लॉकडाउन में आय कम होने से घर खरीदना अब बस रह जाएगा सपना
नौकरियों के बिना गुजर-बसर के मामले में गंभीर है। देश की लगभग आधी आबादी किसी भी नौकरी या आय के बिना एक महीने से अधिक समय तक बिना किसी नौकरी, बचत के गुजर-बसर करने में सक्षम नहीं होगी।
जनज्वार। लॉकडाउन के कारण आय पर पड़े नकारात्मक प्रभाव से लोग सुरक्षा के लिए जहां सार्वजनिक बैंकों का रुख कर रहे हैं, वहीं बड़ी संख्या में भारतीयों की अब घर खरीदने की उनकी इच्छा एक सपना बनकर रह जाएगी। नवीनतम आईएएनएस सीवोटर इकोनॉमिक बैटरी वेव सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है। जैसा कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने कई क्षेत्रों में व्यवसायों को गंभीर रूप से प्रभावित किया, आम भारतीयों की आय पर दो महीनों से अधिक समय तक प्रभाव डाला, लोग अपनी वित्तीय संभावनाओं के बारे में अनिश्चित हैं।
सैंपल तिथि जून के पहले सप्ताह का है और सैंपल साइज 1,397 है और देश भर में 500 से अधिक लोकसभा सीटों को कवर करता है। हर हफ्ते 1,000 से अधिक नए उत्तरदाताओं को ट्रैकर मॉडल में जोड़ा जाता है। आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने इसका संकेत दिया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से घरेलू आय पर बड़े पैमाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सर्वे के अनुसार, 53.2 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसलिए या तो लोगों का काम करना बंद हो गया, वेतन कटौती की गई, बिना वेतन के छुट्टी के लिए मजबूर किया गया या केवल पार्ट टाइम काम कराया गया। लॉकडाउन से पहले के मुकाबले 56.4 प्रतिशत महिलाएं कम कमा रही हैं।
आय और नौकरियों के बिना गुजर-बसर के मामले में गंभीर है। भारत की लगभग आधी आबादी किसी भी नौकरी या आय के बिना एक महीने से अधिक समय तक बिना किसी नौकरी, बचत या परिवार के सहयोग के गुजर-बसर करने में सक्षम नहीं होगी। एक लंबे लॉकडाउन और निराशाजनक अर्थव्यवस्था के साथ, नौकरी खोना बढ़ रहा है और परिवारों के लिए चिंताएं बढ़ रही हैं कि वे कितने समय तक स्थिति संभाल सकते हैं।
आईएएनएस सीवोटर इकोनॉमिक बैटरी वेव के अनुसार, 28.2 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि वे एक महीने से भी कम समय तक आय के बिना गुजर-बसर कर पाएंगे, जबकि 20.7 प्रतिशत ने कहा कि वे एक महीने तक गुजारा कर सकते हैं। वहीं, 10.7 प्रतिशत ने कहा कि वे एक वर्ष से अधिक समय तक आय के बिना गुजारा कर सकते हैं।
इसके अलावा बड़ी संख्या में भारतीयों को लगता है कि उनका खुद का घर खरीदने की उनकी उम्मीदें सपना ही बनकर रह जाएंगी। सर्वे से पता चला है कि मध्यम-आय वर्ग में लगभग 24.6 लोग और निम्न-आय वर्ग में 18.3 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनका खुद का घर अब उनकी पहुंच से बाहर है।
दिलचस्प बात यह है कि 31 मार्च, 2021 तक एक और वर्ष के लिए किफायती आवास इकाइयों को खरीदने के लिए मध्यम-आय वाले समूहों के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (सीएलएसएस) को बढ़ाने की सरकार की नवीनतम घोषणा के बावजूद निराशा बनी हुई है।
घर खरीदने में अक्षमता की यह भावना कम और मध्यम-आय वाले समूहों तक सीमित नहीं है, क्योंकि सर्वे से पता चला है कि उच्च-आय वर्ग के लगभग 7 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि घर खरीदने की उनकी योजनाएं पटरी से उतर गई हैं।
वहीं सर्वे से पता चलता है कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने बैंकिंग प्रणाली के लिए लोगों की वरीयता का सही परीक्षण किया है जो अच्छी सेवा और बेहतर रिटर्न के साथ उनकी बचत के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। इस संबंध में, सर्वे से खुलासाा हुआ है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उन खाताधारकों में से अधिकांश से तरजीह मिला है, जिन्हें लगता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में उनकी गाढ़ी कमाई वहां सुरक्षित है।
यहां तक कि सहकारी बैंकों ने निजी ऋणदाताओं की तुलना में भरोसे के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया। 60 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 12.7 प्रतिशत लोग, जो वर्तमान में निजी बैंकों में खाते रखते हैं, अपने खातों को स्थानांतरित करना चाहते हैं, जिनमें से 12 प्रतिशत सहकारी बैंकों में स्थानांतरित करना चाहते हैं और शेष 0.7 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में स्थानांतरित करने के इच्छुक हैं।
हालांकि अधिकांश उत्तरदाताओं ने घरेलू सेवाओं में कटौती करने की योजना नहीं बनाई है। सर्वे के अनुसार, विभिन्न श्रेणियों में 60.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे इन सेवाओं का लाभ उठाते रहेंगे। वे इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि उन्होंने सेवाओं का लाभ उठाने की योजना बनाई है या नहीं। इन सेवाओं में नौकर, ड्राइवर और कुक शामिल हैं। कुल 39.1 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इन सेवाओं में कटौती करने की योजना बनाई है।