कर्नाटक में रेडिमेड कपड़ा फैक्टरी ने 1300 मजदूरों को बिना नोटिस नौकरी से निकाला, नहीं दी सैलरी
1300 कामगारों वाली मांड्या की फैक्ट्री 6 जून को अचानक बंद कर दी गई। फ़ैक्टरी की अंदरूनी दीवार पर नोटिस चिपका दिया गया जिसमें में कामगारों को बताया गया कि अब उनकी नौकरियां नहीं हैं....
प्रजवल भट की रिपोर्ट
बेंगलुरू। कर्नाटक के मांड्या ज़िले की लक्षम्मा कपड़ा उघोग की कामगार हैं। उन्हें कपड़े सिलने में महारत हासिल है। वो एच एंड एम (H&M) सरीखे फैशन ब्रांड के लिए जैकेट, शर्ट और ब्लेज़र बनाने में मदद करती हैं लेकिन जब से कोरोनावायरस महामारी शुरू हुयी है तबसे गोकलदास एक्सपोर्ट्स के लिए कपड़े सिलने वाली 'यूरो क्लॉथिंग कंपनी II' नामक उसकी फ़ैक्टरी को अंतर्राष्ट्रीय खुदरा व्यापारियों से मिलने वाले ऑर्डर में लगातार गिरावट आई है।
गौरतलब है कि गोकलदास एक्सपोर्ट कपड़ों के निर्यात में भारत की एक बहुत बड़ी कंपनी है। 1300 कामगारों वाली मांड्या की फैक्ट्री 6 जून को अचानक बंद कर दी गई। बंदी की घोषणा फ़ैक्टरी की अंदरूनी दीवार पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। नोटिस में कामगारों को बताया गया था कि अब उनकी नौकरियां नहीं हैं और उन्हें आधी मज़दूरी ही दी जाएगी। नोटिस में कामगारों को हटाने का कारण कोविड-19 के चलते निर्यातक की उत्पादन गतिविधियां प्रभावित होना बताया गया है।
उत्पादन इकाई के बंद होने के तकरीबन तीन हफ्ते बाद फैक्टरी कामगार, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं है, निकाल दिए जाने के खिलाफ लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। लक्षम्मा कहती है - 'हम उधार के पैसों पर जी रहे हैं।' वो आगे कहती है, 'कोरोना महामारी की वजह से हमें दूसरी नौकरियाँ नहीं मिल रही हैं। घर का किराया और बच्चों की फीस देने के पैसे नहीं हैं हमारे पास।" पति को लकवा मारने के बाद से ही लक्षम्मा ही कमाने वाली परिवार की अकेली सदस्य है। उसका एक बेटा है जो 9वीं कक्षा में पढ़ रहा है।
इसी महीने नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिए गए लक्षम्मा जैसे कामगार रोज फैक्ट्री के गेट पर जमा होते हैं और शाम तक धरने पर बैठे रहते हैं, इस उम्मीद में कि गोकलदास एक्सपोर्ट के अधिकारी उनसे काम पर लौट आने की बात कहेंगे। 'जब तक हम काम कर रहे होते हैं तभी तक हमारा महत्व है लेकिन जब काम रुक जाता है तो हमारा कोई महत्व नहीं है।'
यूरो क्लॉथिंग कंपनी -II की फैक्टरी मांड्या के श्रीरंगपट्टन में है और गोकलदास एक्सपोर्ट्स नामक निर्यातक प्रमुख भारतीय खुदरा खरीदारों के ब्रांड के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका के ब्रांड्स के लिए भी सिले-सिलाये कपड़ों के उत्पादन का काम करते हैं। अप्रैल महीने में फैक्टरी के कामगारों को आधी मज़दूरी ही दी गयी थी। जब लॉकडाउन की कड़ी पाबंदियों में 4 मई को ढील दी गयी, तब वे फिर काम पर लौटे।
कामगारों का कहना है कि बिना किसी चेतावनी के 6 जून को हमें निकाल दिया गया। इसके बाद त्रिपक्षीय समझौते की प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें गारमेंट एन्ड टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन, गोकलदास एक्सपोर्ट्स के अधिकारी और मांड्या श्रम विभाग के अधिकारी शामिल हुए।
