महिलाओं के शरीर में ही देवी-देवता और शैतानी आत्मायें क्यों आती हैं?

देवी—देवताओं और शैतानों का संचार केवल गरीब और झुग्गी में रहने वाली महिलाओं में होता है यह बहुत बड़ी गलतफहमी है, गणपति-गौरी के समय रईस महिलाओं के शरीर में भी संचार होता है, गागर फूंकने के बाद कई महिलाएं नाचती-घूमती हैं...

Update: 2023-02-23 06:57 GMT

डॉ. प्रदीप पाटील की टिप्पणी

क्या देवी, देव को पुरुषों से परहेज है? इसका उत्तर हमारे यहाँ की समाज रचना में छुपा हुआ है।महिलाओं की इच्छा-आकांक्षाओं को हमेशा दोयम दर्जा देने की परंपरा यहाँ लंबे समय से चली आ रही है। जिस समाज में महिला का स्थान सम्मानजनक नहीं, उस समाज में वह जिये कैसे?

मेरे पास आए हुए एक केस में यह प्रश्न उपस्थित हुआ तब पता चला की पितृतंत्र द्वारा कितना प्रभाव डाला जाता है इसकी कोई सीमा ही नहीं है... हर मंगलवार उस महिला के शरीर में संचार होता था। उसे मेरे पास भेजा गया। जब उस की गहन जांच की तब कई बातें सामने आ गई। शादी के बाद इस घर में आकर दस वर्ष बीत जाने के बाद भी पति द्वारा उस के लिए एक भी साड़ी ना खरीदना, इस बात से ले कर बीमार सास-ससुर की देखभाल करना, ऊपर उन की गालियाँ भी सुनना और पति द्वारा इस पर एक शब्द भी न बोला जाना, यहाँ तक कई बातें ज्ञात हुई।

ऐसे समय महिला की ऐसी अवस्था होती है जैसे मुंह दबाकर मुक्कों की मार और उसे सहना ही उसके हाथ में होता है। इस कारण होने वाली मानसिक तड़प कभी न कभी विस्फोट का रूप लेती है। पति या अन्य किसी को सबक सिखाने के लिए महिला शरीर में देव या देवी का 'संचार करा' लेती है। मतलब, इसे अन्याय के खिलाफ विद्रोह की धर्ममान्य, परंतु गलत पद्धति कहना चाहिए।

ऐसे समय में महिला द्वारा शरीर में 'संचार' करा लेने के बदले परिस्थिति का सामना किया जाना चाहिए, क्योंकि केवल कुछ समय तक ही 'संचार' वाला उपाय लागू होगा, हमेशा के लिए नहीं।

—शराबी पति को सबक सिखाने के लिये

—प्रताड़ित करने वाली सास को झटका देने के लिए

—पति की मारपीट से बचने के लिए

—अवांछित परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए

शरीर में संचार करा लेना पूरी तरह गलत है।

एक गाँव में तांत्रिक-ओझा को पकड़ने के लिए मैं गया था। उस के दरबार में तीन महिलाएं शरीर में देव का संचार करा लिए बैठे बैठे मुंह से हूँ हूँ की आवाज़ें निकाल रही थी। मैं जब पुलिसवालों को लेकर अंदर पहुंचा तब बहुत शोर-शराबा हुआ और वह तीनों महिलाएं अपने जगह पर बैठे बैठे 'चुप' हो गयीं। पुलिसवाले जब उन पर चिल्लाने लगे तब तीनों उठ कर खड़ी हुईं और हाथ जोड़कर मिन्नतें करने लगीं। एक पुलिसवाले ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, "देव अगर पुलिस के पैर पकड़ने लगे तो कल पुलिस के मंदिरों का निर्माण होगा!" यानी, कई बार महिलाएं शरीर में संचार का दम्भ भी करती हैं। इससे वे या तो पैसा या सम्मान हासिल करना चाहती हैं।

दुर्गा-मंदिर जैसी जगह पर शरीर में संचार लाने वाली महिलाएं ज़्यादातर समय इस प्रकार का ढोंग करती हैं। ऐसे समय में इन महिलाओं के सामने इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी सवाल पुछते हुए, समस्या का समाधान करने हेतु प्रार्थना करते हुए दिखाई देते हैं। जिसके शरीर में संचार हुआ है बल्कि संचार कराया गया है, ऐसी महिला का उत्तर सच मानकर वैसा ही बर्ताव भी करते हैं, लेकिन शरीर में संचार हुए कुछ महिलाओं का गंभीर प्रकार भी पाया जाता है।

