27 साल शासन के बाद भी BJP को क्यों है हिंदू-मुस्लिम मुद्दों की दरकार, जुमलों से भरपूर घोषणापत्र में नजर आ रहा हार का खौफ

Gujarat Election BJP Manifesto : BJP उन्हीं विवादास्पद मुद्दों को सामने लाने का प्रयास कर रही है, जिनके बूते वह देश के सामाजिक भाईचारे को लगातार बांटने की कोशिश कर हर चुनाव अस्सी बनाम बीस तक पहुंचाने की कोशिश करती है...

Update: 2022-11-27 16:30 GMT

27 साल शासन के बाद भी BJP को क्यों है हिंदू-मुस्लिम मुद्दों की दरकार, जुमलों से भरपूर घोषणापत्र में नजर आ रहा हार का खौफ (photo : facebook)

Gujarat Election BJP Manifesto : गुजरात राज्य के प्रस्तावित विधानसभा चुनाव जिस वक्त में होने वाले हैं, तब तक इस राज्य में भारतीय जनता पार्टी शासन के रिकॉर्ड 27 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1995 से राज्य की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी चुनाव दर चुनाव लड़खड़ाई भले ही हो, लेकिन बावजूद इसके न केवल अजेय बनी हुई है, बल्कि इसी गुजरात से निकले उसके दो नेता (नरेन्द्र मोदी और अमित शाह) गुजरात मॉडल की चमक से देशवासियों को चकाचौंध कर दो दो बार दिल्ली की केंद्रीय सत्ता पर काबिज हो चुके हैं।

जिस गुजरात को लंबे समय से भाजपा का गढ़ माना जाता है, इसी गुजरात के हालिया होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का घोषणा पत्र देखकर लगता है कि वह इस चुनाव को लेकर भी इतनी घबराई हुई है कि उसे चुनाव में फिर से सत्तारूढ़ होने के लिए अपने 27 साल के शासनकाल पर नहीं, बल्कि अपने प्रिय हिंदू मुसलमान के मुद्दे का ही सहारा है।

भाजपा द्वारा गुजरात चुनाव को लेकर जारी घोषणापत्र, जिसे वह घोषणापत्र नहीं बल्कि अपने आप को पार्टी विद डिफरेंस दिखाने के लिए संकल्प पत्र कहती है, पर नजर मारते ही इसका भान हो जाता है। पार्टी की ओर से जारी इस घोषणापत्र में कुछ ऐसे मामलों का जिक्र करते हुए उन्हें पूरा करने का वायदा किया गया है, को पहली नजर में ही मुसलमानों के उत्पीड़न से जुड़े मुद्दे लग रहे हैं।

आगे बढ़ने से पहले एक नजर भाजपा के घोषणापत्र पर डालते हुए बता दें कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार 26 नवंबर को गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए जो अपना संकल्प पत्र (घोषणापत्र) जारी किया है उसमें पार्टी ने गुजरात की जनता के लिए 40 वादे किए गए हैं। इन वायदों की फेहरिस्त में 5 वर्षों में युवाओं को 20 लाख रोजगार, आईआईटी की तर्ज पर 4 गुजरात प्रौद्योगिकी संस्थान स्थापित करना, गुजरात कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर के तहत सिंचाई नेटवर्क का विस्तार, सरकार में लौटने के बाद गौशालाओं को मजबूत करना, मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयां स्थापित करने, दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र में एक-एक सी फूड पार्क बनाने और भारत का पहला ब्लू इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने समेत मछली पकड़ने से संबंधित बुनियादी ढांचे मजबूत करने का वादा किया गया है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) के तहत वार्षिक सीमा 5 से बढ़ाकर 10 लाख करने, गरीब परिवारों को भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 110 करोड़ रुपए की योजना का वादा, दस हजार करोड़ का स्वास्थ्य कोष बनाने, सरकारी स्कूलों को उत्कृष्ट स्कूलों में बदलना, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने, लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा, 3 सिविल मेडिसिटी और दो AIIMS जैसे संस्थान बनाने, असामाजिक तत्वों से वसूली के लिए कानून, वरिष्ठ महिला नागरिकों को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा जैसी बातें शामिल हैं। इस घोषणापत्र के जरिए भाजपा ने हर वर्ग को लुभाने की कोशिश की है।

घोषणापत्र के बाद बात चुनाव की करें तो 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा चुनाव के तहत दो चरणों में 1 और 5 दिसंबर को मतदान और मतगणना 8 दिसंबर को होगी। अभी तक राज्य में भाजपा के सामने मुकाबले के लिए कांग्रेस ही मुख्य रही है। लेकिन यह पहला चुनाव है, जिसके त्रिकोणीय होने की संभावना जताई जा रही है।