गोकलदास एक्सपोर्ट्स के अधिकारियों ने जवाब देने से मना कर दिया और छंटनी के ब्यौरे को लेकर कोई सफाई नहीं दी। गोकलदास कंपनी के अनुपालन विभाग के डिप्टी जनरल मैनेजर सिरीश कुमार ने बताया - 'हमने कोई निर्णय नहीं लिया है और हम समझौते का ब्यौरा मीडिया के साथ साझा नहीं कर रहे हैं। बातचीत ख़त्म होने पर हम मीडिया को वक्तव्य जारी करेंगे।'
फैक्टरी कामगारों और मांड्या के श्रम विभाग के अधिकारी, दोनों ने ही कहा कि बिना पहले बताये ही छंटनी कर दी गयी। श्रम कार्यकर्ता कहते हैं कि छंटनी Industrial Disputes Act 1947 की धारा 25 M के खिलाफ है। काम से निकाले जाने के पहले तक श्रम संगठनों ने राज्य श्रम विभाग को 1 जून को यह सूचित करते हुए पत्र लिखे थे कि गोकलदास कंपनी बिना कारण बताये फैक्टरी से मशीनें हटा रही है। कर्नाटक श्रम विभाग के अधिकारियों ने 'द न्यूज़ मिनट' को बताया कि गोकलदास के अधिकारियों ने ऑर्डर में कमी का कारण कोरोनावायरस को बताया।
लक्षम्मा बताती है कि बंद हो गई फ़ैक्टरी में अक्सर रेडिमेड कपड़ों की दुनिया में जाना-माना नाम 'एच एंड एम' (H&M) के लिए कपड़े बनाये जाते थे। श्रम कार्यकर्ताओं ने बताया कि वर्ष 2019 में 'यूरो क्लॉथिंग II' की फ़ैक्टरी में ज़्यादातर उत्पादन एच एंड एम के लिए ही था।
एच एंड एम के अधिकारियों ने बताया कि वे चीज़ों पर निगाह रखे हुए हैं और जानते हैं कि खुदरा व्यापारी मामले को सुलझाने के लिए कामगारों और आपूर्ति कर्ता दोनों से ही संपर्क बनाये हुए है। इलाके में 20 फैक्टरियां हैं लेकिन श्रीरंगपट्टन की फैक्टरी अकेली इकाई है जिसे बंद किया गया। 'एच एंड एम' का कहना था कि कामगारों और फ़ैक्टरी अधिकारियों के बीच संघर्ष भारतीय क़ानूनों की अलग-अलग ढंग से व्याख्या करने के कारण था।
'एच एंड एम' के प्रवक्ता ने कहा, 'आपूर्तिकर्ता और मज़दूर संगठन के बीच संघर्ष राष्ट्रीय क़ानूनों की अलग-अलग व्याख्या करने की वजह से है। हम दोनों ही पक्षों के साथ संवाद कर रहे हैं ताकि समस्या का शांतिपूर्ण निदान हो सके और एक ऐसा समझौता हो सके जो दोनों पक्षों को मंज़ूर हो। श्रम कार्यकर्ताओं ने अपने कामगारों की ज़िम्मेदारी नहीं लेने और खामोश रहने के आरोप 'एच एंड एम' पर लगाए हैं।
न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव ऑफ इंडिया (NTUI) के महासचिव गौतम मोदी ने कहा, 'क्या 'एच एंड एम' स्वीकार कर रही है कि उन कामगारों के प्रति उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है जो उसके लिए कपडे तैयार करते हैं ? 'एच एंड एम' संघर्ष को राष्ट्रीय क़ानूनों की अलग-अलग व्याख्या कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकती और आपूर्तिकर्ताओं का बहाना बता कर उनके पीछे छिप नहीं सकती है। इसे अपनी आपूर्ति कड़ी (Supply Chain) में कामगारों के अधिकारों और उनके शोषण की ज़िम्मेदारी उठानी ही होगी। एक क़ानूनी प्रक्रिया है जिसे सरकार को पूरा करना होता है। कंपनी(गोकुलदास) को मज़दूरी देनी होगी और फैक्ट्री को दुबारा खोलना होगा।'
