देश में लगातार बढ़ रहा अंधविश्वास, हर साल डायन-चुड़ैल घोषित कर मार दी जाती हैं 150 से ज्यादा महिलायें
यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में तो यह प्रथा समाप्त हो गयी, और सदियों बाद ही सही, पर आज की सरकारें उस व्यवस्था पर माफीनामा तैयार करा रही है। दूसरे तरफ दुनिया के बड़े देशों में केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां इस प्रथा का अंत नहीं बल्कि पहले से अधिक बढ़ती नजर आती है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The belief in witchcraft is almost universal, bat varies with education and economic security. अंधविश्वास, जादू टोना और डायन के अस्तित्व पर भरोसा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फैला है। हाल में ही प्लोस वन नामक जर्नल में इस सम्बन्ध में वाशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री बोरिस गेर्षमन का एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है। पूरे दुनिया में यह मान्यता व्याप्त है कि कुछ व्यक्तियों, विशेष तौर पर महिलाओं में, सुपर शक्तियां होती हैं और जिनका वे दुरूपयोग कर अन्य लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इससे पहले भी इस सम्बन्ध में अनेक अध्ययन किये गए हैं, पर सभी अध्ययन एक क्षेत्र विशेष की ही जानकारी देते थे। समाजशास्त्री बोरिस गेर्षमन के अध्ययन की विशेषता यह है कि यह अब तक का इस विषय पर सबसे बड़ा अध्ययन है। इस अध्ययन के लिए दुनिया के 95 देशों में कुल 140000 व्यक्तियों से आमने सामने या फिर टेलीफोन से बात की गयी।
लोगों के चयन और उनसे बात करने का काम प्रतिष्ठित प्यु रिसर्च सेंटर ने वर्ष 2008 से 2017 के बीच किया था। इसमें लोगों से साक्षात्कार के दौरान उनकी धार्मिक मान्यताओं और अंधविश्वास और डायन पर भरोसा से सम्बंधित गहन सवाल पूछे गए थे। लगभग 40 प्रतिशत लोगों ने अंधविश्वास के साथ ही डायन/चुड़ैलों पर विशवास जताया था। इसमें लगभग सभी देश के नागरिक सम्मिलित थे, पर शिक्षा के स्तर और आर्थिक सुरक्षा के साथ अंधविश्वास में भरोसे के स्तर में देशों के बीच बहुत अंतर पाया गया।
एक तरफ स्वीडन में 9 प्रतिशत से भी कम लोगों को जादू-टोना पर भरोसा है, तो दूसरी तरफ तुनिशिया में 90 प्रतिशत से अधिक लोगों को ऐसा भरोसा है। इस अध्ययन के अनुसार अंधविश्वास और डायन पर भरोसा का सीधा सम्बन्ध सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा का स्तर, सांस्कृतिक मान्यताओं, सामाजिक-आर्थिक स्तर और संवैधानिक संस्थाओं के विघटन से है।
स्पेन का एक स्वायत्त प्रांत है – केटालोनिया। पिछले वर्ष इसकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसके तहत वहां डायन या चुड़ैल बताकर मारी गयी महिलाओं को उनके दोष से मुक्त कर दिया गया और संसद ने इस प्रकार की हत्याओं के लिए सार्वजनिक माफी माँगी। इससे पहले स्विट्ज़रलैंड, स्कॉटलैंड और नॉर्वे की संसद में भी ऐसे ही प्रस्ताव पारित किये जा चुके हैं।
दरअसल यूरोपीय देशों में लगभग 500 वर्ष पहले तक काला जादू या फिर आकस्मिक आई सामाजिक आपदा का कारण डायन या चुड़ैलों को बताकर बहुत से लोगों की हत्याएं की गईं थीं, जिनमें लगभग 90 प्रतिशत महिलायें थीं।
दूसरी तरफ यूरोप में इसके निषेध से सम्बंधित पहला क़ानून वर्ष 1424 में ही लागू कर दिया गया था। इसके बाद धीरे-धीरे अनेक देशों में यह प्रथा बंद होती गयी, पर केटालोनिया क्षेत्र में और स्कॉटलैंड में यह तमाशा और ऐसी हत्याएं 18वीं शताब्दी तक प्रचलित रहीं। इतिहासकारों के अनुसार यूरोप में वर्ष 1580 से 1630 के बीच डायन, चुड़ैल या काला जादू करने वालों के नाम पर 50000 से अधिक लोगों को मार डाला गया, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक महिलायें थीं।
डायन या चुड़ैल के नाम पर इतिहास में दर्ज जानकारियों के आधार पर की गयी हत्याओं पर सम्बंधित सरकारों द्वारा माफी माँगने और उन्हें दोषमुक्त करने का अभियान यूरोप के 100 से अधिक प्रतिष्ठित इतिहासकारों ने शुरू किया है। सबसे पहले इन इतिहासकारों ने इसका पूरा विवरण और इतिहास तैयार कर एक ज्ञापन तैयार किया, जिसका शीर्षक था, "वे डायन नहीं थीं, महिलायें थीं"। इस ज्ञापन और सम्बंधित सामग्री को समाज विज्ञान और इतिहास के प्रतिष्ठित जर्नल, सेपियन्स, में प्रकाशित कराकर फिर इसकी प्रतियां हरेक देश की सरकार को भेजी गयी।
