कोयले के बाद अब रेलवे के निजीकरण की दिशा में मोदी सरकार ने बढाया कदम, कहीं उपेक्षित न हो जाएं गरीब

मोदी सरकार बार-बार के इनकार के बाद अब रेलवे के निजीकरण की ओर औपचारिक रूप से आगे बढ गई है। इसके अच्छे व बुरे परिणाम आने वाले सालों में ही पता चलेंगे लेकिन सस्ती यात्रा करने से गरीब कहीं वंचित न हो जाएं, यह चिंता का बड़ा बिंदु है...

Update: 2020-07-02 05:12 GMT

जनज्वार, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कई प्रमुख सेक्टरों के निजीकरण की दिशा में कदम बढाया है और इसमें सबसे अधिक रोजगार देने वाले व हर एक आम भारतीय की जिंदगी से सीधे जुड़े रेलवे का नाम भी शामिल हो गया। रेल मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को औपचारिक मंजूरी दे दी है कि 109 रूटों पर 151 निजी ट्रेनों का परिचालन होगा। यह फैसला रेलवे ने बुधवार (एक जुलाई 2020) को लिया।

इसके लिए रेलवे ने पात्रता अनुरोध भी आमंत्रित कर दिया है। हालांकि रेलवे ने तय किया है कि इन ट्रेनों का परिचालन भारतीय रेल के चालक व गार्ड ही करेंगे। निजी इकाइयों द्वारा संचालित ये ट्रेनें समय पर अपने गंतव्य तक पहुंचने के प्रमुख मानक को पूरा करेंगी। रेलवे ने कहा है कि इससे निजी क्षेत्र का 30 हजार करोड़ रुपये निवेश होने की उम्मीद है। रेलवे के नेटवर्क पर प्राइवेट यात्री ट्रेनों को चलाने का यह पहला प्रयास है।

कुछ मार्गाें पर निजी इकाइयों को ट्रेन परिचालन की मंजूरी देने की प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होगी। पहले निजी बोलीदाता की पात्रता तय होगी और फिर उसके बाद राजस्व एवं मार्गाें की प्रक्रिया के बारे में निर्णय लिया जाएगा।

रेलवे के अनुसार, इस परियोजना के तहत चलने वाली ट्रेनों में 16 डिब्बे होंगे और उनका डिजाइन ऐसा होगा कि वे 160 किमी की रफ्तार से चल सकें। इनमें अधिकतर ट्रेनों का निर्माण मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत होगा और निजी सेक्टर उनके वित्त पोषण, खरीद, रख रखाव एवं परिचालन के लिए जिम्मेवार होगा।

रेलवे के अनुसार, परियोजना के लिए छूट 35 साल के लिए होगी। निजी इकाई को भारतीय रेलवे को ढुलाई शुल्क, उर्जा शुल्क देना होगा। साथ ही उन्हें निर्धारित सकल राजस्व में हिस्सेदारी देनी होगी।

इन ट्रेनों में वैश्विक सुविधा देने की बात कही गई है। निजी क्षेत्र को किराया तय करने का अधिकार होगा और बिस्तर, खानपान, सफाई के लिए वह जिम्मेवार होगा।

किराया तय करने के निजी क्षेत्र के अधिकार का गरीबों पर क्या असर होगा यह देखना होगा, क्योंकि अभी भारतीय रेलवे लोक कल्याणकारी गणराज्य का एक ऐसा उपक्रम है जिसमें निर्णय गरीबों व मध्यमवर्गीय लोगों को ध्यान में लेकर लिया जाता है ताकि यह उनके लिए अधिक वहनीय हो और अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े।

इससे पहले पिछले महीने मोदी सरकार ने कोयला खदानों के निजीकरण के लिए प्राइवेट कंपनियों की बोली आमंत्रित की थी, जिसका कोयला संघों व सिविल सोसाइटी द्वारा विरोध किया जा रहा है। मोदी सरकार के उस फैसले का झारखंड व पश्चिम बंगाल ने भी विरोध किया है और छत्तीसगढ ने भी संरक्षित क्षेत्र में कोयला खनन नहीं करने की मांग की है।

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