दर्जन भर राज्यों में सैलरी का भारी संकट, मोदी सरकार नहीं दे रही राज्यों का बकाया टैक्स
कोरोना संकट शुरू होने के बाद अप्रैल से ही राज्यों को जीएसटी में हिस्सेदारी नहीं मिल पा रही है। इससे उन्हें वेतन देने सहित अन्य खर्च में दिक्कतें आ रही हैं। जीएसटी काउंसिल की आज की बैठक में इस मुद्दे को उठाएंगे...
जनज्वार। कोरोना संकट ने स्वास्थ्य के साथ आर्थिक चुनौतियां बढा दी हैं। देश के करीब एक दर्जन राज्य का कर संग्रह गड़बड़ा गया है और इस कारण वे अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में गुरुवार को हो रही जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्यों के वित्तमंत्री इस मुद्दे को जोरदार ढंग से उठा सकते हैं। जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के पास कर संग्रह का सीधा विकल्प कम बचा है और वे केंद्र से उसमें हिस्सेदारी पर निर्भर करते हैं, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा उसका समय पर भुगतान नहीं किए जाने से उनकी परेशानियां बढ गई हैं। राज्यों ने इस संबंध में केंद्र को एक संदेश भेज कर भी अपनी परेशानियां बतायी हैं।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, त्रिपुरा ऐसे राज्य हैं जो देर से अपने कर्मचारियों को वेतन दे पा रहे हैं। उत्तरप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्यप्रदेश ऐसे राज्य हैं जो अपने यहां के विश्वविद्यालयों को विलंब से सैलरी का भुगतान कर रहे हैं। ऐसे में ज्यादातर राज्य आज अपने जीएसटी हिस्सेदारी के भुगतान की मांग करेंगे जो अप्रैल से ही रुका हुआ है।
कुछ भाजपा शासित राज्यों सहित विभिन्न राज्यों में यह आम सहमति है कि उन्हें जीएसटी काउंसिल की बैठक में बिना शर्त राजकोषीय घाटा बढाने की अनुमति मिले और साथ ही जीएसटी का बकाया भुगतान भी मिले।
वित्तीय संकट के कारण राज्य नए खर्च नहीं बढा पा रहे हैं, जबकि पिछले कुछ सालों में राज्य केंद्र से मिली राशि से करीब डेढ गुणा तक पूंजीगत खर्च बढाते रहे हैं। यह संकट ऐसे समय में आया है जब राज्यों पर कोरोना महामारी की वजह से हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढाने का दबाव है। मौजूदा दौर में राज्यों की जीएसटी से होने वाली आय तो घटी ही है, साथ ही उत्पाद शुल्क व स्टांप शुल्क से राजस्व संग्रह में भी कमी आयी है।
स्थिति को देखते हुए केंद्र ने राज्यों की सशर्त उधार लेने की सीमा बढा दी है और लेकिन यह कदम इसलिए कारगर नहीं हो रहा है, क्योंकि यह अर्हता आठ राज्य ही रखते हैं।
जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के पास सीधे तौर पर कर संग्रह का विकल्प कम बचा है। वे पेट्रोलियम, आबाकारी और स्टांप ड्यूटी से ही सीधे तौर पर कर संग्रह कर पाते हैं। अन्य करों से होने वाली आय के लिए वे जीएसटी हिस्सेदारी पर निर्भर हैं।
जीएसटी में राज्यों के कर राजस्व की 42 प्रतिशत हिस्सेदारी है और राज्यों के कुल राजस्व का लगभग 60 प्रतिशत जीएसटी से आता है।
राज्यों के कर संग्रह में आयी गिरावट से सबसे ज्यादा शिक्षकों व हेल्थ कर्मियों के वेतन भुगतान में आ रही है। जबकि हेल्थ कर्मी कोरोना वारियर्स के रूप में इस समय अपनी सेवा दे रहे हैं।