अब अडानी-अम्बानी जैसा एक ही पूंजीपति खरीद सकेगा देश के सभी हवाई अड्डे !

साल 2018 में सरकार ने कंपनियों को सभी छह हवाईअड्डों के लिए बोली की अनुमति दी थी, अदाणी एंटरप्राइजेज ने अहमदाबाद, जयपुर, मंगलूरु, तिरुवनंतपुरम, गुवाहाटी के लिए सर्वाधिक बोली लगाई थी, फिर जीवीके समूह से मुंबई हवाईअड्डे का भी अधिग्रहण कर लिया था....

Update: 2020-12-12 07:26 GMT

जनज्वार। देश में अभी निजीकरण का दौर चल रहा है। सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। रेलवे के स्टेशन और हवाई अड्डों की भी बोली लग रही है और इन्हें उद्योगपतियों द्वारा लिया जा रहा है। विपक्षी दल और इन प्रतिष्ठानों मे काम करने वाले इंप्लाइज यूनियन व मजदूर संगठन जहां निजीकरण की इस प्रक्रिया को संस्थान के हित में न होने के तर्क देकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं निजीकरण के पक्ष में सरकार के अपने तर्क हैं।

इस बीच विपक्ष लगातार एक सवाल उठा रहा है कि निजीकरण की इस प्रक्रिया में ज्यादातर ठेके अंबानी-अडानी जैसे चुनिंदा उद्योग समूहों को ही क्यों मिल जा रहे हैं तो सरकार का कहना है कि खुली बोली में जो ज्यादा रकम की बोली लगाता है, ठेका उसे ही मिलता है, यह सामान्य प्रक्रिया है।

इस बीच समाचार पत्र 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। अखबार ने लिखा है कि हवाईअड्डों के लिए बोली लगाने के लिए अब किसी निजी कंपनी के लिए परियोजनाओं की संख्या की पाबंदी संभवतः खत्म कर दी जाएगी। यानि कोई कंपनी या उद्योग समूह एक साथ हर उस परियोजना के लिए बोली लगा सकता है, जिसके लिए बिड आमंत्रित की गई हो।

इसे सरल शब्दों में यूं समझा जा सकता है कि सरकार ने अगर छह हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए बोली आमंत्रित की हो तो कोई एक उद्योग समूह इन सभी हवाई अड्डों को लेने के लिए बोली लगा सकता है और अगर उसकी बोली अन्य बोली लगाने वाले उद्योग समूहों की अपेक्षा ऊंची हुई तो वह सभी छह हवाई अड्डों को ले सकता है।

हालांकि निजीकरण की प्रक्रिया के शुरुआती दौर में ऐसा नियम नहीं था। 'बिजनेस स्टैंडर्ड' लिखता है कि पहले हर उद्योग समूह के लिए एक बिड में दो हवाई अड्डों के लिए ही बोली लगाने की सीमा तय की गई थी। अर्थात अगर छह हवाई अड्डों के लिए बिड की गई है तो कोई भी उद्योग समूह इनमें से अपनी पसंद के दो हवाई अड्डों को लेने के लिए ही बोली लगा सकता था।

इस पाबंदी के पीछे सोच यह थी कि देश के हवाई अड्डों पर किसी एक उद्योग समूह का एकाधिकार न हो जाय। चूंकि एकाधिकार भविष्य की मनमानी की नींव होता है। ऐसे में सरकार द्वारा उस पाबंदी को अगर हटाने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हों तो यह आशंका सामने आ जाती है कि देश के हवाई अड्डों पर किसी एक उद्योग समूह का एकाधिकार न हो जाय।

बिजनेस स्टैंडर्ड लिखता है कि उन्हें ऐसी खबर मिली है कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति (पीपीपीएसी) ने इस सुझाव के खिलाफ अपनी राय दी है। पीपीपीएसी पीपीपी परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा नामित समिति है।

विपक्षी दल कांग्रेस लगातार यह आरोप लगाती रही है कि केंद्र की मोदी सरकार कोई भी नियम अपने पसंदीदा उद्योग समूहों के हितों को ध्यान में रखकर बना रही है। हालांकि विपक्षी दल सरकार की आलोचना करते ही रहते हैं, बीजेपी भी जब विपक्ष में थी और कांग्रेस सत्ता में थी तो बीजेपी भी हर मुद्दे पर कांग्रेस को ऐसे ही घेरने की कोशिश करती थी। लेकिन हवाई अड्डों की पिछली बोलियों में एक ही उद्योग समूह यानि अडानी ग्रुप ने एक साथ छह हवाई अड्डों को ले लिया था।

वर्ष 2018 में निजीकरण प्रक्रिया के दौरान सरकार ने कंपनियों को सभी छह हवाईअड्डों के लिए बोली लगाने की अनुमति दी थी। इनमें गौतम अदाणी एंटरप्राइजेज ने छह हवाईअड्डों-लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलूरु, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी- के लिए सर्वाधिक बोली लगाई थी। अदाणी एंटरप्राइज ने सितंबर में जीवीके समूह से मुंबई हवाईअड्डे का भी अधिग्रहण कर लिया था।

उस वक्त भी कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सरकार द्वारा खासकर अडानी समूह को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में ऐसा बदलाव किया गया था। वैसे इस फैसले के पक्ष में पीपीपीएसी का तर्क भी कम दिलचस्प नहीं। पीपीपीएसी ने तर्क दिया है कि आगे जिन हवाईअड्डों का निजीकरण होना है, वे तुलनात्मक रूप से छोटे हैं और वहां यात्रियों का आवागमन कम संख्या में होता है।

पीपीपीएसी के अनुसार अगर कोई एक कंपनी भी सभी छह हवाईअड्डों के परिचालन के लिए सफल बोलीदाता रहती है तो इससे एकाधिकार स्थापित होने जैसी नौबत नहीं आएगी।

खबर है कि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण छह हवाईअड्डों-वाराणसी, अमृतसर, भुवनेश्वर, रांची, त्रिची, इंदौर और रायपुर- को निजी हाथों में देने के लिए जनवरी के दूसरे सप्ताह में बिड आमंत्रित कर सकता है। गौरतलब है कि सरकार निजीकरण योजना के तहत हवाईअड्डों के प्रबंधन का अधिकार 50 वर्षों के लिए निजी इकाइयों को दे रही है।

इस व्यवस्था के तहत सरकार और कंपनियां राजस्व साझा करेंगी। ऐसी बोलियां प्रति यात्री शुल्क के आधार पर निर्धारित की जातीं हैं और जो उद्योग समूह सर्वाधिक बोली लगाती है, परियोजना उसको मिल जाता है।

इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'अगर हम इन छह हवाईअड्डों पर इस वर्ष कुल यात्रियों के आवगतन की तुलना देश के किसी बड़े हवाईअड्डे जैसे दिल्ली या मुंबई से करें तो यह संख्या इनमें किसी एक हवाईअड्डे से काफी कम होगी। व्यावहारिक तौर पर किसी कंपनी के एकाधिकार स्थापित होने की आशंका नहीं रह जाती है।'

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