Demonetisation: उर्जित पटेल के RBI गवर्नर बनने से पहले ही उनके दस्तखत से कैसे छपी थी नई करेंसी, RTI से हुआ खुलासा
Demonetisation: तो आखिर इतनी बड़ी अनियमितता कैसे हुई। तो क्या पूर्व पीएम डा.मनमोहन सिंह ने इसे ही 'नोटबंदी एक संगठित लूट है' कहा था। यही बात 2000 की नई करेंसी में भी सामने आई है। तब भी इस बात पर सवाल खड़ा हुआ था कि बिलों पर निवर्तमान राज्यपाल के हस्ताक्षर क्यों नहीं हैं...
Demonetisation: 8 नवंबर 2017 मंगलवार को गुजरात में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी पर बोलते हुए इसे संगठित लूट करार दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि, 'विमुद्रीकरण काले धन के उन्मूलन और कर चोरी पर अंकुश लगाने का कोई समाधान नहीं था। पिछले साल 8 नवंबर को 500 और 1000 के नोटों को बंद करना एक संगठित लूट और वैध लूट था।' अब इसी नोटबंदी को लेकर एक बड़ा सच सामने आया है।
दरअसल, करेंसी नोट प्रेस नासिक ने एक RTI के जवाब में बताया है कि, तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नए डिजाइन के 500 रूपये मूल्य के नोट पीएम द्वारा 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के 19 महीने पहले ही यानी अप्रैल 2015 से दिसंबर 2016 के बीच छपकर सप्लाई किये गए थे। जबकि उर्जित पटेल RBI के 24वें गवर्नर 5 सितंबर 2016 में नियुक्त किए गए थे।
यह साफ है कि, उर्जित पटेल के आरबीआई गवर्नर नियुक्त होने के 17 महीने पहले ही उनके हस्ताक्षर वाले 500 रूपये मूल्य के नोट छाप लिए गए थे। इतनी बड़ी अनियमितता कैसे हुई। तो क्या पूर्व पीएम डा.मनमोहन सिंह ने इसे ही 'नोटबंदी एक संगठित लूट है' कहा था। यही बात 2000 की नई करेंसी में भी सामने आई है। तब भी इस बात पर सवाल खड़ा हुआ था कि बिलों पर निवर्तमान राज्यपाल के हस्ताक्षर क्यों नहीं हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो प्रेस, जिन्होने 2000 रूपये के नए नोट का उत्पादन किया था, उन्होने 22 अगस्त को प्रिटिंग प्रक्रिया का पहला चरण शुरू किया था। यानी ये दिन सरकार द्वारा पटेल को अगला केंद्रीय बैंक प्रमुख नामित किये जाने बाद पहले कार्य दिवस के दिन। रिपोर्ट के मुताबिक पटेल ने लगभग दो सप्ताह बाद 4 सितंबर तक रघुराम राजन से कार्यभार नहीं लिया।
रघुराम राजन 2000 हजार के नए नोटों पेश करने के फैसले के पक्ष में थे या नहीं, अथवा नए नोटों पर उनके हस्ताक्षर क्यों नहीं थे, इसपर स्पष्टीकरण मांगने के लिए आरबीआई और केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ईमेल पर भेजे गये सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया। दिसंबर में आरबीआई ने संसदीय पैनल को बताया कि उसे 7 जून 2016 को 2000 रूपये के नए नोट छापने की अनुमति मिल गई थी।
आमतौर पर छपाई की प्रक्रिया केंद्रीय बैंक द्वारा आदेश दिये जाने के तुरंत बाद शुरू होती है। जो इस मामले में प्रेस द्वारा 22 अगस्त को 2000 के नए नोटों को छापने की प्रक्रिया से ढ़ाई महीने पहले आई थी। इस मामले में दायर सूचना के अदिकार आवेदन के जवाब में केंद्रीय बैंक की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण Pvt.Ltd. (BRBNMPL) से 2000 को नए नोटों के छपने की जानकारी मिली।
कंपनी ने अपने जवाब में कहा कि, उसने केवल 23 नवंबर को 500 रूपये के नए नोटों के लिए छपाई प्रक्रिया शुरू की। और फिर 8 नवंबर को 500 रूपये का बिल छापा। यह खुलासे 1000 और 500 रूपये के नए नोटों को बंद करने के सरकार के कदम के पहले 100 दिनों के अंत में आए हैं। यहां तक की केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह में सामान्यता बहाल करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
बताया जा रहा कि दो उच्च मूल्य के नोटों को वापस लेने का निर्णय गुप्त रखा गया था। राष्ट्रीय टेलीविजन पर मोदी की घोषणा आरबीआई और तथाकथित विमुद्रीकरण कदम की पुष्टी करने के कुछ घंटों बाद आई थी। राजन ने इस फैसले पर बोलने से परहेज किया है। कयास लगाये जा रहे कि फैसले पर सरकार से कथित असहमति के कारण उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया।
बहरहाल, सरकार और आरबीआई दोनों ने विमुद्रीकरण प्रक्रिया के विवरण में जाने से इनकार करती रही है। आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने मोदी द्वारा घोषणा के तुरंत बाद मीडिया कोे बताया था कि, 'उस प्रक्रिया में जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, जिसके कारण यह निर्णय लिया गया।'