UP में 44 साल पहले यमुना नदी कटान में बह गयी 13 हजार बीघा जमीन का लगान आज भी वसूला जा रहा किसानों से!
Ground Report : सरकारी अभिलेखों में तो आज भी कोर्राकनक के किसान बड़े काश्तकारों में गिने जाते हैं, लेकिन यमुना नदी की कटान के बाद दर्जनों किसान जमीनी हकीकत में भूमिहीन बनकर बदहाली की जिंदगी गुजर बसर करने पर मजबूर हैं, जमीन कटाव के बाद भूमिहीन काश्तकारों के पास बमुश्किल एक बिस्वा जमीन बची है, लेकिन राजस्व विभाग आज भी अपनी मालगुजारी वसूलना नहीं भूल रहा है...
लईक अहमद की रिपोर्ट
Ground Report : उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में यमुना नदी में कटान से किसानों की कई सालों में तेरह हजार बीघा जमीन बह गई, लेकिन आज भी सरकारी कागजों में लगान बरकरार है। यमुना नदी की धारा ने असोथर विकास खंड के कोर्राकनक गांव का भूगोल ही बदल दिया है।
गौरतलब है कि करीब 44 साल पहले 1978 से असोथर विकास खंड के कोर्राकनक गांव में यमुना की कटान से किसानों की करीब 13 हजार बीघा जमीन नदी की कटान में बह गई, लेकिन आज भी सरकारी कागजों में यहां का लगान बरकरार है। जो किसान किसी जमाने में बड़े काश्तकारों में शुमार थे, आज उनके सामने दो वक्त की रोटी को खाने के लाले पड़े हुए हैं।
सरकारी अभिलेखों में तो आज भी कोर्राकनक के किसान बड़े काश्तकारों में गिने जाते हैं, लेकिन यमुना नदी की कटान के बाद दर्जनों किसान जमीनी हकीकत में भूमिहीन बनकर बदहाली की जिंदगी गुजर बसर करने पर मजबूर हैं। जमीन कटाव के बाद भूमिहीन काश्तकारों के पास बमुश्किल एक बिस्वा जमीन बची है, लेकिन राजस्व विभाग आज भी अपनी मालगुजारी (लगान) वसूलना नहीं भूल रहा है।
कोर्राकनक गांव के कछवाह के डेरा निवासी किसान छेदिया देवी की 300 बीघा जमीन यमुना कटान में बहकर बाँदा जनपद की ओर चली गई। जीवन यापन के लिए अब सिर्फ 4 बीघे जमीन शेष बची है, लेकिन लगान 1800 रुपये के लगभग सालाना आता है।
किसान बनवारी निषाद की पूरी 100 बीघा जमीन यमुना कटान की भेंट चढ़ गई। उनकी एक बीघे भी जमीन नहीं बची है। मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। इनकी जमीन का लगान 400 रुपये सालाना आता है। नहीं जमा करने पर हर वर्ष यह बढ़ता जाता है।
कोर्राकनक के मैनाही डेरा निवासी किसान कामता निषाद की 90 बीघा जमीन यमुना में समा गई। जोतने बोने के लिए जमीन ही नहीं बची है। परिवार गैर प्रांतों में मज़दूरी करके परिवार पाल रहे हैं, लेकिन लगान बराबर आ रही है।
वहीं किसान प्रतिपाल निषाद की 80 बीघे जमीन यमुना की कटान में बह गई, अब सिर्फ दो बीघे में गुजर बसर कर रहे है। लगान अभी भी करीब 400 रुपये के आसपास आ रहा है।
भूमिहीन किसानों के पास लगान नहीं जमा करने पर आरसी काटने की धौंस देकर अफसरान सरकारी नियमों का पाठ पढ़ाते नजर आते हैं। ग्रामीण लगभग 4 दशकों से भी ज्यादा वक्त से इलाके के सांसद से लेकर विधायक तक शासन स्तर पर अपनी बात लेकर गये, लेकिन वह सफल नहीं हो सके।
यमुना में कटकर बर्बाद हो चुकी जमीन पर अब बांदा जिले के काश्तकार काबिज हैं, और वह कटान में गई जमीन को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दो जनपदों के आला अफसरों ने भी मसले का हल निकालने में कोई रुचि नहीं दिखाई। बेबस किसान सिर्फ लकीरें पीट रहा है। कोर्राकनक गांव वालों के लिए यमुना नदी वरदान के बदले अभिशाप साबित हो रही है। यहां हर साल किसानों की जमीन में बराबर कटान होता रहता है।
1978 से अब तक करीब 40 मजरे, दर्जनों कुएं, बाग बगीचे समेत करीब 400 काश्तकारों की 13 हजार बीघे जमीन कटान की भेंट चढ़ चुकी है। कोर्राकनक गांव के पीड़ित किसानों में मनमोहन सिंह, रविकरन सिंह, कर्मवीर सिंह, धर्मवीर सिंह, आनंदपाल सिंह, अवधपाल सिंह, बंसन्त सिंह, राजा निषाद,कामता निषाद,रंजीत सिंह, शिवमोहन सिंह, गेंदिया देवी,बबलू सिंह समेत करीब 400 किसान शामिल हैं, जिनकी जमीन यमुना कटान की भेंट चढ़ गई है।
शासन द्वारा किसानों से चार रुपये प्रति बीघे से लेकर 8 रुपये प्रति बीघे के हिसाब से यमुना कटान में बह गई 13 हजार बीघा जमीन का लगान वसूला जाता है, जिसका सालाना 52 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपए तक मालगुजारी (लगान) राजस्व विभाग का बन जाता है।