PM केयर फंड को राष्ट्रीय आपदा कोष में ट्रांसफर क्यों नहीं कर सकती सरकार, सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से किया गया है अनुरोध कि मोदी सरकार को यह भी निर्देश दिया जाय वह कोविड-19 की आपदा से लड़ने के लिए डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा 46 के तहत नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट फंड का भी इस्तेमाल करे...

Update: 2020-06-19 05:04 GMT

जनज्वार पीएम केयर्स फंड को नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फंड में ट्रांसफर करने संबन्धी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

जस्टिस अशोक भूषण, एसके कौल और एमआर शाह की पीठ ने यह नोटिस जारी करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि चार सप्ताह के अंदर जबाबी हलफनामा दायर करें।

लाइव लॉ में प्रकाशित खबर के मुताबिक सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) की ओर से यह याचिका अधिवक्ता प्रशांत किशोर ने दाखिल की थी। याचिका में अनुरोध किया गया था कि डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट 2005 के सेक्शन 11 को सेक्शन 10 के साथ जोड़ते हुए वर्तमान महामारी से लड़ने के लिए इस एक्ट के सेक्शन 12 के तहत राहत के न्यूनतम मानक तय किए जाएं।

याचिका में अनुरोध किया गया है 'केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया जाय कि कोविड-19 की आपदा से लड़ने के लिए डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट की धारा 46 के तहत नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट फंड का भी इस्तेमाल किया जाय। व्यक्तिगत एवं इंस्टिट्यूशनल दोनों रूप से प्राप्त राशि/अनुदानों को डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट की धारा 46(1) बी के तहत पीएम केयर्स फंड की जगह डिजास्टर मैनेजमेंट फंड में जमा किया जाय तथा अबतक प्राप्त अनुदानों को एनडीआरएफ में ट्रांसफर कर दिया जाय।'

याचिका में कहा गया है कि लगातार उभरते जा रहे हेल्थ क्राइसेस के बावजूद एनडीआरएफ के फंड का उपयोग नहीं किया जा रहा। पीएम केयर्स फंड की स्थापना डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट के प्रतिकूल है। पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता का अभाव है, क्योंकि यह कैग के अंकेक्षण दायरे में नहीं आता और 'पब्लिक ऑथोरिटी' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आ पाने के कारण आरटीआई के दायरे से भी बाहर हो जाता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे आज CPIL की ओर से कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा कि यह याचिका विरोधात्मक नहीं है, यह सरकार के विरुद्ध भी नहीं है, बल्कि हम उनके सहयोग की इच्छा रखते हैं।

दवे ने कहा 'सरकार द्वारा जनमत की पूर्णतः अनदेखी की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।'

जस्टिस भूषण ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के केस में डीएमए ऐक्ट की धारा 12 पर पूर्व में बहस हो चुकी है और इसे सो-मोटो के तहत लिया जा चुका है। अब सिर्फ पीएम केयर्स फंड का मामला बच जाता है। इसे उस सो-मोटो केस के तहत टैग किया जा सकता है।

इसपर अधिवक्ता दवे की दलील थी कि इस याचिका को अलग से सुनने की आवश्यकता है और इसे सो- मोटो केस के साथ जोड़ा नहीं जा सकता।जस्टिस कौल ने इस स्टेज पर कोई अंतरिम आदेश पारित करने में कठिनाई जताई, उन्होंने कहा कि बेंच नोटिस जारी करने पर सहमत है।

इस मौके पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने नोटिस जारी करने पर आपत्ति जताई और कहा 'याचिका की प्रति उपलब्ध कराई जाय। हम इसपर कार्य करेंगे। कृपया नोटिस जारी करने से परहेज करें।'

Tags:    

Similar News