराधिक घटनाओं को आरएसएस वाले खुद ही अंजाम दे रहे हैं। अंकिता हत्याकांड में तो आरएसएस नेता विनोद आर्य का बेटा खुलेआम लिप्त था। खुद विनोद आर्य लड़के से दुराचार के दर्ज हुए मुकदमे में जेल यात्रा पर रवाना होने वाला है। ऐसे में कौन आरएसएस को सनातन परंपरा या हिंदुत्व का पुरोधा स्वीकार कर सकता है।
बकौल शिवानंद सरस्वती 'धरती के किसी भी स्थान पर RSS का एक भी कार्यालय ऐसा नहीं है, जहां धर्म के तत्वों पर कभी कोई चर्चा की गई हो। आरएसएस कार्यालयों में केवल राम मंदिर की चर्चा तो जरूर होती है, लेकिन इस चर्चा के मूल में भी प्रभु राम नहीं बल्कि राम मंदिर निर्माण के लिए इकट्ठा होने वाला चंदा ही होता है।'