बातचीत के बारे में जानकारी रखने वाले एक कामगार ने बताया कि गोकलदास इस संभावना को तलाश रही है कि मांड्या इकाई काम कर रहे कामगारों को पड़ोस के मैंगलुरु स्थित फैक्ट्री में भेज दे। एक कामगार ने बताया, 'हमको कहा गया कि जो लोग यहां से दूसरी फ़ैक्टरी में नहीं जाना चाहते उन्हें निकाले जाने के बदले मुआवजा दे दिया जायेगा और वे अपने घर जा सकते हैं। लेकिन कामगार इस पर तैयार नहीं हुए।' इसी कामगार ने कहा कि कामगार संगठन की गतिविधियों से जुड़े कामगारों को दण्डित करने की नीयत से ही श्रीरंगपटन की फ़ैक्टरी इकाई को बंद किया गया। कामगार ने बताया- 'इस फ़ैक्टरी में बहुत सारे कामगार संगठन के सदस्य हैं और करोना महामारी के शुरू होने के पहले से ही हम अपने भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।'
2018 में कर्नाटक सरकार ने अधिसूचना जारी की थी जिसके तहत राज्य में हुनरमंद और गैर-हुनरमंद कामगारों की मजदूरी में 35 से 40 फीसदी बढ़ोत्तरी की अनुशंसा की गयी थी लेकिन बाद में अधिसूचना वापिस ले ली गयी और सूचना के अधिकार (RTI) के दस्तावेज़ों से पता चला कि जब इसे वापस लिया गया उसी समय तीन कंपनियों सरकार से मुलाकात कर कहा था कि कपड़ा उघोग में 'मंदी' के चलते अधिसूचना बदली जाये। ये तीन कंपनियां थीं- शाही एक्सपोर्ट्स (Shahi Exports), गोकलदास एक्सपोर्ट्स (Gokaldas Exports) और हिमनाथ सिंहका सीड लिमिटेड (Himmath Singhka Seide Limited). राज्य के श्रम विभाग को लिखे गए खतों में से एक खत में सुझाव दिया गया है कि सरकार पर दबाव डालने की नीयत से फ़ैक्टरियों को पड़ोसी राज्यों में स्थांतरित कर दिया जाएगा।
एक ऐसे उद्योग में जहां कामगारों को कम मजदूरी मिलती है और बदतर हालात में काम करना पड़ता है, संगठन की गतिविधियों में अड़ंगा डालना कोई नई बात नहीं है। यह दशकों से चली आ रही है। श्रम कार्यकर्ता कहते हैं कि The Minimum Wages Act, 1948 आदेश देता है कि राज्य सरकारें हर तीन से पांच वर्षों में मजदूरी पर पुनर्विचार करेंगी लेकिन कर्नाटक के कपड़ा उद्योग के कामगार कहते हैं कि 40 सैलून में केवल 5 बार ही उनकी मजदूरी बढ़ाई गयी है।
कोरोनावायरस महामारी ने कामगारों के संघर्षों को तेज कर दिया है। हाल ही में कर्नाटक सरकार को एक अधिसूचना वापिस लेनी पडी जिसमें राज्य में फैक्टरी कामगारों के काम करने के अधिकतम घंटे 8 से बढ़ा कर 10 प्रति दिन और 48 से बढ़ा कर 60 प्रति हफ्ते कर दिए गए।
राज्य का श्रम विभाग मांड्या में प्रदर्शन कर रहे कामगारों और गोकुलदास के अधिकारियों के बीच समझौते में मध्यस्थता कर रहा है। श्रम विभाग के सूत्रों ने 'द न्यूज मिनट' को बताया है कि गोकलदास ने एक और हफ्ते का समय मांगा था लेकिन निकाले जाने की घोषणा किये जाने और उसके बाद के प्रदर्शनों से अब तक तीन हफ्ते गुज़र चुके हैं।
लक्षम्मा कहती है, 'हम हर सुबह यहां (फ़ैक्टरी में) आएंगे और हर शाम चले जायेंगे (प्रदर्शन करके)। अभी तक 19 दिन हो चुके हैं और हम तब तक ऐसा करते रहेंगे जब तक हमारी बकाया मजदूरी नहीं मिल जाती और फैक्टरी दोबारा नहीं खुल जाती।'
('द न्यूज मिनट' से साभार)