PMO तक सीमित हो गई नीति बनाने की सारी शक्ति, विरोध दर्ज कराने को उत्सुक नहीं जनता- रघुराम राजन
रघुराम राजन ने कहा कि नीति बनाने की सारी शक्ति पीएमओ तक सीमित हो गई है, जनता विरोध दर्ज कराने के लिए उत्सुक नहीं है, क्योंकि विरोध का मतलब राष्ट्रद्रोह हो गया है....
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और जाने-माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन का कहना है कि आज हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति ऐसी है, मानो एक बीमार व्यक्ति का एक्सीडेंट हो गया हो। इसके अलावा हम कुछ नहीं जानते।यहां भारतीय अर्थव्यवस्था बीमार व्यक्ति है जिसका कोरोना से एक्सीडेंट हुआ है। हमें सबसे पहले एक्सीडेंट के शॉक से मरीज को स्थिर करना चाहिए। अर्थव्यवस्था के लिए तीन तात्कालिक कदम उठाने की जरूरी हैं। पहला -अर्थव्यवस्था में व्यापार का माहौल का मूल्यांकन कर उसे बेहतर बनाना। खासतौर पर जब हम जानते हैं कि कॉर्पोरेट टैक्स कम करने के बाद भी व्यापार के माहौल में कोई फर्क नहीं आया। दूसरा-कर्ज की व्यवस्था की जाए, ताकि रोजगार पैदा करने वाले छोटे से लेकर बड़े उद्योग तक को कर्ज सुलभ हो। तीसरा - एक्सपोर्ट को पुनर्जीवित करने में सक्षम क्षेत्रों पर तत्काल ध्यान दें, ताकि विदेश मुद्रा की आवक बनी रहे।
एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में राजन ने कहा कि एक्सपोर्ट और कर्ज की व्यवस्था सुधरने पर व्यापारिक माहौल अपने आप बेहतर होने लगेगा। इसके साथ-साथ मध्यम अवधि को ध्यान में रखकर कम खर्च वाले सुधारों की जरूरत है। जैसे-जमीन, खेत और श्रम सुधार। हमें पता है कि हमारे देश में खेती करने वाले अधिकतर लोगों के पास बहुत थोड़ी जमीन है। उन्हें सुरक्षित तरकी से जमीन लीज पर देने का मौका मिले तो वह इससे भी मुनापा कमा सकते हैं और साथ-साथ शहरों में काम कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं हो कि आप कामगारों की सुरक्षा खत्म कर दें, बल्कि काम के दौरन कामगार को कुछ नया सीखने का मौका मिलता रहे और काम की अवधि के अनुसार उनकी सुरक्षा बढ़ती रहे।
उन्होंने आगे कहा कि कंपनियों को भी नौकरी निकालने की सहूलियत होनी चाहिए। लेकिन ऐसा न हो कि अनुभवी लोगों को निकालकर नए लोग भर्ती कर लिए जाएं। अगर निकालने की जरूरत पड़े तो कंपनियां पहले नए लोगों को निकालें ताकि अनुभव उनके काम आए। ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए भूमि सुधार जरूरी है। अगर मुझे फैक्ट्री लगानी हो तो उसके लिए जमीन चाहिए। जमीन मिलने में पर्यावरण कानून आड़े नहीं आना चाहिए। उल्टे पर्यावरण को बचाते हुए जमीन का इस्तेमाल फैक्ट्री के लिए कैसे हो, इसकी व्यवस्था करना भूमि सुधार का आधार बन सकता है।
पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने आगे कहा कि आज की परिस्थिति में हम संकुचित होकर सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को नहीं देख सकते। पश्चिम की राय ऐसी बन गई है कि भारत लोकतंत्र के मूल्यों से विमुख हो रहा है। भारत में भी चिंतन होना चाहिए कि क्या लोकतंत्र सिर्फ वोट देने और लेने तक सीमित रहना चाहिए। दूसरी तरफ मोदी सरकार को बधाई देनी पड़ेगी कि उन्होने यह सुनिश्चित किया है कि संसाधनों का बंटवारा पहले से बेहतर हो रहा है। लेकिन नए संसाधन कैसे जुटाए जाएं ताकि बंटवारा और बेहतर हो सके, इस पर बहुत काम करने की जरूरत है। ऐसे ही कामों के लिए स्वतंत्र और सशक्त लोकतंत्र अनिवार्य है।
उन्होंने कहा कि आज सरकार को खर्च करने से डरने की जरूरत नहीं है। जनधन, आधार और मोबाइल बैंकिंग जैसी व्यवस्था मोदी सरकार ने अच्छी बनाई है और इसका इस्तेमाल करने की जरूरत है। लेकिन खर्च रोककर इनकी उपयोगिता नहीं बन पाएगी और खर्च करने से पहले यह भी तय करना होगा कि खर्च वहां पहुंचे जहां जरूरी हो, वहां नहीं जहां ताकतवर हों। ऐसे आमूलचूल बदलाव के लिए महामारी का समय सबसे उपयुक्त होता है। अब आगे यह समय ही बताएगा कि भारत इस दिशा में किस करवट बैठता है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने सबसे अच्छा काम वितरण के क्षेत्र में किया जबकि रोजगार पैदा करने में वह बुरी तरह फेल हुई है। नीति बनाने की सारी शक्ति पीएमओ तक सीमित हो गई है। जनता विरोध दर्ज कराने के लिए उत्सुक नहीं है, क्योंकि विरोध का मतलब राष्ट्रद्रोह हो गया है। ये अर्थव्यवस्था के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। अर्थव्यवस्था टीक करने के लिए सरकार पैसे के साथ पॉवर को भी वितरित करे।