दिल्ली हिंसा की जांच प्रक्रिया पर 9 रिटायर्ड IPS ने उठाए सवाल, कहा-निष्पक्षतापूर्वक हो फिर से जांच

सभी रिटायर्ड आईपीएस उस बड़े कन्स्टिट्यूशनल कौंडक्ट ग्रुप (CCG) के हिस्सा हैं, जो विभिन्न सेवाओं से सेवानिवृत्त हुए अधिकारियों का समूह है...

Update: 2020-09-15 09:24 GMT

फरवरी में दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी

(File photo)

जनज्वारदिल्ली हिंसा की जांच को लेकर रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर जुलियो रिबेरो द्वारा दिल्ली पुलिस कमिश्नर को लिखी खुली चिट्ठी लिखे जाने के बाद अब देश के 9 अन्य रिटायर्ड आईपीएस ने भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर को खुली चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में दिल्ली में फरवरी 2020 में हुई हिंसा की जांच पर तीखे सवाल उठाते हुए कहा गया है कि ऐसे जांच से लोगों का लोकतंत्र, न्याय, संविधान और निष्पक्षता पर से विश्वास उठ सकता है।

पत्र में कहा गया है कि इस पत्र पर दस्तखत करने वाले सभी लोग रिटायर्ड आईपीएस पदाधिकारी हैं और ये लोग उस बड़े कन्स्टिट्यूशनल कौंडक्ट ग्रुप(CCG) के हिस्सा हैं, जो विभिन्न सेवाओं से सेवानिवृत्त हुए अधिकारियों का समूह है। पत्र रिटायर्ड आईपीएस शफी आलम, के स्लिम अली, मोहिंद्रपाल औलख, ए एस दुलत, आलोक बी लाल, अमिताभ माथुर, अविनाश मोहंती, पीजीजे नमपुथिरि तथा ए के सुमन्ता द्वारा लिखा गया बताया जा रहा है।


पत्र में दिल्ली पुलिस कमिश्नर को संबोधित करते हुए लिखा गया है 'रिटायर्ड आईपीएस जुलियस रिबेरो द्वारा पूर्व में लिखे उस पत्र की हम अनुशंसा करते हैं, जो उन्होंने आपको दिल्ली हिंसा के त्रुटिपूर्ण जांच के संबन्ध में लिखी थी। हम इसमें जोड़ना चाहते हैं कि दिल्ली हिंसा की जो जांच रिपोर्ट और चालान कोर्ट को सौंपी गई है, वह पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित है और यह भारतीय पुलिस के लिए एक दुःख भरा दिन है।'

'यह उन सभी कार्यरत और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों के लिए पीड़ादायक है, जो कानून और संविधान के न्याय पर यकीन करते हैं,' पत्र में आगे लिखा गया है।

पत्र में कहा गया है कि इस बात से उन्हें दुःख पहुंचा है कि दिल्ली पुलिस के एक विशेष आयुक्त द्वारा इस बात को लेकर जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई कि हिन्दू पक्ष के कुछ दोषियों पर कार्रवाई से हिंदुओं में नाराजगी हो सकती है। इससे यह अंदेशा पैदा होता है कि बहुसंख्यक पक्ष के कुछ दोषी यूं ही छूट जाएंगे।

पत्र में जांच प्रक्रिया पर आरोप लगाते हुए लिखा गया है 'हमें इस बात से ज्यादा तकलीफ है कि इसमें उनलोगों के निहितार्थ निकाले गए, जिनलोगों ने संविधान प्रदत्त अपने मूल अधिकारों का प्रयोग करते हुए सीएए के विरोध में बोला या शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। बिना पुख्ता सबूत के जांच और डिस्क्लोजर लगाना निष्पक्ष जांच प्रक्रिया के सभी मान्य सिद्धांतों का उल्लंघन है। जिन एक्टिविस्टों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए सीएए के विरोध में भाषण दिया उनके विरुद्ध कार्रवाई की गई और उनके विरुद्ध नहीं, जिन्होंने हिंसा की पर उनका जुड़ाव सत्त्ताधारी दलों से था।'

पत्र के अंत में कहा गया है 'हम अनुरोध करते हैं कि दंगों के मामलों की आपराधिक जांच प्रक्रिया के ठोस प्रवधानों का पूर्णतः पालन क्रय हुए निष्पक्षतापूर्वक फिर से जांच की जाय।

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