बिहार में कोरोना भगाने के लिए काटा बकरा तो बनारस के घाटों पर महिलायें कर रहीं पूजा

शनिवार 15 मई को बिहार के गया जिले के कालीबाड़ी मंदिर में कोरोना से मुक्ति पाने के लिए तांत्रिक पूजा का आयोजन किया गया।लोगों ने कोरोना से मुक्ति के लिये पूजन में एक बकरे की बलि भी दी।

Update: 2021-05-16 12:00 GMT

प्रतीकात्मक फोटो

जनज्वार ब्यूरो  देश में कोरोना महामारी के प्रकोप के साथ-साथ अंधविश्वास के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। देशभर में विभिन्न स्थानों पर लोगों ने कोरोना से राहत पाने के लिए देवी-देवताओं की पूजा शुरू कर दी है। पिछले वर्ष भी कोरोना संक्रमण के दौरान बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में महिलाओं ने कोरोना के वायरस व बीमारी को कोरोनामाई मानकर पूजा की थी।

बिहार के गया में हवन पूजन के साथ बकरे की दी गई बलि -

शनिवार 15 मई को बिहार के गया जिले के कालीबाड़ी मंदिर में कोरोना से मुक्ति पाने के लिए तांत्रिक पूजा का आयोजन किया गया।लोगों ने कोरोना से मुक्ति के लिये पूजन में एक बकरे की बलि भी दी। इस दौरान बकरे के सिर पर कपूर रखकर मंत्रोच्चारण और घंटों पूजन व आरती की गई। मंदिर में हवन का आयोजन भी किया गया।

कोरोनावायरस से मुक्ति के लिए वाराणसी के घाटों पर चल रहा है 21 दिवसीय पूजन

नवभारतटाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना से मुक्ति पाने के लिए वाराणसी के घाटों पर महिलाओं ने पूजा शुरू कर दी है। काशी के जैन घाट सहित अन्य घाटों पर पूजा की जा रही है। पूजन करने वाली महिलाओं का कहना है कि वह पूजा के माध्यम से देवी देवताओं को मना रहे हैं। महिलाओं का मानना है कि देवी देवताओं की पूजा करने से महामारी खत्म हो जायेगी। महिलाओं ने जानकारी देते हुए बताया कि पूजन से सभी जगह सुख शांति स्थापित होगी।महिलाओं ने 21 दिनों का पूजन शुरू किया है जिसके अब तक 8 दिन पूरे हुए हैं।

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के अतरौलिया थाना क्षेत्र के भरसानी गांव में महिलाओं ने एकत्रित होकर धार और कपूर के साथ डीह, काली की पूजा अर्चना की थी।

इसी कड़ी में राजस्थान के झालावाड़ में के डग इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से बचाव के लिए ग्रामीणों ने अपने घरों को छोड़ दिया। गांव के घरों को छोड़कर ग्रामीण जंगलों में रहने लगे। ग्रामीणों का मानना है कि वह जंगल में सुरक्षित रह सकेंगे। सभी ग्रामीण पूरा दिन जंगल में रहते हैं। रात में ही ग्रामीण वापस अपने घरों को लौटते हैं।

मेडिकल साइंस पर हावी अंधविश्वास-

इस तरह के अंधविश्वास युक्त कर्मकांड कोरोना संक्रमण को रोकने की बजाय और ज्यादा बढ़ाएंगे। हवन, पूजन और कर्मकांड के दौरान लोग एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और मिलकर पूजा करते हैं। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन होता है।  हवन करने वाले कर्मकांडी पंडित कहते हुए सुने जाते हैं कि हवन से निकले हुए धुएं से कोरोनावायरस मर जाता है और इस तरह की अफवाहों में विश्वास करके लोग कोविड गाइडलाइन का पालन करने में लापरवाही बरतते हैं। इसका परिणाम और ज्यादा संक्रमण के मामलों के रूप में सामने आता है। किसी भी तरह का पूजन अथवा कर्मकांड किसी वायरस को नहीं मार सकता।

भारत की अक्षम स्वास्थ्य व्यवस्था अंधविश्वास को बढ़ाने में मददगार-

अंधविश्वास के सर्वाधिक मामले ग्रामीण क्षेत्रों से सामने आते है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का आधारभूत ढांचा ही नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाओं कि ग्रामीणों तक पहुँच न होने के कारण वे अब तक आधुनिक मेडिकल साइंस से परिचित नहीं है। इस कारण भी ग्रामीण धार्मिक अंधविश्वासों में विश्वास करने को मजबूर होते हैं।

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