आम आदमी पार्टी (आप) जिसने 2017 के चुनावों में 29 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा किए थे, लेकिन तब वह अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी। इस बार भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की उम्मीद में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए कमर कसे हुए है। तो भाजपा की परंपरागत विरोधी पार्टी कांग्रेस राज्य में पिछले 27 साल से सत्ता से बाहर रहने के चलते विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने की उम्मीद लगाए है।

गुजरात में 1995 से लगातार सत्ता में होने की वजह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य होने का कारण गुजरात के इस चुनाव की भाजपा के लिए खासी अहमियत है। ऐसे में भाजपा में हर हाल में गुजरात सत्ता बरकरार रखना चाहती है, जो कि एक राजनैतिक दल होने के नाते उससे अपेक्षित भी है। लेकिन विशेष बात यह है कि सत्ताइस साल के निष्कंटक शासन के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार गुजरात की जनता को इतना भी कुछ नहीं दे पाई, जिसके बदले में वह जनता का भरोसा सत्ता वापसी लायक जीत पाए। जिसका उदाहरण मीडिया में उसके वायदों का प्रचार प्रसार है।

अखबारों में दिए जा रहे चुनावी विज्ञापनों में भाजपा का मुख्य फोकस 40 वायदों में खास कुछ उन वायदों पर है, जो चुनाव में भाजपा की घबराहट को दिखाते हैं। भाजपा का पहला फोकस समान नागरिक संहिता को लेकर तो फिर आतंकवादियों के कथित स्लीपर सेल को ढूंढकर उन्हें खत्म करने और सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने "कथित असामाजिक तत्वों" से नुकसान की वसूली पर है।

लच्छेदार भाषा में दिए गए इन विज्ञापनों का सच कोई भले ही अपने मुंह से स्वीकार न करे, लेकिन जानते सभी हैं कि इनका वास्ता एक खास समुदाय से ही है। इस खास समुदाय के हजारों युवा आज भी आतंकवाद के नाम पर आज भी जेलों में बंद हैं। सालों की सुनवाई के बाद वह जेल से भी तब रिहा होते हैं, जब उनकी व घरवालों की जिंदगी का सर्वनाश हो चुका होता है।

भाजपा का वायदा इसी को विस्तार देते हुए ऐसे ही युवाओं की कानूनी सामाजिक मदद देने वालों को कानूनी शिकंजे में लाने की बात कर एक विशेष समुदाय की परपीड़क मनोग्रंथी का तुष्टिकरण करना चाहता है। आंदोलन के दौरान हुए सरकारी और निजी नुकसान की वसूली की गाज भी सब जानते हैं कि कहने के लिए कोई कुछ भी कहे, इसकी गाज सत्ता के दमन के खिलाफ आवाज उठाने पर इसी समुदाय पर गिरेगी। अन्यथा गुजरात का पाटीदार आंदोलन हो या राजस्थान का गुर्जर आरक्षण आंदोलन, किसी भी आंदोलन में आंदोलनकारी से ऐसी कोई वसूली नहीं हुई, जबकि हजारों करोड़ की राष्ट्रीय संपत्ति इन आंदोलनों के नाम पर स्वाहा हो चुकी थी।

बात समान नागरिक संहिता की तो, एक खास समुदाय को चिढ़ाने के लिए जिन भाजपा शासित राज्यों में इसे लागू करने का निर्णय लिया जा रहा है, वहां उस समुदाय को कोई दिक्कत नहीं है। इसकी आड़ में बस एक खास परपीड़क मनोग्रंथि के लोगों को दूसरे से "बहुत कुछ" छीने जाने का आभास भर दिलाकर उनका मानसिक तुष्टिकरण किया जा रहा है। कुल मिलाकर, चुनावी कैंपेन में जिन मुद्दों को राज्य में सत्ताइस साल से शासन कर रही भाजपा उछाल रही है, उससे साफ है कि इतने साल के शासन के बाद भी भाजपा के पास गुजरात की जनता से वोट मांगने के लिए कोई ऐसी विकासपरक योजना नहीं है, जो उसे गुजरात चुनाव में वोट दिला सके।

ले देकर भाजपा के पास अब भी वही विवादास्पद बातें हैं, जिनसे वह देश को अभी तक छलती आ रही है। लगातार 27 साल का शासन कम नहीं होता। यदि इतने साल कोई पार्टी एक राज्य में अपने शासनकाल के दौरान छिटपुट काम भी करे तो उसे लोगों के वोट के लिए अपना घोषणापत्र ही नहीं बनाना पड़ता है। जबकि भाजपा न केवल घोषणापत्र जारी कर रही है, बल्कि उन्हीं विवादास्पद मुद्दों को सामने लाने का प्रयास कर रही है, जिनके बूते वह देश के सामाजिक भाईचारे को लगातार बांटने की कोशिश कर हर चुनाव अस्सी बनाम बीस तक पहुंचाने की कोशिश करती है।

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