Food Inflation : UP चुनाव के बीच मोदी-योगी सरकार के नियंत्रण से बेकाबू हुई महंगाई, जनता हिसाब देने को तैयार
Food Inflation : जून, 2021 के बाद महंगाई सबसे खराब स्थिति में पहुंच गई है। महंगाई में रिकॉर्ड बढ़ोतरी ने मोदी-योगी सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। परेशानी इसलिए कि पांच राज्यों में चुनाव दौर के बीच महंगाई बेकाबू हो गया है।
Food Inflation : उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में जारी विधानसभा चुनाव के बीच खुदरा महंगाई दर ( Retail Inflation Rate) 6 फीसदी से ज्यादा हो गया है। यह जून, 2021 के बाद से सबसे खराब स्थिति है। महंगाई में रिकॉर्ड बढ़ोतरी ने मोदी-योगी सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। परेशानी इसलिए कि एक तो पांच राज्यों में चुनाव चल रहा है और दूसरी तरफ महंगाई अब सरकार के नियंत्रण से बेकाबू हो गई। विरोधी दलों ने भी इसे चुनाव प्रचार में एजेंडा बनाया है। इसका असर सीधे जनता पर हुआ है। यूपी में पहले दो चरण के चुनावों के बाद इसका अहसास भाजपा सरकार को भी हो गया है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ( एनएसओ ) द्वारा 14 फरवरी को जारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ( सीपीआई ) द्वारा मापी गई भारत की खुदरा मुद्रास्फीति दर जनवरी 2022 में बढ़कर 6.01% हो गई है जो जून 2021 के बाद सबसे ज्यादा है।
मोदी सरकार इस बार नहीं गला पाएगी दाल
मोदी सरकार ने महंगाई की मार से बचने और चुनावी लाभ उठाने के लिए ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से आने वाले मसूर के दाल पर आयात कर ( Import Duty) को घटाकर शून्य कर दिया है तो अमेरिका से आने वाले मसूर दाल पर इंपोर्ट ड्यूटी को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया गया है। इसके बावजूद खाने के तेल के दामों में फिर से तेजी देखी जा रही हैं। थोक बाजार में फिर से सरसों तेल के दाम 175 रुपए प्रति किलो के पार जा पहुंचा है। वैश्विक कारणों ( Global Reasons) और इंडोनेशिया के पाम ऑयल एक्सपोर्ट पॉलिसी में बदलाव किए जाने और दक्षिण अमेरिका में सोयाबीन के फसल की चिंता को लेकर दाम फिर से बढ़ने लगे हैं। इन प्रयासों के बावजूद महंगाई में कमी न आने केबाद सरकार ने कच्चे पाम तेल पर कृषि-सेस घटाने का फैसला लिया है जिससे घरेलू खाद्य तेल मिलों को मदद मिलेगी और खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाले तेलों की कीमतें भी काबू में रहेंगी।
महंगाई के मोर्चे पर घिरी सरकार
वित्त मंत्रालय ने कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस 7.5 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने की घोषणा की है। इससे कच्चे पाम तेल के आयात पर प्रभावी शुल्क 8.25 प्रतिशत से घटकर 5.5 प्रतिशत रह गया है। खाद्य आपूर्ति मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि कच्चे पाम तेल पर कृषि उपकर घटाए जाने से उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और घरेलू स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में रखने में मदद मिलेगी। अब घरेलू रिफाइंड तेल उद्योग कच्चे पाम तेल के आयात से लाभान्वित होगा। इसके साथ ही सरकार ने कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूर्यमुखी तेल पर मूल आयात शुल्क को शून्य फीसदी रखने का निर्णय सितंबर 2022 तक बढ़ाने की भी घोषणा की है।
सबक सिखाने के मूड जनता
दूसरी तरफ हकीकत यह है कि लोगों को सरकार के इस फैसले का लाभ नहीं मिल रहा है। देशभर में गरीब जनता महंगाई की मार से परेशान है। बेरोजगारी ने तो लोगों को कराहने पर मजबूर कर रखा है। लोगों कहना है कि मोदी सरकार हमेशा से जनता से छल करती है। चुनाव के समय दाम घटाने का प्रयास करती है। लेकिन इस बार उसका छल चलने वाला नहीं है। आम लोग खाने पीने की जरूरी सामान खरीद नहीं पा रहे हैं, सरकार को लगता है कि महंगाई है ही नहीं। जनता मस्ती हैं। मोदी—योगी सरकार को जनता इस अच्छे से समझाएगी की महंगाई की मार क्या होती हैं
RBI का बयान जले पर नमक छिड़कने जैसा
वहीं भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि जनवरी मुद्रास्फीति में संभावित वृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है। उम्मीद से ज्यादा इन्फ्लेशन रेट पर पैनिक होने की जरूरत नहीं है। मुद्रास्फीति प्रिंट लगभग 6 फीसदी होने की उम्मीद है। वर्तमान में मुद्रास्फीति और विकास के बीच मेजर बैलेंस है और रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से पूरी तरह अवगत है। जबकि नवीनतम संख्या ने बेंचमार्क मुद्रास्फीति दर को आरबीआई के सहिष्णुता बैंड की 6% ऊपरी सीमा से ऊपर ले लिया है, ऐसा जून 2021 के बाद पहली बार हुआ है।
ब्लूमबर्ग ने पहले ही जता दी थी आशंका
Food Inflation : बता दें कि मुद्रास्फीति के नवीनतम आंकड़े अपेक्षित तर्ज पर हैं। 40 अर्थशास्त्रियों के ब्लूमबर्ग के पूर्वानुमान ने जनवरी में सीपीआई वृद्धि 6% रहने का अनुमान लगाया था। लेकिन सरकार द्वारा महंगाई को काबू करने के लिए समय रहते कदम न उठाए जाने से यह 6 फीसदी से ज्यादा हो गया है।