दलितों को पानी है नौकरी तो इंटरव्यू में छुपा लें अपनी जाति, केंद्र करने जा रहा सिफारिश
सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में प्री और मेन्स परीक्षा के दौरान उपनाम गुप्त रहता है, लेकिन इंटरव्यू के दौरान ये पता चल जाता है जिससे दलितों से साथ होता है भारी भेदभाव....
जनज्वार। उद्योग जगत के संगठन दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री सामाजिक संरचना के आधार पर एक ऐसी व्यवस्था की सिफारिश कर रहा है जिसमें लोगों के उपनाम को हटाने का सुझाव दिया जाएगा। इसके लिए उसने अपने उस रिसर्च का रेफरेंस दिया है, जिसमें उपनाम लिखे होने के चलते सिविल सेवा में ज्यादातर दलित उम्मीदवारों के साथ इंटरव्यू के दौरान भेदभाव होता है।
हिंदुस्तान में प्रकाशित खबर के मुताबिक सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के निर्देश पर ये अध्ययन कराया जा रहा है। इस मामले से जुड़े अधिकारी का कहना है कि इस अध्ययन के आजादी के बाद हुए विकास के कामकाज में दलितों के प्रतिनिधित्व को लेकर आंकडे जुटाए जा रहे हैं।
रिपोर्ट तैयार करने वाले संगठन दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के रिसर्च विभाग से जुड़े पीएसएन मूर्ति ने मीडिया को बताया है कि फिलहाल रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है और जल्द ही सरकार के साथ ही राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग को भी सौंपी जाएगी। उनके मुताबिक भारत में 90 फीसदी उपनाम ऐसे होते हैं, जिनसे जाति और धर्म उजागर हो जाते हैं।
संगठन का दावा है कि रिसर्च के दौरान पता चला है कि यूपीएससी की तरफ से आयोजित कराई जाने वाली परीक्षाओं में जिन उम्मीदवारों ने जाति और धर्म से जुड़ी जानकारियां छुपा रखी थीं, उनकी संख्या उन लोगों के बनिस्पत ज्यादा थी, जिन्होंने जाति लिखी थी। गौरतलब है कि सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में प्री और मेन्स परीक्षा के दौरान उपनाम गुप्त रहता है, लेकिन इंटरव्यू के दौरान ये पता चल जाता है जिससे दलितों से साथ भेदभाव की खबरें आती रहती हैं। इस दावे का सच इस बात से भी उजागर होता है कि सिविल सेवाओं के तमाम अधिकारी दलित होने के नाम पर उत्पीड़न के बारे में बताते रहते हैं।
कांग्रेस नेता उदित राज पहले भारतीय राजस्व सेवा में बड़े अधिकारी थे। उदित राज के अनुसार किसी दलित व्यक्ति का सरकारी सेवाओं में होना एक बड़ी सजा से कम नहीं है, यहाँ हरेक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है और सुनिश्चित किया जाता है कि कोई दलित किसी भी हालत में सर्वोच्च पद तक नहीं पहुँच पाए। वर्ष 2015 में प्रशासनिक सेवाओं में टॉप आकर टीना डाबी ने इतिहास रचा था, क्योंकि वे ऐसा कर पाने वाली पहली दलित थीं। उन्होंने भी अनेक मौकों पर प्रशासनिक सेवाओं में भेदभाव पर विस्तार से चर्चा की है।
पहले दलित अधिकारी का दावा, सरकारी सेवाओं में दलितों का होना बड़ी सजा-हर स्तर पर होता है भेदभाव
उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रह चुके एसआर दारापुरी के अनुसार प्रशासनिक सेवाओं में दलितों से होने वाले भेदभाव का कहीं अंत नहीं होता। साक्षात्कार तक पहुँचाने वाले दलित वर्ग से आने वाले उम्मीदवार ग्रामीण पृष्ठभूमि से और अपने समाज से ऐसा करने वाले पहले होते हैं, न तो उनके घर में अंग्रेजी बोली जाती है और न ही उनके दोस्त अंग्रेजी वाले होते हैं, इसलिए ऐसे उम्मीदवार अंग्रेजी बोलते समय सहज नहीं रहते।
रिपोर्ट तैयार करने वाले संगठन दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के रिसर्च विभाग से जुड़े पीएसएन मूर्ति का दावा है कि भारत सरकार के 89 सचिवों में से मात्र एक दलित है। ऐसे में 15 फीसदी आरक्षण पर भी दलितों के लिए बड़े पदों पर पहुंचने की परीक्षा पास करना बेहद कठिन होता है।
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और विदेश सेवाओं के लिए लोगों को चुनने वाली परीक्षाओं के आंकड़े बताते हैं कि 11 लाख में से सिर्फ 180 दलित पास हो पाएं हैं ये 0.01 प्रतिशत सफलता का पैमाना है जो बेहद कम है। इन प्रमुख परीक्षाओं में सफलता के साथ साथ देश की कुल जमीन में और बाकी नौकरियों में दलितों की हिस्सेदारी को लेकर भी शोध चल रहा है।