ट्रंप-मोदी की दोस्ती भी नहीं दिलवा पायी अमेरिका से भारत की कंपनियों को सौदा
अमेरिका में चीन से मैन्युफैक्चरिंग आयात जहां 17 प्रतिशत घटा, वहीं भारत से आयात में मामूली वृद्धि आई...
जनज्वार। अमेरिका के साथ भारत के करीबी राजनयिक संबंध होने और स्थानीय स्तर पर उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा देने के बावजूद भारत चीन से अमेरिका में होने वाले आयात में आई गिरावट से कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर पाया है। गौरतलब है कि साल २०१९ में चीन से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग आयात १७ फीसदी यानी ८८ बिलियन डॉलर कम हुआ।
यह बात नीदरलैंड की बैंकिंग एवं वित्तीय सेवा कंपनी रबोबैंक द्वारा जारी एक अध्ययन में सामने आई है।
अध्ययन संबंधी रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल भारत ने अमेरिका को किये जाने वाले निर्यात में मामूली वृद्धि ही दर्ज़ करी जबकि चीन के साथ व्यापार युद्ध ने अमेरिकी कंपनियों को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से इतर अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने के लिए मजबूर कर दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अधिक लाभ नहीं मिलने का एक कारण यह है कि कंप्यूटरों और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के क्षेत्र में सबसे अधिक उछाल देखा गया है। इस बारे में अर्थशास्त्री राल्फ वान मेचेलन और मिचेल वान डेर वेन लिखते हैं कि इस समय भारत में यह एक ऐसा उद्योग है, जो अभी अपेक्षाकृत छोटा है।
रिपोर्ट यह भी कहती है कि २०१९ में अमेरिकी आयात में चीन की हिस्सेदारी में चार फीसदी की गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी-चीन ट्रेड युद्ध के अलावा कोरोनो वायरस महामारी ने कंपनियों पर अपनी सप्लाई चेन के पुनर्मूल्यांकन के लिए भी दबाव बढ़ा दिया है।
रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वियतनाम, मेक्सिको और ताइवान अमेरिकी आयात में बदलाव के मुख्य लाभार्थी बनकर उभरे हैं। वहीं उन्होंने आगे जोड़ते हुए यह भी कहा है कि आने वाले दिनों में हम भौगोलिक राजनैतिक तनावों के चलते अनेक क्षेत्रों में सप्लाई चेन में तीव्र स्थानांतरण देख सकते हैं।