इन महिलाओं का आसपास की परिस्थिति के साथ संबंध उस समय पूरी तरह टूटा हुआ होता है। अपने कपड़ों का खयाल भी उन्हें नहीं होता। बहुत ही शीघ्र गति से वे नाचती-घूमती हैं। इन महिलाओं के मस्तिष्क में कुछ बदलाव हुए होते हैं। इसे हिस्टेरिया या उन्माद विकृति कहा जाता है। इसे डॉक्टरी भाषा में "डिसोसिएटीव डिसऑर्डर" कहते हैं। स्किझोटायपल पर्सोनालिटी और हिस्ट्रोयनिक पर्सोनालिटी इन व्यक्तित्व दोषों से बाधित व्यक्ति भी इस में शामिल हो रहे हैं। इस आचरण-दोष के प्रकार में व्यक्ति हो हमेशा यह लगता है कि वे अदृश्य और अज्ञात शक्ति के संपर्क में हैं और उन में जादू—टोना की शक्ति है। हाल ही के अनुसंधान में यह पाया गया है की इन बीमारियों से बाधित व्यक्ति के मस्तिष्क के रसायन में और कुछ केन्द्रों में खराबी होती है।

ये महिलाएं गंभीर मानसिक बीमारी से बाधित होती हैं। ऐसे समय वे धार्मिक क्षेत्रों में और मेलों में अपनी मानसिक अवस्था को भूलकर नाचने-घूमने लगती हैं। इस मानसिक अवस्था में कई बार वे इतनी गति से हिलती हैं कि उन पर काबू पाना कई लोगों को संभव नहीं होता। सामान्यतः कोई व्यक्ति अगर अजीब सा बर्ताव करने लगे तो हमारे यहाँ देव या 'बाहर' की बाधा है या प्रेतात्मा है यह माना जाता है। असल में वह बिगड़ी हुई मानसिक अवस्था के लक्षण होते हैं, लेकिन ऐसे पुरुष या स्त्री को दर्गा-मंदिर में ले जाया जाता है। वहाँ के ओझा-मुजावर यह 'देव की बाधा है' कहकर तूल देता है। बाद में भभूत या मंत्र-भारित पानी दिया जाना इस प्रकार के अवैज्ञानिक उपाय किए जाते हैं।

कई बार ऐसे व्यक्ति के साथ मारपीट भी की जाती है। इस प्रकार के उपाय योग्य नहीं हैं और उस व्यक्ति पर जुल्म करनेवाले होते हैं। असल उपाय है डॉक्टर को दिखाना और मानसिक परामर्शदाता (Counseller) को दिखाना। अब इस पर प्रभावशाली इलाज प्रणाली उपलब्ध है। लेकिन शरीर में होनेवाला संचार को दूर करने के लिए संयम की आवश्यकता होती है। क्यूँ की इस का इलाज लंबे समय तक करना जरूरी होता है।

अगर यह संचार दम्भ हो तो उस का कारण खोजना महत्त्वपूर्ण होता है। यह दम्भ विशिष्ट कारण के लिए किया जा रहा हो तो उस कारण का निरसन करना आवश्यक है। दम्भ करने के पीछे उस व्यक्ति के विशिष्ट के लिए छिपे हुए होते हैं। उन हेतुओं का समाधान करना यह उपाय होता है।

संचार केवल गरीब और झुग्गी में रहने वाली महिलाओं में होता है यह बहुत बड़ी गलतफहमी है। गणपति-गौरी के समय रईस महिलाओं के शरीर में भी संचार होता है। गागर फूंकने के बाद कई महिलाएं नाच-घूमती हैं। वास्तविकता ये है कि गागर में फूंकते समय मुंह के मार्फत कार्बन-डाय-ऑक्साइड वायु गागर में छोड़ा जाता है और उसी को नाक के मार्फत श्वास के रूप में वापस लिया जाता है। ऐसे समय मस्तिष्क को ऑक्सिजन की मात्रा कम मिलती है और इस कारण ग्लानि आ जाती है। भ्रम महसूस होता है और वह महिला संचार हुआ है ऐसा बर्ताव करती है। इसे "मेंटल एसफायक्झिया" कहते हैं। संचार होना यह कोई अलौकिक बात निश्चित रूप से नहीं है। उस के कारण अगर खोज लिए जाते हैं तो संचार होना पूरी तरह बंद हो जाता है, यह मैं मेरे द्वारा किए गए मानसिक इलाज के अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ। देवी-देव-शैतान का संचार शरीर में जो लाते हैं, उनकी अपेक्षा आसपास फैले हुए समाज ने यह समझ लेना चाहिए।

(डॉ. प्रदीप पाटील विख्यात मनोरोग चिकित्सक हैं। उनके लेख का हिंदी अनुवाद तर्कशास्त्री उत्तम जोगदंड ने किया है।)

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