यूरोप के लगभग हरेक देश में वामपंथियों और समाजवादी सांसदों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से अपनी संसद में उठाया और फिर सरकारों द्वारा माफीनामा का एक सिलसिला शुरू हो गया।
केटालोनिया के राष्ट्रपति परे अरगोनेस ने इस प्रथा को महिला ह्त्या का संगठित तरीका करार दिया। यूनिवर्सिटी ऑफ़ बार्सिलोना में आधुनिक इतिहास के प्रोफ़ेसर पॉल कैसेल के अनुसार यूरोप का अधिकतर क्षेत्र मूलतः ग्रामीण था और शक्तिशाली जमींदारों के अधिकार में था, और वही क़ानून गढ़ते थे। उस दौर में सजा केवल शिकायतों के आधार पर दी जाती थीं और पीड़ितों का पक्ष सुना ही नहीं जाता था।
उस दौर में बच्चों की अचानक मृत्यु, प्राकृतिक आपदा या खराब कृषि उत्पादन का जिम्मेदार आसानी से महिलाओं को चुड़ैल या डायन बताकर ठहरा दिया जाता था, और जमींदार उन्हें फांसी पर लटकाने का हुक्म जारी कर देते थे। प्रतिष्ठित इतिहासकार नूरिया मोरेलो के अनुसार उस दौर में परम्परागत औषधि बनाने वालों को और स्वतंत्र महिलाओं को समाज जल्दी स्वीकार नहीं करता था, और ऐसे ही लोगों को काला जादू करने वाला या डायन करार दिया जाता था।
यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में तो यह प्रथा समाप्त हो गयी, और सदियों बाद ही सही, पर आज की सरकारें उस व्यवस्था पर माफीनामा तैयार करा रही है। दूसरे तरफ दुनिया के बड़े देशों में केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां इस प्रथा का अंत नहीं बल्कि पहले से अधिक बढ़ती नजर आती है और न ही सरकारों की तरफ से इस प्रवृत्ति को रोकने का प्रयास नजर आता है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 2000 से 2016 के बीच 2500 से अधिक महिलाओं की हत्या डायन या चुड़ैल बताकर कर दी गयी, यानि प्रति वर्ष औसतन 156 हत्याएं। इस क्षेत्र में काम कर रहे अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार यह प्रथा बिहार, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में व्यापक तौर है और इसका कारण डायन या चुड़ैल का आतंक नहीं, बल्कि महिलाओं का यौन शोषण और आदिवासी महिलाओं के संपत्ति की संगठित लूट है।
अनेक मामलों में बीजेपी के नेता भी इसमें लिप्त नजर आते हैं – कुछ महीनों पहले झारखण्ड के गिरीडीह में एक 42 वर्षीय महिला के डायन बताकर उत्पीडन के बाद दर्ज की गयी एफ़आईआर में स्थानीय बीजेपी नेता कामेश्वर प्रसाद और उनके परिवार को आरोपी बनाया गया था। डायन या चुड़ैल की प्रथा रोकने के लिए केंद्र सरकार का कोई क़ानून नहीं है, कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर क़ानून बनाए हैं – पर ऐसे मामलों में सजा शायद ही कभी होती है।
झारखंड के गुमला में एक बर्ग दम्पति की ह्त्या डायन का आरोप लगाकर पिछले वर्ष 21 अप्रैल को कर दी गयी, 21 अक्टूबर 2021 को जमशेदपुर में 55 वर्षीय महिला की ह्त्या की गयी, 29 अक्टूबर 2021 को पूर्वी सिंहभूम में एक बुजुर्ग महिला की ह्त्या की गयी, इस वर्ष 6 जनवरी को जामताड़ा में 55 वर्षीय महिला की ह्त्या की गयी, इसी वर्ष 5 अगस्त को ओडिशा के रायगडा में बुजुर्ग पुरुष की ह्त्या कर दी गयी, इसी वर्ष 13 अक्टूबर को सिहभूम में 60 वषीय महिला को निर्वस्त्र कर पेड़ से बाँध कर पीटा गया और 5 नवम्बर को बिहार के गया में एक महिला को डायन के शक में ज़िंदा जला दिया गया।
यूरोप में डायन के नाम पर मारी गई प्रमुख महिलाओं को सम्मान देने के लिए अब सड़कों, पार्कों और दूसरे प्रमुख स्थानों के नाम इन महिलाओं के नाम पर रखने का निर्णय लिया जा रहा है। यूरोपीय देश तो अपने ऐतिहासिक भूल के लिए माफी मांग रहे हैं, पर विश्वगुरु भारत में यह अत्याचार बढ़ता जा रहा है और सरकार आँखें बंद किये बैठी है।Millionaires Left India Henley and Partners Report
करोड़पतियों का जिस देश से सबसे ज्यादा पलायन हुआ है, वह है रूस। इस साल 15000 करोड़पतियों ने रूस को बॉय बॉय किया, इसका बड़ा कारण रूस—यूक्रेन युद्ध को माना जा रहा है। वहीं दूसरे नंबर पर जिस देश से करोड़पतियों ने पलायन किया है, वह हमारा पड़ोसी देश चीन है। चीन से इस साल 10,000 करोड़पति ने पलायन किया है।